विश्व पर्यावरण दिवस: लोगो की सेहत बिगाड़ रहा प्रदूषण, सांस लेना हुआ मुश्किल

बरेली: बीते वर्षों में प्रदेश का तेजी से विकास हुआ। सड़कों का चौड़ीकरण और नए हाईवे से जहां यात्रा सुगम हुई। नए उद्योग लगने से रोजगार के साधन बढ़े। कॉलोनियों के बनने से शहरी क्षेत्र का विकास हुआ लेकिन, उतनी ही तेजी से वन क्षेत्र घटा है। जो पर्यावरण के लिहाज से बेहद चिंतनीय है। जंगलों के अंधाधुंध कटान और बढ़ते वाहनों से जहां शहर की हवा जहरीली हुई हैं। वहीं, धरती की कोख सूख रही है।

इसके अलावा फसल उत्पादन में बढ़ते रसायनिक उर्वरकों व कीटनाशक के उपयोग जल व भूमि दोनों दूषित हो चली है। रुहेलखंड मंडल के चारों जिलों में प्रदूषण के चलते जीना मुहाल हो चला है। तमाम प्रकार की बीमारियां असमय ही लोगों की जिंदगी लील रही है। अभी भी वक्त है चेत जाएं… वरना आने वाले वक्त में स्थिति और भी ज्यादा भयावह हो सकती है।

बरेली: महज 1.09 फीसद फॉरेस्ट कवर एरिया

जिले में कुल फॉरेस्ट कवर एरिया 1.09 प्रतिशत है, जो प्रदेश में महज 9.18 फीसद है। प्रदेश सरकार ने वर्ष 2021 तक कुल फॉरेस्ट कवर एरिया 15 फीसद करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। क्योंकि मानक के अनुसार यह 33 प्रतिशत होना चाहिए। इसके चलते जिला प्रशासन पौधारोपण के लिए माइक्रो प्लान बना रहा है।

दो वर्ष से नहीं दी अनुमति, फिर भी हुआ कटान

डीएफओ भारत लाल का दावा है कि जिले में पिछले दो वर्षों में किसी भी विभाग को एक भी पेड़ काटने की अनुमति नहीं दी है। इसके बावजूद एनएचएआइ और पीडब्ल्यूडी के साथ ही सेतु निगम ने भी सड़क चौड़ीकरण, नए हाईवे बनाने के साथ ही पुल निर्माण को पेड़ों का कटान किया।

वातावरण दूषित कर रहे 5.50 लाख वाहन

जिले में कुल 5.50 लाख वाहन है, जिसमें लगभग 3.50 लाख दो पहिया, 40 से 50 हजार चार पहिया, 22 से 23 हजार ट्रैक्टर, शेष 1.20 लाख से 1.30 लाख के बीच व्यवसायिक उपयोग के वाहन है। जिनसे निकलने वाला धुआं हवा में जहर घोल रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार शहर में आइवीआरआइ इलाके में प्रदूषण का स्तर 171 एक्यूआइ और व्यवसायिक में आइओसीएल सिविल लाइन पर प्रदूषण का स्तर 191 एक्यूआइ है।

एकवर्ष में गिरा दो फीसद जलस्तर

फॉरेस्ट कवर एरिया कम होने से प्रति वर्ष बारिश का औसत कम होता जा रहा है, जलस्तर लगातार नीचे गिर रहा है। मई माह में औसतन 35 एमएम बारिश होती है, लेकिन इस बार सिर्फ बूंदाबांदी होकर रह गई। इससे जल स्तर बीते एक वर्ष में लगभग दो प्रतिशत गिरा है।

विलुप्त हुई देवरिया नदी

जिले में देवरिया नदी विलुप्त हो चुकी है। आलम यह है कि रिकार्ड में दर्ज इस नदी का उद्गम स्थल भी अफसरों को ज्ञात नहीं है। वहीं, किला और नकटिया नदी बरसात को छोड़कर पूरे वर्ष दोनों नदियों की स्थिति नाले के सामान रहती है।

तप रहा पहाड़ का पड़ोसी

कुमाऊं पर्वतीय श्रृंखला से सटे होने के कारण जिला का मौसम एक दशक पहले तक खुशनुमा रहता था। दिन में भले ही गर्मी रहे, लेकिन रात में ठंडक रहती थी। एक दशक में शहर के तापमान में तेजी से बदलाव हुआ है। मई और जून माह में शहर का तापमान कई बार 44 डिग्री के पार गया है।

अंदर ठंडक, बाहर आग उगल रहे एसी

एसी कमरे के भीतर भले ही शीतलता प्रदान करता है लेकिन बाहर के तापमान में 0.5 से दो डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोत्तरी करता है। पर्यावरण, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विशेषज्ञ एसके सूरी ने बताया कि दिनभर में एक टन का एसी यदि आठ घंटे चलता है, तो उससे 19 हजार किलो जूल हीट निकलती है। इससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है।

बदायूं : हर वर्ष लाखों पौधे लगने के बाद भी क्षेत्र में पौधों की संख्या कम होती जा रही है। इस बार 493 हेक्टेयर जमीन में 39 लाख 24976 पौधे रोपे जाएंगे। जिसमें वन विभाग 12 लाख 40915 पौधे लगाएगा और अन्य विभाग 26 लाख 84059 पौधे रोपेंगे। जबकि पिछले वर्ष तकरीबन 16 लाख पौधे रोपने का लक्ष्य था।

