अग्निवीर योजना: सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं को दिल्ली हाईकोर्ट को ट्रांसफर किया

सेना में भर्ती के लिए लाई गई योजना ‘अग्निपथ’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। अग्निपथ स्कीम के विरोध में देशभर के दायर की गई याचिकाओं को दिल्ली हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अग्निपथ योजना के खिलाफ दायर की गई सभी याचिकाओं की सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट करेगा। बता दें कि सेना में भर्ती के लिए केन्द्र सरकार द्वारा लाई गई अग्निपथ योजना के विरोध में देशभर में हिंसक प्रदर्शन हुए थे और कोर्ट में देश के कई राज्यों से याचिकाएं दायर की गई थीं।

सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि केरल, पटना, दिल्ली समेत कई हाईकोर्ट में याचिकाएं लंबित हैं। हम सबको यहां ट्रांसफर करने के लिए आवेदन दें, या फिर दिल्ली हाईकोर्ट को कहें कि अपने पास लंबित केस जल्दी सुन लें। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह बेहतर होगा कि पहले पूरे मामले को किसी हाईकोर्ट को सुनने दें। इस मामले में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना ने मामले में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि केरल, पंजाब और हरियाणा, पटना और उत्तराखंड के हाईकोर्ट में दायर की गई याचिकाओं की भी सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट में होनी चाहिए।

दरअसल, अग्निपथ योजना के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर जब कोर्ट का फैसला लिखा जा रहा था तभी एक याचिकाकर्ता मनोहर लाल शर्मा बीच में टोक रहे थे। इसे लेकर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ नाराज हो गए औऱ उन्होंने मनोहर लाल शर्मा फटकार लगाते हुए कहा कि आप भले वीर होंगे लेकिन अग्निवीर तो कतई नहीं हैं। आफ भविष्य में अग्निवीर बनने जा रहे हैं इसलिए बीच में टोका-टाकी नहीं करें।

अग्निवीर की भर्ती के लिए जाति व धर्म प्रमाण पत्र मांगे जाने पर भारतीय सेना के अधिकारियों ने कहा कि भर्ती की प्रक्रिया में कोई विशेष बदलाव नहीं किया गया है। यह प्रमाण पत्र सेना में भर्ती होने के लिए पहले भी मांगे जाते थे। इस योजना के तहत भी मांगे जा रहे हैं। इसमें कोई नई बात नहीं है।

दरअसल, केन्द्र सरकार सेना में भर्ती होने के लिए नई योजना लेकर आई है। इस योजना के अनुसार, 17.5 साल से 23 साल के बीच के युवाओं को को 4 साल के लिए सेना में भर्ती किया जाएगा। इसके लिए अग्निवारों को अलग-अलग पैकेज में सैलरी दी जाएगी। इस भर्ती के खिलाफ देशभर में हिंसक प्रदर्शन हुए थे। बिहार में ट्रेनों को भी आग के हवाले कर दिया गया था। इसके अलावा देश के ज्यादातर राज्यों में इस योजना का विरोध किया गया था।

 

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