पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन की दोस्ती तब से है, जब राजीव 2 साल के थे और अमिताभ 4 साल के। यही नहीं अमिताभ बच्चन, राजीव गांधी के कहने पर ही राजनीति में आए थे लेकिन इसी बीच ऐसा कुछ हुआ कि दोनों के रिश्तों में कड़वाहट पैदा हो गई। 21 मई को राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर जानते हैं कि बचपन की दोस्ती में आखिर किस वजह से ये दरार आई।
इस दोस्ती की शुरुआत जवाहर लाल नेहरू और हरिवंश राय बच्चन के वक्त शुरू हुई। जब नेहरू प्रधानमंत्री थे उस वक्त हरिवंश राय बच्चन विदेश मंत्रालय में हिंदी ऑफिसर थे। हरिवंश राय बच्चन के काम के नेहरू तभी से कायल थे। धीरे-धीरे इंदिरा गांधी और हरिवंश राय बच्चन की पत्नी तेजी बच्चन के बीच भी दोस्ती हो गई और अक्सर दोनों परिवारों के बीच मिलना जुलना होने लगा।
राजीव गांधी के साथ पहली मुलाकात के बारे में अमिताभ बच्चन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वो इलाहाबाद में एक फैंसी ड्रेस कॉम्पिटीशन में हिस्सा लेने पहुंचे थे। उस कार्यक्रम में राजीव गांधी फ्रीडम फाइटर बने थे। उस समय हम सब बहुत छोटे थे और ये नहीं जानते थे कि पंडित नेहरू के नाती हमारे बीच है।
जब राजीव पढ़ाई करने इंग्लैंड गए थे तो वहां से वो अमिताभ को चिट्ठी लिखा करते थे। एक बार जब राजीव गांधी इंग्लैंड से वापस लौटे तो अमिताभ बच्चन के लिए जींस लेकर आए थे। अमिताभ को यह जींस इतनी पसंद आई कि सालों तक वो इसे पहनते रहे। उस वक्त राजीव गांधी के पास पुराना लंबरेटा स्कूटर था जिसे स्टार्ट करने के लिए अमिताभ बच्चन धक्का लगाया करते थे।
राजीव गांधी की मंगेतर सोनिया गांधी इटली से पहली बार 13 जनवरी 1968 में भारत आई थीं तो अमिताभ उन्हें एयरपोर्ट पर लेने गए थे। यहां आने के 43 दिन बाद सोनिया और राजीव की शादी हुई थी। सोनिया और उनके परिवारवाले शादी के पहले अमिताभ बच्चन के घर पर ही रुके थे। तेजी बच्चन ने सोनिया को भारतीय संस्कृति और रीति रिवाजों को समझाने में मदद की। सोनिया गांधी का कन्यादान भी हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन ने किया था।
70 और 80 के दशक तक दोनों परिवारों के बीच दोस्ती रही। इसी बीच फिल्मों में लोकप्रियता को देखते हुए राजीव गांधी ने अमिताभ को राजनीति में आने की सलाह दी। 1984 में अमिताभ बच्चन कांग्रेस के टिकट पर इलाहाबाद से चुनाव लड़े और जीत हासिल की। भले ही अमिताभ बच्चन ने चुनावों में जीत हासिल की हो लेकिन दोनों की दोस्ती के बीच दरार भी यहीं से पड़ गई।
बोफोर्स घोटाले ने इसी बीच देश में तहलका मचा दिया। जिसके निशाने पर अमिताभ और उनके भाई अजिताभ भी आए। यही वो घटना थी जिसने दोनों परिवारों के बीच दूरी ला दी। चुनाव जीतने के 3 साल बाद ही अमिताभ ने इस्तीफा देकर राजनीति से तौबा कर लिया। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद जहां गांधी परिवार को लगा कि बच्चन परिवार ने उन्हें अकेला छोड़ दिया वहीं बच्चन परिवार का कहना था राजनीति में लाकर राजीव ने उन्हें बीच रास्ते छोड़ दिया।
एक इंटरव्यू में अमिताभ बच्चन ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा था- ‘इस परिवार ने (गांधी और नेहरू) भारत के ऊपर सदियों से राज किया है। वो राजा हैं हम रंक हैं। राजा निर्धारित करेगा कि किसके साथ उसको संबंध बनाना है। किसके साथ उसको दोस्ती निभानी है। रंक नहीं निर्धारित कर सकता है। हमारा स्नेह आदर उस परिवार के साथ हमेशा रहेगा लेकिन उन्हें निर्धारित करना होगा कि इस रंक के साथ अपना रिश्ता बनाए रखना है या नहीं।’
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