सैफई को सुबकता छोड़ गए मुलायम, घरों से आ रहीं थी रोने की आवाज

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सैफई में थम नहीं रहीं हिचकियां और शोकाकुलों का तांता, बिन मुलायम सैफई के दिन रात, घरों से आ रहीं थी सुबकने की आवाज, हर घर था बेचैन, कोई सो नहीं सका तो कोई सुबह अंत्येष्टि स्थल पहुंचा
सैफई की गलियां रातभर सुबकती रहीं। मुलायम सिंह के जाने से घर-घर छाए मातम के बीच हिचकियां थम नहीं रहीं। बुधवार सुबह से श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगे रहने से मुलायम सिंह हर आंख की नमी बने रहे। सैफई के तमाम घरों में तीन दिन से चूल्हे नहीं जले। किसी के गले से निवाला नहीं उतरा। आखिर उनका मसीहा जो इस दुनिया से चला गया है…।
मुलायम के बिना सैफई की पहली रात अपने पीछे कई कहानी छोड़ गई। नेताजी की मदद और मरहम के सहारे जीवन की गाड़ी चलाने वाले कई परिवारों की रात करवट बदलते गुजरी। अब क्या और कैसे होगा..का अहसास उन्हें सोने नहीं दे रहा था। हर कोई बेचैन था। मुलायम सिंह की कोठी से कुछ दूर हैवरा बहादुरपुर गांव के 81 साल के बलवीर सिंह पुजारी का परिवार देर रात तक सुबकता रहा। बेचैन बलवीर कभी बिस्तर पर तो कभी घर के बाहर बरामदे में आकर तखत पर बैठ जाते। भर्राई आवाज में बोले- नेताजी ही उनके सब कुछ थे, अब अनाथ सा हो गया हूं।
बलवीर जैसे तमाम परिवारों में यही दर्द रहा। रातभर सो नहीं पाए। मजरा प्रेम नगरिया के 80 साल के साधौ सिंह भोर में मिले। उनकी आंख रोते-रोते सूज चुकी थी। पथरा चुकी आंखों में नमी लिए वह लाठी के सहारे कोठी की ओर जा रहे थे। वह बताते हैं कि वह कोठी से कुछ ही दूरी पर छोटे से मजरे में रहते हैं। कोठी पर सन्नाटा देख वह मेला ग्राउंड अंत्येष्टि स्थल की ओर चल पड़े और ठंडी होती चिता के पास पहुंचकर फिर सुबकने लगे। नेताजी को याद कर बोले-घर के बाहर खड़े होकर बुलाते थे और हाथ पकड़कर कई बार गाड़ी में भी बैठा लिया। साधौ फिर फफक पड़े।

तीन दिन से नहीं जला घर का चूल्हा

सैफई गांव के रामफल वाल्मीकि मुलायम सिंह से 9 साल छोटे हैं। डबडबाई आंख लिए बोले-घर में अब तक चूल्हा नहीं जला। कुछ जानने वालों ने उनके घर खाना भेजा, जैसे तैसे दबाव पर कुछेक निवाले गले के नीचे उतारे। पूरी तरह से टूट चुके रामफल ने मुलायम को जात-पात मानने वालों से अलग बताया। एक वाक्या बताया-नेताजी उस समय 18 साल के रहे होंगे, गांव में एक दावत थी। वह अपने समाज के कुछ लोगों के साथ किनारे खड़े थे, तभी नेताजी की नजर उन पड़ी तो उन्होंने उन्हें अपने पास बुलाया और खाने के लिए बैठा लिया। उस दौर में हमारी जैसी जाति के लोगों के साथ खाना तो दूर पास खड़े होना भी गुनाह माना जाता था। उन्हीं के आशीर्वाद से इस बार प्रधान बना।

नहीं रुक रहे थे डिंपल के आंसू

अखिलेश की पत्नी डिंपल मुलायम को सगे पिता से कम नहीं मानतीं थीं। मुलायम को नेताजी, पापा, पिताजी कहने वालीं डिंपल सदमा बर्दाश्त नहीं कर पा रहीं हैं। मंगलवार को अंत्येष्टि के बाद रात 12 बजे तक लोगों का आना जाना लगा रहा। भीड़ कम होने पर परिवार की बुजुर्ग महिलाएं डिंपल को सुलाने के लिए ले जाने लगीं तो वह मुलायम सिंह के छोटे भाई राजपाल की पत्नी प्रेमलता यादव से लिपटकर बिलखने लगीं। बुआ कमलादेवी भी व्हीलचेयर पर बैठीं हिचकियां लेतीं रहीं। डिंपल को जैसे तैसे बिस्तर तक ले जाया गया पर उनकी आंखों में नींद नहीं थीं। परिवार की अन्य महिलाओं का भी यही हाल हो रहा था।

श्रद्धांजलि देने वाले वीवीआईपी का जमावड़ा

बुधवार को भी राजनीतिक दलों के अलावा उद्योग जगत, शिक्षा, साहित्य समेत विभिन्न क्षेत्र की बड़ी हस्तियां मुलायम को श्रद्धांजलि देने पहुंचती रही। इसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा बिहार के जन अधिकार पार्टी लोकतांत्रिक के नेता राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, बिहार सरकार के जल संसाधन मंत्री संजय झा, जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह, जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी, कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह, उत्तर प्रदेश हिंदी सेवा संस्थान के पूर्व अध्यक्ष डॉ. उदय प्रताप सिंह, पंजाब के उद्योगपति व पोंटी चड्ढा के भाई विजेंद्र सिंह चड्ढा, भारतीय किसान यूनियन राजनैतिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश चौहान समेत उत्तर प्रदेश के कई मंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, एमएलसी कुंवर मानवेंद्र सिंह मुख्य रूप से शामिल रहे। उनके आवास पर पहुंचकर नेताजी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर परिवार के सदस्यों से मुलाकात की और उन्हें ढांढस बंधाया। इसके अलावा बड़ी संख्या में पंजाब, हरियाणा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल, तमिलनाडु से आए कार्यकर्ताओं ने शोक संवेदना व्यक्त की।

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