नई दिल्ली। राजनीतिक दलों को चंदा देने से संबंधित चुनावी बॉन्ड पर रोक नहीं लगेगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना अहम फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने कहा कि बॉन्ड पर रोक नहीं रहेगी, लेकिन सभी दलों को इलेक्शन कमीशन को इसका ब्योरा देना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, 15 मई तक मिले चुनावी बांड की जानकारी 31 मई तक दें। आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा है कि वह चुनाव प्रक्रिया के दौरान चुनावी बॉन्ड के मुद्दे पर आदेश पारित नहीं करे।
बता दें कि इससे पहले चुनाव तक हस्तक्षेप नहीं करने की केंद्र की याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा था कि अगर पारदर्शी राजनीतिक चंदा के लिए शुरू किए गए चुनावी बॉन्ड के क्रेताओं की पहचान नहीं है तो चुनावों में कालाधन पर अंकुश लगाने का सरकार का प्रयास ‘निरर्थक’ होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने एक एनजीओ की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया जिसने इस योजना की वैधता को चुनौती दी है और मांग की है कि या तो चुनावी बॉन्ड जारी किए जाने पर रोक लगा दी जाए या चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये चंदा देने वालों के नाम सार्वजनिक किए जाएं। केंद्र ने यह कहते हुए योजना का पुरजोर समर्थन किया कि इसके पीछे का उद्देश्य चुनावों में कालाधन के इस्तेमाल को खत्म करना है और न्यायालय से इस मौके पर हस्तक्षेप नहीं करने को कहा। केंद्र ने कोर्ट से कहा था कि वह चुनाव के बाद इस बात पर विचार करे कि इसने काम किया या नहीं।
केंद्र ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ से कहा था कि जहां तक चुनावी बॉन्ड योजना का सवाल है तो यह सरकार का नीतिगत फैसला है और नीतिगत फैसला लेने के लिए किसी भी सरकार को दोष नहीं दिया जा सकता है। पीठ ने सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा कि क्या बैंक को चुनावी बॉन्ड जारी करने के समय क्रेताओं की पहचान का पता होता है।
इस पर वेणुगोपाल ने सकारात्मक जवाब दिया और तब कहा कि बैंक केवाईसी का पता लगाने के बाद बॉन्ड जारी करते हैं, जो बैंक खातों को खोलने पर लागू होते हैं। पीठ ने कहा कि जब बैंक चुनावी बांड जारी करते हैं तो क्या बैंक के पास ब्योरा होता है कि किसे ‘एक्स’ बॉन्ड जारी किया गया और किसे ‘वाई’ बॉन्ड जारी किया गया।
नकारात्मक जवाब मिलने पर पीठ ने कहा था कि अगर बॉन्ड के क्रेताओं की पहचान नहीं है तो आयकर कानून पर इसका बड़ा प्रभाव होगा और कालाधन पर अंकुश लगाने के आपके सारे प्रयास निरर्थक होंगे। वेणुगोपाल ने बॉन्ड सफेद धन का इस्तेमाल और चेक, डिमांड ड्राफ्ट और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के जरिये करके उचित बैंक चैनल के माध्यम से खरीदे जाते हैं और बॉन्ड खरीदने के लिए किसी तीसरे पक्ष के चेक की अनुमति नहीं दी जाती है।
पीठ ने तब मुखौटा कंपनियों द्वारा दिये जाने वाले चंदे के बारे में पूछा और कहा कि अगर चंदा देने वालों की पहचान का पता नहीं है तो ऐसी कंपनियां काला धन को सफेद में तब्दील कर लेंगी. इसके अलावा केवाईसी सिर्फ धन के स्रोत के प्रमाणन के लिए है। शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि मुखौटा कंपनियों का अस्तित्व और काला को सफेद में तब्दील किया जाना हमेशा होता रहेगा। हम और क्या कर सकते हैं। हम कुछ ऐसा करने का प्रयास कर रहे हैं, जो सिर्फ इसलिए खराब नहीं हो सकता कि मुखौटा कंपनियां मौजूद हैं।
वेणुगोपाल ने कहा कि बैंक ग्राहक को जानती है, लेकिन इस बात को नहीं जानती कि कौन सा बॉन्ड किस पार्टी को जारी किया गया। उन्होंने कहा कि चुनावी बॉन्ड के क्रेताओं की पहचान को जाहिर विभिन्न कारणों से नहीं किया जाना चाहिए यथा किसी फर्म या व्यक्ति के दूसरे राजनीतिक दल या समूह के जीतने पर परिणाम भुगतने का डर नहीं हो। उन्होंने कहा कि मतदाताओं को वैसे लोगों के बारे में जानने का अधिकार है कि किसने उनके उम्मीदवारों को धन मुहैया कराया है। उन्होंने कहा कि मतदाताओं का सरोकार इस बात को जानने को लेकर नहीं है कि कहां से धन आया।
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से उपस्थित अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि इस योजना का काला धन पर रोक लगाने के प्रयासों से कोई लेना-देना नहीं है और यह नाम जाहिर नहीं करके चंदा देने के बैंकिंग माध्यम को भी खोलता है। उन्होंने कहा कि इससे पहले आप पार्टी को नकद चंदा दे सकते थे। अब आप बैंक के जरिये भी चंदा दे सकते हैं।
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