कचरे से जहरीली हुई जमीन

कूड़ा निस्तारण के लिए जिले में कोई योजना नहीं है। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट भी अधूरा है। इससे कचरा खासकर पॉलीथीन पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रही है। वहीं, अस्पतालों से निकलने वाला बॉयो वेस्ट भी तमाम बीमारियां फैला रहा है।

150 फीट तक बोङ्क्षरग कराने की पड़ रही जरूरत

सोत नदी के साथ-साथ जिले से गुजरने वाली अरिल और भैंसोर नदी भी अपना अस्तित्व खो चुकी है। हालत यह है कि पहले 60 से 70 फीट पर बोङ्क्षरग से पानी मिलने लगता था, लेकिन अब 150 फीट तक बोङ्क्षरग कराने की जरूरत पड़ रही है। जल स्तर गिरने के पीछे बड़ा कारण है प्राकृतिक स्रोत पाटकर उस पर अवैध कब्जा किया जाना।

10 सालों में बढ़ गए 80 फीसद वाहन

तेजी से वाहनों की संख्या बढऩे से वायु प्रदूषण में कई गुना इजाफा हुआ है। पिछले दस साल में जिले में 80 फीसद वाहन बढ़ गए हैं जो ङ्क्षचताजनक है। इस समस्या से निपटने के लिए सुलभ पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम का कोई इंतजाम नहीं किया जा रहा है।

फैक्ट फाइल

वन्य क्षेत्र : 33000 हेक्टेयर

पौधरोपण का लक्ष्य : 49000 पौधे

हाईवे के नाम पर काटे गए पेड़ : 16785

बाईपास निर्माण के दौरान काटे गए पेड़ : 1321

हाईवे और बाईपास पर पौधरोपण की स्थिति : शून्य

वन रेंज : बदायूं, सहसवान, दातागंज, बिसौली।

पीलीभीत: गर्म हो गई ‘ठंडी सडक’

ज्यादा समय नहीं गुजरा, जब टनकपुर हाईवे को जिले के लोग ‘ठंडी सडक’ कहा करते थे। कितनी भी ज्यादा गर्मी पड़ रही होती थी लेकिन इस मार्ग पर गुजरने वालों को दोनों ओर लगे हरे भरे वृक्ष काफी सुकून देते थे लेकिन अब ‘ठंडी सड़क’ पर दोपहर के समय गुजरने वाले लोग तपिश से बेहाल रहते हैं। कारण है, नौगवां चौराहा से लेकर कलक्ट्रेट मोड़ तक गिने चुने पेड़ ही रह गए। बरेली-हरिद्वार, पीलीभीत-पूरनपुर-खुटार हाईवे के चौड़ीकरण के दौरान एक हजार से अधिक वृक्ष कट गए। ऐसे में अब इन हाईवे पर राहगीर छांव ढूंढते रह जाते हैं।

कॉलोनियों से कंक्रीट का जंगल बना शहर

बढ़ती आबादी के लिए आवासीय जरूरतें पूरी करने को शहर में जो नई कॉलोनियां विकसित हो रही है, उनमें हरियाली नाममात्र को भी नहीं है। पूरा शहर कंक्रीट के जंगल में परिवर्तित हो चुका है।

नाला सी दिखने लगी देवहा व खकरा नदी

कभी सदा नीरा रहने वाली देवहा और खकरा नदियां बरसात के दिनों को छोड़कर अन्य दिनों में पतले से नाले सरीखा दिखती हैं। गोमती की धारा को अविरल बनाने का अभियान भी ठंडा पड़ गया। विलुप्त होती नदियों को बचाने और तट पर दोनों ओर हरियाली की योजना भी फाइलों में सिमट कर रह गई। वहीं, जिले में प्रतिबंध के बाद भी साठा धान की फसल उगाई जा रही है जो भूजल को सोख रही है।

शाहजहांपुर: नौ माह में ही सूख गए 15 फीसद पेड़

जिले में 15 अगस्त 2018 को सार्वजनिक स्थलों पर 22.84 लाख पौधे लगाए गए। 30 वाटिकाएं स्थापित हुई। विकास भवन व कलेक्ट्रेट में मीडिया वाटिका, नक्षत्र वाटिका, प्रशासनिक वाटिका, बुद्ध वाटिका, जिला अस्पताल में धनवंतरि वाटिका, ग्राम पंचायतों में पंचवटी तथा हरी शंकरी वाटिका स्थापित की गई। खेत की मेड़ पर पेड़ का अभियान चला। शासन ने जियो टैङ्क्षगग अनिवार्य की। निरीक्षण में करीब 15 फीसद पौधों के सूखने की जानकारी सामने आई है।

फैक्ट फाइल

– 1.5 लाख कार, बाइक बढ़ा रहे वायु प्रदूषण

– 40 हजार एसी शहर का बढ़ा रहे तापमान

– 123.75 टन रोजाना निकलने वाला कचरा फैला रहा प्रदूषण

– 36 टन गीला कचरा नदियों का पानी कर रहा दूषित

– 125 औद्योगिक इकाइयां के अपशिष्ट से जहरीला हो रहा पर्यावरण

पर्यावरण मित्र : जो दे रहे जिंदगी

– 4 हजार हेक्टेयर वृक्षाच्छादित क्षेत्र

– 7 नदियां

– 700 तालाब

– 52 नर्सरी

– 250 रामगंगा मित्र

– 2000 पर्यावरण मित्र

– 2100 जैविक खाद केंद्र

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