मिलिशिया लड़ाकों की मौजूदगी भी परेशानी का सबब,साल 2014-16 के दौरान पश्चिम अफ्रीका में इस बीमारी से 11300 लोगों की मौत हो चुकी है। डब्ल्यूएचओ ने इसे लेकर एकबार फिर अंतर्राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया है। भारत में पांच साल पहले मिला था एक मरीज
नई दिल्ली। कांगो गणराज्य में इबोला के प्रकोप ने अब वैश्विक आपदा का रूप ले लिया है। ऐसा नहीं है कि कांगो इस समस्या का पहली बार सामना कर रहा है। पिछले साल 01 पहली अगस्त को भी इस बीमारी ने दस्तक दी थी। तब से अब तक इस बीमारी से 1,655 लोगों की मौत हो चुकी है। इससे पहले साल 2014-16 के दौरान पश्चिम अफ्रीका में इस बीमारी से 11,300 लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन, इस बार यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल (पीएचईआईसी) घोषित कर दिया है। आइये नजर डालते हैं उन वजहों पर जिसके कारण डब्ल्यूएचओ को ऐसी घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
इस बार क्यों है इतनी चिंता
दरअसल, इस बार इबोला ने कांगो के गोमा शहर में दस्तक दी है। फिलहाल, इस शहर में बीमारी से संक्रमित पहले मरीज की पुष्टि हुई है। लेकिन, डर इस बात को लेकर है कि लगभग 20 लाख की घनी आबादी वाले इस शहर में यदि बीमारी फैली तो इस पर काबू पाना मुश्किल होगा। दूसरा डर इस बीमारी के दूसरे देशों में फैलने को लेकर भी है। गोमा रवांडा सीमा पर पूर्वोत्तर कांगो में महत्वपूर्ण शहर है जो एक अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से लगता है। कांगो और दुनिया के बाकी हिस्सों में दाखिल होने के रास्ते भी शहर से होकर निकलते हैं। तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि यह ऐसा क्षेत्र है जिसे युद्ध ग्रस्त माना जाता है। सो बीमारी के फैलने का डर होना लाजमी है। हालांकि, कांगो सरकार ने कहा है कि संक्रमित व्यक्ति और अन्य की पहचान के कारण गोमा में इस बीमारी के फैलना का खतरा कम है।
बीमारी के फैलने का खतरा बहुत ज्यादा
डब्ल्यूएच की रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक चार बार जानलेवा इबोला की वजह से इमरजेंसी लागू हो चुकी है। डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टेड्रोस एदहानोम घेब्रेयीसस ने जिनेवा में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा के बाद कहा कि क्षेत्र में इस बीमारी के फैलने का खतरा बहुत ज्यादा है लेकिन यहां से बाहर जाने की आशंका कम है। लेकिन, यदि बीमारी फैली तो डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि इसे रोकने के लिए करोड़ों डॉलर की जरूरत पड़ेगी। वैसे बता दें कि वैश्विक स्वास्थ्य आपदा की घोषणा अक्सर अंतरराष्ट्रीय मदद एवं ध्यान खींचने के लिए ही की जाती है। साथ ही ये चिंताएं भी होती हैं कि प्रभावित सरकारें सीमाओं को बंद न कर दें। हालांकि, टेड्रोस ने कहा कि यह घोषणा ज्यादा रकम जुटाने के लिए नहीं की गई है।
मिलिशिया लड़ाकों की मौजूदगी भी परेशानी का सबब
कांगो के दो बड़े प्रांत नॉर्थ किवु और इतुरी में साल 2018 से अब तक सबसे ज्यादा लोग इस बीमारी के शिकार हुए हैं। इन प्रांतों में इबोला से ग्रस्त करीब 2500 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें से दो-तिहाई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। दूसरी ओर क्षेत्रों में माई-माई मिलिशिया लड़ाकों की मौजूदगी ने कुछ इलाकों में स्वास्थ्य कर्मियों की आवाजाही को असंभव बना दिया है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक दल पर उस वक्त हिंसक हमला किया गया था जब वे इबोला से मरने वाले एक व्यक्ति की लाश को दफनाने गए थे। इसके बाद असुरक्षा के चलते लगातार पांच दिनों तक इबोला प्रतिक्रि या गतिविधियों को रोक दिया गया था। डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी थी कि इन प्रांतों में यदि इसी तरह स्वास्थ्य कर्मियों पर हमले जारी रहे तो इस बीमारी पर काबू पाना मुश्किल होगा।
अभी तक नहीं ढूंढ़ा जा सका है इलाज
इबोला एक किस्म की वायरल बीमारी है। साल 1976 में पहली बार दक्षिण सूडान और कांगो में इस बीमारी के वायरस का पता चला था। इस बीमारी का संक्रमण के बाद कोई मुकम्मल इलाज अब तक नहीं ढूंढ़ा जा सका है। यही वजह है कि इबोला के मामलों में मौत का प्रतिशत 90 से ज्यादा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके संक्र मण गति इतनी तेज है कि यह महज दो साल में पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले सकता है। यह इतना घातक है कि पूरे पश्चिमी अफ्रीका से इंसानों की आबादी को खत्म कर सकता है। इसका टीका तो इजाद हो चुका है लेकिन वह भी अभी परीक्षणों के दौर में ही है। परीक्षण के तौर पर 163,000 हजार लोगों को यह टीका लगाया गया है। लेकिन अभी भी इसके संतोषजनक परिणाम आने बाकी हैं।
भारत में पांच साल पहले मिला था एक मरीज
इंसानों में यह वायरस संक्रमित जानवरों, जैसे- चिंपैंजी, चमगादड़ और हिरण आदि के सीधे संपर्क में आने से होता है। अचानक बुखार, कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द, पेट दर्द और गले में खराश इसके शुरु आती लक्षण हैं। अगले चरण में उल्टी होना, डायरिया, मुंह, कान, नाक से खून बहना, शरीर पर फोड़े होने जैसे लक्षण सामने आते हैं। इबोला से पीड़ित रोगी के शरीर से निकलने वाले पसीना, खून या दूसरे तरल पदार्थ से यह वायरस फैलता है। इसीलिए इबोला के रोगी को अलग रखा जाता है। यही नहीं बीमारी से मृत व्यक्ति शव के संपर्क में आने से भी यह वायरस फैलता है। भारत में साल 2014 में लाइबेरिया से आए एक युवक में इबोला वायरस पाया गया था। हालांकि, उसे दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर ही रोक लिया गया था।
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