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नई दिल्ली। संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के प्रमुख मसूद अजहर को ब्लैकलिस्ट करने के लिए एक कदम आगे बढ़ाया है।
दो सप्ताह पहले चीन ने वीटो पावर का इस्तेमाल करके मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने में रोड़ा लगा दिया था। राजनयिकों ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने ब्रिटिश और फ्रांस के समर्थन के साथ 15 सदस्यीय परिषद के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया है। इसमें जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी मसूद अजहर की यात्रा पर बैन, संपत्ति जब्त और हथियार बंदी की बात कही गई है।
इसके साथ ही अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने कहा है कि चीन अपने यहां लाखों मुसलमानों का उत्पीड़न करता है, लेकिन हिंसक इस्लामी आतंकवादी समूहों को संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों से ‘बचाता’ है। उनका इशारा चीन के उस कदम की ओर था जब उसने इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के सरगना हाफिज सईद को “वैश्विक आतंकवादी” घोषित करने के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में अड़ंगा डाल दिया था। पोम्पिओ ने बुधवार को मसूद अजहर का नाम लिये बिना ट्वीट किया, ‘दुनिया मुसलमानों के प्रति चीन के शर्मनाक पाखंड को बर्दाश्त नहीं कर सकती है। एक ओर चीन अपने यहां लाखों मुसलमानों पर अत्याचार करता है, वहीं दूसरी ओर वह हिंसक इस्लामी आतंकवादी समूहों को संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों से बचाता है। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव रखा था, जिस पर चीन ने रोक लगा दी थी। वहीं चीन ने दलील दी थी कि उसे इस विषय पर अध्ययन करने के लिये और समय चाहिये। चीन को छोड़कर सुरक्षा परिषद के सभी सदस्य देशों ने प्रस्ताव को स्वीकार किया था।
पोम्पिओ ने आरोप लगाया कि चीन अप्रैल 2017 से शिनजियांग प्रांत में नजरबंदी शिविरों में 10 लाख से ज्यादा उइगरों, कजाखों और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों को हिरासत में ले चुका है। उन्होंने कहा, ‘अमेरिका उनके और उनके परिवारों के साथ खड़ा है। चीन को हिरासत में लिए गए सभी लोगों को रिहा करना चाहिए और उनके दमन को रोकना चाहिए।
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