रावण अब मुनाफे का सौदा नहीं, महंगाई और कम मांग के चलते पुतलों की ऊंचाई के साथ बिक्री भी घटी

Ravan

दशहरे पर रा‍वण, उसके भाइयों कुंभकरण और मेघनाथ के पुतलों का दहन किया जाता है।

यूनिक समय, मथुरा। कोरोना वायरस के कारण लगी पाबंदियां हटने के बाद इस बार दो साल बाद पूरे उल्लास के साथ दशहरा मनाया जा रहा है, लेकिन रावण का पुतला बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि अब रावण के पुतले बनाने में न तो पहले जैसा मुनाफा है और ना ही वैसी मांग है। उनका यह भी कहना है कि पुतलों की मांग अबतक कोविड पूर्व काल के स्तर पर नहीं पहुंची है। दशहरे पर रा‍वण, उसके भाइयों कुंभकरण और मेघनाथ के पुतलों का दहन किया जाता है। दशहरा बुधवार को है।
करीब 30 साल से पुतले बनाने का व्यवसाय कर रहे मोहम्मद जफर ने कहा, “कुछ साल पहले, दशहरे के लिए 100 पुतले बनाता था। इस बार मैंने सिर्फ 21 पुतले बनाए हैं। पुतले बनाने में ना तो पहले जैसा मुनाफा है और न ही मांग है। लिहाजा मेरे पास कोई वजह नहीं है कि मैं ज्यादा पुतले बनाऊं।” यह बहुत पहले की बात नहीं है जब दशहरे से एक महीने पहले ही सड़कों पर बांस से पुतले के लिए ढांचे बनाने वाले कारीगर दिख जाते थे। पुतले का धड़, सिर और हाथ पैर, बहुत ध्यान से बनाए जाते थे। इसके बाद लकड़ी के ढांचे में विस्फोटक भरकर उन्हें जोड़ा जाता था। मगर महामारी, बढ़ते प्रदूषण और पटाखों पर प्रतिबंध के चलते पुतलों की मांग तेज़ी से कम हुई है। गलियां सुनसान पड़ी हैं।
पुतलों की ऊंचाई तीन फुट से 50 फुट तक होती है और इसे पूरा करने में छह से सात घंटे लगते हैं और इसकी कीमत 500 से 700 रुपये प्रति फुट होती है। कारीगर कोविड से पहले हर विक्रेता को 60-100 पुतले बेचा करते थे, लेकिन अब सिर्फ 20-30 पुतले ही बिक रहे हैं।
वहीं, पुतला बनाने वाले एक अन्य कारीगर ने कहा, “ मार्केट का कुछ पता नहीं है इस साल। फिर उत्सव या पटाखों पर प्रतिबंध का भी डर है, इसलिए ज्यादातर लोगों ने सोचा कि कम पुतले तैयार करना बेहतर है, क्योंकि हम अब नुकसान सहन नहीं कर सकते हैं।” आयुर्वेदिक दवाएं बेचने वाली एक दुकान में काम करने वाले ने कहा कि कई लोगों ने उनसे पूछताछ तो की, लेकिन बुकिंग नहीं कराई। कई कारीगर दिहाड़ी मजदूर हैं, जो पैसे कमाने के लिए इस काम में लगे हैं। कई का कहना है कि वे इस साल 8-10 हजार रुपये से ज्यादा नहीं कमा पाएंगे।

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