अग्नि के चारों ओर ही सात फेरे क्यों?

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कहते हैं शादी वह पवित्र बंधन है जिसमें दो दिलों को मेल होता है। शादी सिर्फ शारीरिक रूप स ही नहीं बल्कि भावनात्मक रूप से भी जोड़ती है। इसमें न केवल दो व्यक्ति बल्कि दो समाज मिलते हैं। शायद इसलिए शादी को सामाजिक रूप दिया गया है।

कहते हैं शादी वह पवित्र बंधन है जिसमें दो दिलों को मेल होता है। शादी सिर्फ शारीरिक रूप स ही नहीं बल्कि भावनात्मक रूप से भी जोड़ती है। इसमें न केवल दो व्यक्ति बल्कि दो समाज मिलते हैं। शायद इसलिए शादी को सामाजिक रूप दिया गया है। शादी के पवित्र बंधन में बंधने के बाद दो जुदा लोग एक साथ अपनी जिंदगी की शुरुआत करते हैं। जाहिर सी बात है जब दो समाज या समुदाय शादी के पवित्र बंधन के कारण एक होते हैं तो उनमें बहुत से वैचारिक या सैद्धान्तिक मतभेद होते हैं। दोनों के रीति-रिवाज काफी अलग होते हैं लेकिन अग्नि के समक्ष फेरे लेने का रिवाज सभी हिन्दू समुदायों में समान है।

हिन्दू मान्यता के अनुसार बिना अग्नि के सामने सात फेरे लिए विवाह की रस्म पूरी नहीं होती है। अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु, और आकाश इन पांच तत्वों से मनुष्य की उत्पति मानी गई हैं। अग्नि को सबसे पवित्र माना जाती है। अग्नि समभाव का प्रतीक है। अग्नि हर जगह पर समान रूप से जलती है वह सबके लिए समान है। वहीं दूसरी ओर उसका सबसे बड़ा गुण यह माना जाता है कि वह यज्ञ में दी गई एक आहूति को सहस्त्र गुना करके लौटाती है।

शादी को जन्मों का रिश्ता होता है। वर-वधु पवित्र अग्नि के समक्ष सात-फेरे लेकर उसके ही समान एक-दूसरे के प्रति समभाव और समर्पण की भावना रखें। अग्नि कभी अपवित्र नहीं होती है। विवाहित जोड़ा हर हाल में अग्नि के सामने एक-दूसरे को दिए सातों वचनों को निभाएं। अग्नि को ऊर्जा का प्रतीक माना गया है पति-पत्नी अपना पूरा जीवन पूरे उत्साह और ऊर्जा के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करें इन्ही सभी कारणों से अग्नि के समक्ष सात फेरे लेने की परम्परा बनाई गई है।

सात फेरों का वैज्ञानिक रहस्य

विवाह की परंपराओं में सात फेरों का एक चलन है। हिन्दू धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूर्ण होती है। सात फेरों में दूल्हा व दुल्हन दोनों से सात वचन लिए जाते हैं। यह सात फेरे ही पति-पत्नी के रिश्ते को सात जन्मों तक बांधते हैं। हिंदू विवाह संस्कार के अंतर्गत वर-वधू अग्नि को साक्षी मानकर इसके चारों ओर घूमकर पति-पत्नी के रूप में एक साथ सुख से जीवन बिताने के लिए प्रण करते हैं और इसी प्रक्रिया में दोनों सात फेरे लेते हैं, जिसे सप्तपदी भी कहा जाता है। और यह सातों फेरे या पद सात वचन के साथ लिए जाते हैं। हर फेरे का एक वचन होता है, जिसे पति-पत्नी जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं। यह सात फेरे ही हिन्दू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते हैं।

यदि आप विवाहित हैं तो आपको इन शब्दों का ज्ञान पहले से होगा। भारतीय विवाह प्रणाली में सात फेरों का अधिक महत्व है। आओ जानें ऐसा क्या है इन सात फेरों में–क्या कोई वैज्ञानिक रहस्य भी छुपा है। वरवधू को चेतना के हर स्तर पर एकरस और सामंजस्य से संपन्न कर देना है। चेतना के सात स्तरों, सात की संख्या मानव जीवन के लिए बहुत विशिष्ट है। शरीर में ऊर्जा (पार्थिव) और शक्ति (आध्यात्मिकता) के सात केंद्र हैं। इन्हें चक्र कहा जाता है यज्ञ और संस्कार के वातावरण और विशिष्ट जनों की उपस्थिति में सात कदम एक साथ सातवें पद या परिक्रमा में वर, कन्या एक दूसरे से कहते है हम दोनों अब परस्पर सखा बन गए हैं।

शरीर के निचले भाग से शुरु हो कर ऊपर की ओर बढने पर इनकी स्थिति इस प्रकार मानी गई है मूलाधार, (शरीर के प्रारंभिक बिंदु पर) स्वाधिष्ठान, ( गुदास्थान से कुछ ऊपर) मणिपुर, (नाभिकेंद्र) अनाहत, (हृदय) विशुद्ध, (कंठ) आज्ञा (ललाट, दोनों नेत्रों के मध्य में) और सहस्रार(शीर्ष भाग में जहां शिखा केंद्र) है। चक्र शरीर के केन्द्र हैं। उन्ही की तरह शरीर के भी सात स्तर माने गए हैं। इनके नाम इस तरह हैं स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर, मानस शरीर, आत्मिक शरीर, दिव्य शरीर और ब्रह्म शरीर।

सप्तपदी में उन शक्ति केंद्रों और अस्तित्व की परतों या शरीर के गहनतम रूपों तक तादात्म्य बिठाने करने का विधान रचा जाता है, केवल शिक्षा नहीं, व्यावहारिक विज्ञान के रूप में। समझाने के लिए ही सप्तपदी या सात वचनों को संगीत के सात सुर, इंद्रधनुष के सात रंग, सात तल, सात समुन्द्र, सात ऋषि, सातों लोकों आदि का उल्लेख किया जाता है। असल बात शरीर, मन और आत्मा के स्तर पर एक्य स्थापित करना है जिसे जन्म जन्मान्तर का साथ कहा जा सके।

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