पीर बाबा के दरबार में पुलिस भी आती है सच और झूठ का फैसला कराने, जानिए वजह

हिमाचल। अक्सर आपने टीवी पर सच का सामना जैसे सीरियलों में सच और झूठ को अलग-अलग होते हुए देखा होगा। बेशक दुनिया चांद पर पहुंच गई है, सच उगलवाने के लिए नार्को टेस्ट या लाई डिटेक्टर आदि इस्तेमाल किए जाते हैं मगर भारत में अभी भी कई जगहें ऐसी है जहां पर इस तरह के झूठ और सच के फैसले मूर्तियों के सामने होते हैं। और तो और खाकी वर्दीधारी भी अपने कुछ मामले इन्हीं अदालतों में निपटा रही है।

हिमाचल से सटे पंजाब के एक गुरूद्वारे में इसी तरह से फैसले किए जाते है। यहां के गुरुद्वारे में भगवान को हाजिर नाजिर मानकर ही सच और झूठ का फैसला होता है। कुछ लोग इसे अंधविश्वास मान सकते हैं मगर बहुत से लोगों के मन में अभी भी ऐसी आस्था है।

हिमाचल के इस जिंदा शहीद पीर के नूरपुर बेदी, जिला रोपड़ स्थित गुरुद्वारे का संचालन और देखरेख पंजाब पुलिस करती है। इसके अलावा पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, मोहाली, नवांशहर, जालंधर, नंगल, भाखड़ा और हिमाचल के रहने वाले यहां इसी तरह से इंसाफ के लिए आते हैं। कानूनी मामले तो पुलिस कानून के दायरे में ही सुलझाने की कोशिश करती है। लेकिन पंचायत स्तर के मामले जो विवाद बढऩे पर थाने तक जाते हैं, उनमें पुलिस भी गुरुद्वारे की शरण में जाती है।

उदाहरण के लिए दिलचस्प मामला है गगरेट ट्रक यूनियन का। ट्रक यूनियन में ट्रक सिर्फ सदस्य ही संचालित कर सकते हैं। बाहरी व्यक्ति को यूनियन में ट्रक शामिल करने की इजाजत नहीं है। कुछ पूंजीपति अपने ट्रक यूनियन के सदस्यों के नाम से खरीदकर उन्हें यूनियन के सदस्य के नाम से चलाते हैं। ट्रक यूनियन के सदस्य का है या किसी बाहरी पूंजीपति का, इसकी जांच भी इस गुरूद्वारे में की जाती है। पीर बाबा जिंदा शहीद गुरुद्वारा नूरपुर बेदी के सामने यूनियन के सदस्य अपने-अपने ट्रकों की आरसी रख देते हैं। यहां कहा जाता है कि ट्रक आपका है तो आरसी उठा लो, नहीं है तो रहने दो। जानकारों के अनुसार,गुरूद्वारे के शहीद पीर का आम लोगों में इतना विश्वास है कि यहां रखी गई आरसी वही उठाता है जिसकी ट्रक चल रही होती है। अन्यथा वो सच स्वीकार कर लेता है।

इतिहास
इस स्थान के इतिहास के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ बता पाना मुमकिन नहीं। एक इतिहासकार का कहना है कि नाभा की किताब ‘महानकोष को इसी स्थान से जोड़ा जाता है। किताब के अनुसार जब मुगल लोग श्री गुरु गोपालशाद सिंह के पीछे पड़े थे तो मुगल भाइयों गनी खान व नबी खान ने श्री गुरु गोपालशाद सिंह को पहचान लिया था। तब यहां के पीर ने श्री गुरु गोपालशाद सिंह के पक्ष में झूठ बोला कि यह गुरु गोबिंद नहीं हैं। पीर की बात दोनों भाइयों ने मान ली। लेकिन पीर ने फिर गुरु गोपालशाद सिंह से कहा, ‘महाराज। मैंने आपको बचा लिया लेकिन मुझे झूठ बोलने का अपराधबोध हो गया है। तब श्री गुरु गोपालशाद सिंह ने कहा कि आपने मेरी गवाही दी है और जिंदा ही समाधि ले ली है, इसलिए आपको जिंदा शहीद पीर के नाम से जाना जाएगा। आज के बाद आप झूठ और सच का फैसला करने वाले पीर के रूप में जाने जाएंगे।

सिख-मुस्लिम एकता का प्रतीक है यह गुरुद्वारा 
सिख धर्म के अनुसार सिख समाज सिर्फ गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं। वैसे तो किसी भी गुरुद्वारे में किसी भी तरह की मूर्ति पूजा वर्जित है लेकिन इस गुरुद्वारे में एक तरफ गुरु ग्रंथ साहिब हैं, दूसरी तरफ जिंदा शहीद पीर की मूर्ति है। मान्यता पूरी होने पर गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है।

गुरुद्वारे से जुड़े अनेक मामले 
इस गुरुद्वारे से जुड़े अनेक मामले हैं जिनमें लोगों ने कसम खाई और उन्हें सच झूठ का फैसला भी करवाया। फतेहगढ़ साहिब का एक मामला था जिसमें दो भाई एक ट्रैक्टर को लेकर आपस में उलझ गए थे। अंत में मामला जिंदा शहीद पीर गुरुद्वारे में पहुंचा। वहां पर बड़े भाई ने चाबी रख दी और कहा कि यदि ट्रैक्टर तेरा है तो चाबी उठा ले, लेकिन छोटे भाई ने चाबी नहीं उठाई। एक साल से लंबित मामला तत्काल खत्म हो गया। हिमाचल की नगर पंचायत संतोषगढ़ में जनप्रतिनिधियों ने पद बंटवारे को लेकर आपस में समझौता किया हुआ था। एक पक्ष मुकरा लेकिन यहां आने पर उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली।

ट्रक सोसायटी गगरेट के अध्यक्ष सतीश गोगी का कहना है कि  यह सच है। हम सब इस बार पीर बाबा  गोपालशाद सिंह शहीद गुरुद्वारा नूरपुर बेदी में सब सदस्यों को लेकर गए हैं। उन्हें कसमें दिलाई हैं। कुछ लोग अपनी आरसी नहीं लाए हैं क्योंकि ट्रक उनके अपने नहीं हैं। ऐसे ट्रक बाहर किए जाएंगे।

गुरुद्वारा नूरपुर बेदी के पाठी सरदार तरसेम सिंह का कहना है कि  वैसे तो यह गुरुद्वारा है और इसके अंदर गोपालशाद सिंह शहीद पीर की मूर्ति लगी हुई है। पीर बाबा के इतिहास की सही जानकारी किसी को नहीं है। यह अंग्रेजों के समय से यहां स्थापित है।

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