सूत्रों का यह भी कहना है कि चालू वित्त वर्ष में न्यूनतम नियामकीय जरूरतें पूरी करने के लिए सरकार बजट में चुनिंदा सरकारी बैंकों के लिए कुल 30000 करोड़ रुपये का प्रावधान कर सकती है।
नई दिल्ली। आगामी 5 जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पांच पेश करने जा रही हैं। पूरी संभावना जताई जा रही है कि इस बजट में मोदी सरकार बैंकिग सेक्टर के लिए कईं सुधारवादी नीतियां लेकर आएगी। अब सूत्रों का यह भी कहना है कि चालू वित्त वर्ष (2019-20) में न्यूनतम नियामकीय जरूरतें पूरी करने के लिए सरकार बजट में चुनिंदा सरकारी बैंकों के लिए कुल 30,000 करोड़ रुपये का प्रावधान कर सकती है। बताया जा रहा है कि वित्त मंत्रालय सरकारी बैंकों की पूंजीगत जरूरतों का आकलन कर रहा है। बता दें कि यह बजट ऐसे समय में पेश होने जा रहा है, जब आर्थिक विकास की दर पांच वर्षो के निचले स्तर पर है।
सूत्रों के मुताबिक बैंकों को विभिन्न सेक्टरों को कर्ज देने के लिए भी पूंजी की जरूरत है। जो पांच बैंक प्रांप्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) के दायरे में हैं, उन्हें भी बासेल-3 नियमों के पालन के लिए न्यूनतम पूंजीगत स्तर बरकरार रखना है। इसके अलावा सरकारी क्षेत्र के पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में तीन-चार छोटे बैंकों के विलय का भी प्रस्ताव है, जिसके लिए सरकार को अतिरिक्त पूंजी निवेश करनी होगा।
पिछले वर्ष सरकार बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी) में देना बैंक और विजया बैंक का विलय कर चुकी है। बीओबी का पूंजी आधार बढ़ाने के लिए सरकार ने उसमें 5,042 करोड़ रुपये का निवेश किया। पिछले वित्त वर्ष (2018-19) में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सरकार ने रिकॉर्ड 1.06 लाख करोड़ रुपये की वित्तीय मदद दी। इस मदद के चलते ही बैंक ऑफ इंडिया, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इलाहाबाद बैंक और कॉरपोरेशन बैंक पीसीए के दायरे से बाहर आने में सफल रहे।
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