नई दिल्ली। उत्तराखंड में बाबा नीम करोरी महाराज की कई कथाएं प्रचलित हैं. लोगों के मुताबिक बाबा 1940 के आस-पास उत्तराखंड के प्रवास पर थे. भवाली से कुछ किलोमीटर आगे जाने के बाद बाबा करोरी एक छोटी सी घाटी के पास रुके और सड़क किनारे बनी पैरापट पर बैठ गए. सामने पहाड़ी पर दिखाई दिए एक आदमी को उन्होंने आवाज दी पूरन…ओ पूरन…पूरन यहां आओ. पूरन नीचे आया और कम्बल लपेटे अजनबी से अपना नाम सुनकर अचंभित रह गया. अजनबी व्यक्ति ने मुस्कराते हुए कहा ‘अचरज मत कर हम मैं तुझे पिछले कई जन्मों से जानता हूं. मेरा नाम बाबा नीम करोरी हैं. हमें भूख लगी है. हमारे भोजन की व्यवस्था कर’.
पूरन ने घर जाकर अपनी मां से बताया कि नीचे पैरापट पर बाबा नीम करोरी बैठे हैं और भोजन मांग रहे हैं. घर में दाल-रोटी बनी थी. पूरन की मां ने वही परोस दी. बाबा ने भोजन के बाद पूरन से गांव के दो-तीन लोगों को बुलाकर लाने को कहा. बाबा उन सब को लेकर नदी के पार जंगल में गये और उनसे एक जगह खोदने को कहा. बाबा ने कहा- पत्थर को खोदो, यहां गुफा है, गुफा में धूनी है. अचरज में पड़े लोगों ने जब उस जगह को खोदा तो ऐसा लगा कि जैसे गुफा में धूनी किसी ने अभी ही लगाई हो, धुनी के पास चिमटा भी गड़ा था. पूरन और गांव वाले हैरान थे कि उन्हें यहां पूरा जीवन हो गया और किसी को इस गुफा के बारे में पता नहीं था.
‘पत्थरों के नीचे गुफा, धूनी और चिमटा, हवन कुण्ड की जानकारी किसी साधारण व्यक्ति को तो हो नहीं सकती. कंबल लपेटे यह कोई आम इंसान नहीं है’ लोग यही सोच रहे थे कि बाबा बोल पड़े, कि हमारे पास कोई चमत्कार-वमत्कार नहीं है. चलो अब यहां से यहां हनुमान बैठेगा. बाबा ने नदी से पानी मंगवाया और स्थान का शुद्धिकरण किया. साथ ही वहां कुटिया नुमा जगह बना दी. कुछ दिन बाद बाबा ने पूरन को बताया कि यह सोमवारी बाबा की तपस्थली है. इसका पुनरुद्धार करना है. यही कुटिया आज कैंचीधाम के रूप में विख्यात है.
पंडित गोबिंद बल्लभ पंत और पंडित नारायण दत्त तिवारी के अनेक किस्से-
बाबा नीम करोरी से जुड़े पंडित गोबिंद बल्लभ पंत और पंडित नारायण दत्त तिवारी के अनेक किस्से हैं. इन दोनों परिवारों के लोग आज भी बाबा का आशीर्वाद लेने अक्सर कैंची धाम हाजिरी लगाते हैं. चूंकि, आस्था-भक्ति और विश्वास निजी जीवन के अंग हैं. इसलिए इनमें से किसी के अनुभव अपने शब्दों में बताना उचित नहीं है, फिर भी एक छोटी से घटना के बारे में ही जिक्र जरूरी है. पंडित गोबिंद बल्लभ पतं केंद्रीय मंत्री थे, संभवतः गृहमंत्री. उनकी तबियत खराब थी. तभी अचानक खबर आयी कि पंत जी नहीं रहे. बाबा को यह खबर सुनाई तो वो चिल्लाकर बोले- अफवाह है यह. पंत का जीवन अभी शेष है. बाबा जी की बात सही निकली.
अनसुने किस्से-
यूं तो बाबा जी के बहुत से अनसुने किस्से हैं. यहां सिर्फ दो. पहला बांग्लादेश का. बाबा दिल्ली के बिड़ला मंदिर में बनी कुटिया में विश्राम कर रहे थे. उनके पास कुछ बांग्लादेशी मित्र के साथ बाबा के एक भक्त आए. बो बांग्लादेशी बहुत व्याकुल स्थिति में था. इससे पहले कि वो बांग्लादेशी बाबा को अपनी समस्या बताता, बाबा ने उससे कहा तुम्हारा भाई – दुश्मनों की कैद से जल्दी बाहर आयेगा. वो देश का शहंशाह बनेगा. और इतना कह कर बाबा बोले जाओ अब तुम्हें अपना समय भाई की अगवानी की तैयारियों में लगाना है.
उस समय के हालात में उस शख्स को यह सब मुमकिन नहीं लग रहा था. ऐसा कैसे होगा, कब होगा तमाम तरह के सवाल थे उसके मन में थे. क्योंकि उसका भाई पाकिस्तान के मियांवाली जेल की काल कोठरी में था और सरकार ने उसे सजा-ए-मौत ऐलान कर दिया था. लेकिन बाबा ने उसे आगे सवाल पूछने का मौका नहीं दिया और बाहर जाने का इशारा कर दिया.
क्या आप जानते हैं बाबा से सवाल करने वाला वो शख्स कौन था, वो आजाद बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान के छोटे भाई थे.
दूसरा किस्सा श्रीलंका से जुड़ा है-
बाबा शिवानंद के शिष्य निर्मलानंद कैंची धाम पहुंचे. बाबा का दरबार लगा हुआ था. बाबा ने निर्मलानंद से पूछा, तुमने कैंची जैसा कोई और स्थान देखा है? निर्मलानंद के मुंह से बेसाख्ता निकला- श्रीलंका का कैंडी. कैंची आश्रम की तरह वहां माणिक गंगा प्रवहित होती है. बाबा ने फिर पूछा- क्यों निर्मलानंद. वहां नारियल के बड़े-बड़े पेड़ हैं और माणिक गंगा में हाथी स्नान के लिए आते हैं. अवाक खड़े निर्मलानंद बोले- जी महाराज. जबकि, बाबा नीम करोरी महाराज, (उपलब्ध जानकारी के अनुसार) कभी श्रीलंका नहीं गये।
पूरन किसी भ्रम में न पड़ जाए इसलिए बाबा ने अपने एक भक्त से कह कर कैंचीधाम में ‘रोडवेज बसों का स्टॉप’ बनवाकर उसका केयर टेकर नियुक्त करवा दिया. बाबा चाहते थे कि उन्हें कोई ‘भगवान’ न समझ ले. जो ज्यादा नजदीक आने या समझने की कोशिश करता, वो उसे तुरंत दूसरी ओर मोड़ देते थे. बाबा की लीलाओं को बाबा के भक्त सिर्फ उतना ही समझ पाये जितना उन्होंने समझाना चाहा.
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