नवरात्रि पर घटस्थापना से ब्रह्माण्ड में मौजूद शक्तियों का किया जाता है आह्वान

चैत्र नवरात्र 6 अप्रैल से प्रारंभ, अष्टमी और नवमी एक ही दिन

पं. अजय कुमार तैलंग
यूनिक समय, मथुरा। देवी आराधना का पर्व चैत्र नवरात्रि इस बार 6 अप्रैल से शुरू हो रहा है। नौ दिनों तक चलने वाली पूजा में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा-उपासना से जातक को हर मुश्किल से छुटकारा मिल जाता है। घटस्थापना नवरात्रि के पहले दिन होती है। घटस्थापन अर्थात नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में उपस्थित शक्तित्त्व का घट अर्थात कलश में आह्वान कर उसे सक्रिय करना। शक्तितत्व के कारण वास्तु में उपस्थित कष्टदायक तरंगे नष्ट हो जाती हैं।

ऐसे करें कलश स्थापना
घटस्थापना में सर्वप्रथम खेत की मिट्टी लाकर उसमे पांच अथवा सात प्रकार के धान बोए जाते हैं। जल, चंदन, पुष्प, दूर्वा, अक्षत, सुपारी तथा सिक्के मिट्टी अथवा तांबे के कलश में रखे जाते हैं। कलश स्थापना करने से पहले ये ध्यान रखें कि जिस जगह उसे स्थापित किया जाएगा वो जगह साफ होनी चाहिए।
कलश स्थापना के लिए एक लकड़ी का पाटा लें और उस पर नया लाल कपड़ा बिछाएं। इसके बाद नारियल और कलश पर मौली बांधे, रोली से कलश पर स्वास्तिक बनाएं। वहीं कलश में शुद्ध जल और गंगा जल रखें और जल में केसर, जायफल और सिक्का डालें। इसके अलावा एक मिट्टी के बर्तन में जौ भी बो दें। इसी बर्तन पर जल से भरा हुआ कलश रखें। कलश का मुंह खुला न छोड़ें। कलश को किसी ढक्कन से ढककर चावलों से भर दें और उसके बीचों-बीच एक नारियल भी रखें। इसके बाद दीप जलाएं और कलश की पूजा करें।

स्वास्थ्य के लिए है बेहतर
नवरात्र को मनाने का एक और कारण है जिसका वैज्ञानिक महत्व भी स्वयं सिद्ध होता है। नवरात्र प्राय: ऋतु संधिकाल में मनाया जाता है। जब ऋतुओं का सम्मिलन होता है तो प्राय: शरीर में वात, पित्त, कफ का समायोजन घट बढ़ जाता है। इसलिए जब नौ दिन जप, उपवास, साफ-सफाई, शारीरिक शुद्धि, ध्यान, हवन आदि किया जाता है तो वातावरण शुद्ध हो जाता है। यह हमारे ऋषियों के ज्ञान की प्रखर बुद्धि ही है जिन्होंने धर्म के माध्यम से जनस्वास्थ्य समस्याओं पर भी ध्यान दिया।

मिलेगा विशेष फल
ज्योतिष के अनुसार इस बार नवरात्रि रेवती नक्षत्र के साथ शुरू हो रही है। रेवती नक्षत्र पंचक का पांचवां नक्षत्र है इसलिए उदय काल में रेवती नक्षत्र का योग साधना व सिद्धि में पांच गुना अधिक शुभ फल प्रदान करेगा। इस नक्षत्र का शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एक घंटे तक स्पर्श होना, वह भी उदय काल से करीब 45 मिनट तक रहना, साधना की दृष्टि से सर्वोत्तम है।
इसमें धन प्राप्ति के लिए किए जाने वाले उपाय भी कारगर होंगे। इस बार नौ दिनों के इस नवरात्र में पांच बार सर्वार्थ सिद्धि और दो बार रवियोग आएगा। जो शास्त्रों की दृष्टि से श्रेष्ठ है।

अष्टमी और नवमी एक ही दिन
इस बार की चैत्र नवरात्रि 8 दिन की है। अष्टमी और नवमी एक ही दिन है। 13 अप्रैल की सुबह 8:16 बजे तक अष्टमी एवं इसके बाद नवमी तिथि होगी। जो अगले दिन 14 अप्रैल की सुबह 6 बजे तक है। 14 को 5:42 मिनट में सूर्योदय काल है। मात्र 18 मिनट नवमी तिथि पड़ रही है। इसके कारण 13 अप्रैल को ही अष्टमी और नवमी तिथि का पाठ एक ही दिन किया जाएगा। इसी दिन हवन कार्य कर व्रती नवरात्र का पारण करेंगे।

घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
प्रात: 7:30 से 9:00
दोपहर: 3:00 से 4:30
दोपहर: 1:30 से 3:00

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