नई दिल्ली। पीएम मोदी हाल ही में जम्मू कश्मीर के दौरे पर गए थे और यहां पर उन्होंने 330 मेगावॉट वाले किशनगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया। इस उद्घाटन के बाद पाकिस्तान वर्ल्ड बैंक की शरण में पहुंचा। पाकिस्तान का कहना है कि इस परियोजना का उद्घाटन सिंधु जल संधि का उल्लंघन है।
लेकिन इस बीच वर्ल्ड बैंक में पाकिस्तान को करारा झटका लगा है। पाकिस्तान ने वर्ल्ड बैंक से कहा था कि वह इस प्रोजेक्ट पर नजर रखे और प्रोजेक्ट में एक गारंटर की भूमिका निभाए। पाक की इस मांग पर वर्ल्ड बैंक, भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों के बीच कोई सहमति नहीं बन सकी है। पाकिस्तान हमेशा से ही इस प्रोजेक्ट पर विरोध जताता रहा है।
1960 के सिंधु जल समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए पाकिस्तान ने इस प्रोजेक्ट पर विश्व बैंक से निगरानी रखने को कहा था और साथ ही अपील की थी कि वर्ल्ड बैंक इस प्रोजेक्ट में गारंटर की भूमिका निभाए। हालांकि इस पर वर्ल्ड बैंक, पाकिस्तान और भारत के अधिकारियों के बीच कोई सहमति नहीं बन सकी।
330 मेगावॉट क्षमता वाली किशनगंगा परियोजना नियंत्रण रेखा से महज दस किलोमीटर की दूरी पर है. जहां यह परियोजना स्थित है वह इलाका साल भर में छह महीनों के लिए राज्य के बाकी हिस्सों से कटा रहता है। नीलम नदी, जिसका एक नाम किशनगंगा भी है पर बने इस परियोजना की शुरुआत साल 2007 में हुई थी। इसके 3 साल बाद ही पाकिस्तान ने यह मामला हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में उठाया, जहां तीन साल के लिए इस परियोजना पर रोक लगा दी गई। साल 2013 में, कोर्ट ने फैसला दिया कि किशनगंगा प्रॉजेक्ट सिंधु जल समझौते के अनुरूप है और भारत ऊर्जा उत्पादन के लिए इसके पानी को डाइवर्ट कर सकता है।
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