नेशनल हेराल्ड केस: ईडी दफ्तर तक राहुल गांधी के मार्च को भाजपा ने बताया-जश्न-ए-भ्रष्टाचार!

नेशनल हेराल्ड केस फिर से राजनीतिक बवाल का कारण बन गया है। आज (13 जून) राहुल गांधी पूछताछ के लिए प्रवर्तन निदेशालय के ऑफिस में पेश हुए। उन पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है। राहुल की पेशी के पहले प्रियंका गांधी वाड्रा उनसे मिलने उनके घर पहुंचीं।
कांग्रेस मुख्यालय में बैठक के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के CM भूपेश बघेल समेत पार्टी के सांसद और अन्य नेताओं के साथ राहुल गांधी मार्च करते हुए ED ऑफिस के लिए निकले। राहुल गांधी से ED ऑफिस में तीन अफसरों ने पूछताछ शुरू की। राहुल गांधी के साथ ईडी दफ्तर तक पहुंचे कांग्रेस कार्यकर्ताओं की पुलिस से झड़प हो गई। पुलिस ने ईडी दफ्तर के बाहर धरने पर बैठे कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला समेत अन्य नेताओं को हिरासत लेना पड़ा। हालांकि प्रियंका गांधी लौट गई हैं।

इस बीच सोनिया-राहुल गांधी को नोटिस देने के विरोध में कांग्रेस कार्यकर्ता देशभर में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह मामला सुब्रमण्यम स्वामी कोर्ट तक लेकर गए हैं। इस मामले को 2015 में जांच एजेंसी ने बंद कर दिया था। इधर, भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि यह 5000 करोड़ का घोटाला है। उम्मीद है कि राहुल गांधी कोर्ट में अपना जुर्म कबूल करेंगे। भाजपा ने राहुल गांधी के ईडी दफ्तर तक मार्च को जश्न-ए-भ्रष्टाचार करार दिया है।

इससे पहले कांग्रेस नेता पवन बंसल और मल्लिकार्जुन खड़गे को भी समन जारी किए जा चुके हैं। सोनिया और राहुल गांधी को 8 जून को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया है। हालांकि तब राहुल गांधी विदेश में थे, इसलिए उन्होंने आगे की तारीख मांगी थी। जबकि सोनिया गांधी कोरोना संक्रमित हैं, इसलिए उन्हें तीन हफ्ते का समय और दिया गया है। पार्टी के साथ एकजुटता दिखाने के लिए कांग्रेस के सांसद और नेता राहुल गांधी के साथ मार्च निकालेंगे। राहुल गांधी कांग्रेसी नेताओं के साथ पैदल मार्च करते हुए ईडी ऑफिस पहुंचेंगे। राहुल गांधी के ED के सामने पेश होने से पहले कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल गांधी के समर्थन में पार्टी मुख्यालय के पास एकत्र हुए। दिल्ली पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया।

कांग्रेस नेताओं के मार्च से पहले दिल्ली पुलिस ने सोमवार को अकबर रोड स्थित पार्टी मुख्यालय के आसपास के इलाके में सीआरपीसी की धारा 144 लागू कर दी। इससे पहले लोकसभा में कांग्रेस के सचेतक(Congress whip in Lok Sabha) मनिकम टैगोर ने ट्विटर पर कहा, “हम अपने नेता राहुल गांधी के साथ मार्च करने की योजना बना रहे हैं। “हम जानते हैं कि दिल्ली पुलिस पूरी ताकत से हमें अपने पार्टी कार्यालय में नहीं जाने देगी, वे हमें अन्याय के खिलाफ मार्च करने की अनुमति नहीं देंगे, आइए शाह और गैंग को दिखाएं कि हम गांधी अनुयायी हैं, हम इसे शांतिपूर्ण तरीके से करेंगे।

दिग्विजय सिंह ने कहा-जब-जब भाजपा और मोदी डरते हैं, वे पुलिस को आगे करते हैं। आगे हम जनता की लड़ाई लड़ेंगे। ये केस है ही नहीं… कोई FIR है क्या? यह केस तो मोदी सरकार ने 2014 में शुरू किया और उन्हीं की सरकार ने बिना कोई प्रमाण मिले केस को समाप्त कर दिया।

कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कहा- हमनें गांधीवादी और शांतिपूर्ण तरीके से एक मार्च निकालने की कोशिश की थी लेकिन दिल्ली में अनुमति नहीं मिली। मुझे लगता है कि ये लोग जिस तरह एजेंसी का दुरूपयोग कर रहे हैं वो जगजाहिर है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी और तमाम नेताओं पर 7-8 साल से बंद केस डाले गए। कहीं ना कहीं राजनीतिक विरोधियों पर दबाव बनाने की राजनीति चल रही है। देश में इतने जरूरी मुद्दे हैं लेकिन अलग विचारधारा के लोगों को दबाने का काम हो रहा है। कांग्रेस के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है।

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा-वो कितना भी बदला लेना चाहे लेकिन वो सच की आवाज को नहीं दबा पाएंगे… राहुल गांधी के नेतृत्व में ये सत्य का संग्राम निरंतर चलेगा। अंग्रेज की सल्तनत भी हमें नहीं दबा पाई तो ये सरकार क्या दबा पाएगी?

जब ईडी ने सोनिया-राहुल गांधी को नोटिस भेजा था, तब कांग्रेस नेताओं ने एक प्रेस कान्फ्रेंस की थी। अभिषेक मनु सिंघवी, रणदीप सुरजेवाला और उदित राज ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि वो ED का इस्तेमाल विपक्ष को डराने के लिए कर रही है। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार तानाशाही पर उतर आई है। अभिषेक मनु संघवी ने का कहना था कि महंगाई और बेरोजगारी से आम जनता का ध्यान भटकाने के मकसद से ऐसा किया जा रहा है। उदित राज ने कहा था कि कांग्रेस इसका डटकर विरोध करेगी। इन नेताओं के बयान का जवाब देते हुए भाजपा ने कहा था कि ईडी एक संवैधानिक संस्था है। वो अपने हिसाब से काम करती है। जब किसी आम आदमी को नोटिस दिया जाता है, तो तो कांग्रेस को ईडी बुरी नहीं लगती, लेकिन उनके नेताओं को नोटिस मिलते ही संविधान खतरे में दिखाई देने लगता है।

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