जाट मतदाता बिल्कुल स्पष्ट था कि वो उस उम्मीदवार को वोट देगा जो बीजेपी को हराने में सक्षम है. रोहतक, झज्जर, सोनीपत, बाहदुरगढ़ में उसने कांग्रेस को वोट दिया तो हिसार और सिरसा में उसने जेजेपी को चुना.
75 प्रतिशत नौकरियां सिर्फ़ हरियाणा के लोगों को ही मिलनी चाहिएं का नारा देकर दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी का दामन थाम लिया. दुष्यंत चौटाला 24 अक्टूबर को चुनाव परिणाम आने के बाद कई बार कह चुके थे कि यह जनादेश मनोहरलाल खट्टर सरकार के ख़िलाफ़ है. लेकिन उन्होने एक बार भी यह नहीं कहा कि वो जनादेश के ख़िलाफ़ नहीं जाएंगे. उन्होने कहा कि वो अपने विधायकों से बात करेंगे, उसके बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होगी. इसके बाद ही यह फ़ैसला किया जाएगा कि जननायक जनता पार्टी किसके साथ जाएगी. हांलाकि जैसे ही यह संकेत मिलने शुरू हुए कि जेजेपी को दस सीटें मिल सकती हैं, बीजेपी ने उनसे संपर्क साध लिया था. ख़बरों के अनुसार सरदार प्रकाश सिंह बादल के माध्यम से दुष्यंत को संदश भेजा गया. प्रकाश सिंह बादल चौटाला परिवार के गहरे मित्र हैं. लेकिन मसला यह था कि लोगों को क्या कहा जाए. जनादेश के ख़िलाफ़ जाना होगा तो बहाना तो चाहिेए और शुक्रवार दोपहर तक उन्होने एलान कर दिया कि वो उसी पार्टी के साथ जाएंगे जो नौकरियों में हरियाणा के लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण देगा.
शाम को दुष्यंत अनुराग ठाकुर के साथ गृहमंत्री अमित शाह से मिल लिए. अनुराग ठाकुर केन्द्रीय मंत्री हैं और हिमाचलप्रेदश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे हैं.
दुष्यंत चौटाला ने तर्क दिया है कि उनकी पार्टी के समर्थकों में बड़ी तादाद नौजवानों की है. इसलिए उन्होने रोज़गार के मसले को प्राथमिकता पर रखा है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि बेरोज़गारी हरियाणा में एक बड़ा मुद्दा है. हरियाणा में बेरोज़गारी की दर 28 प्रतिशत है जो देश में सभी राज्यों की तुलना में सबसे अधिक बताई जाती है. चुनाव में भी बेरोज़गारी पर लोग खुल कर बोल रहे थे. इसके साथ ही आर्थिक मंदी भी राज्य में बड़ा मुद्दा था जिसकी वजह से गुड़गांव, बावल, मानेसर और दूसरे औद्योगिक क्षेत्रों से लोगों को लगातार नौकरी से निकाला जा रहा था. हरियाणा में लोग यह भी कह रहे थे कि प्राईवेट कंपनी स्थानीय लोगों को नौकरी देने से गुरेज़ करते हैं.
यूपी उपचुनाव: 11 सीटों पर मतगणना खत्म, सपा ने भाजपा से छीनी यहा की सीट
रोज़गारकाखोखलाबहाना
लेकिन क्या दुष्यंत चौटाला ने हरियाणा में बेरोज़गारी ख़त्म करने के लिए यह कदम उठाया है. यह मान लेना हास्यस्पद ही होगा. हरियाणा के लोग आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी से परेशान हैं इसलिए उन्होने बीजेपी को सज़ा दी. दुष्यंत चौटाल यह बताना चाहते हैं कि जिस पार्टी को लोगों ने बेरोज़गारी और आर्थिक मंदी के लिए ज़िम्मेदार माना, वही बीजेपी अब इन मुद्दों को हल कर देगी. सबसे बड़ा सवाल यह है कि किस क़ानून के तहत हरियाणा सरकार प्राईवेट कंपनियों को यह कह सकती है कि वो 75 प्रतिशत नौकरियां सिर्फ़ हरियाणा के लोगों को दे. अनुभव यह बताता है कि भारतीय कॉरपोरेट ने जहां भी किसानों या आदिवासियों से ज़मीने लीं, वहां भी कभी प्रभावित परिवारों को नौकरी देने का वादा पूरा नहीं किया. इसके अलावा कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉंसिबिलिटी के मामले में भी उसका रिकॉर्ड बेहद ख़राब है. इस समय जब उद्योग सरकार पर लेबर क़ानूनों और दूसरे नियमों में ढील देने का दबाव बना रहा है, उस समय बीजेपी सरकार की यह हिम्मत होगी कि वो उद्योग को कहे कि वो आरक्षण लागू करे. दरअसल यह बात दुष्यंत चौटाला भी अच्छी तरह से जानते हैं. लेकिन उन्हे जनादेश के ख़िलाफ़ जाने के लिए एक बहाने की ज़रूरत थी.
जाटऔरकिसानकोठगा
दुष्यंत चौटाला की जेजेपी को कुल दस विधानसभा सीटें मिली हैं और ये लगभग सभी सीटें हिसार, सिरसा और जींद में मिली हैं. इसका एक बड़ा कारण था राज्य के किसानों में मनोहरलाल खट्टर से नाराज़गी. राज्य में किसान फ़सलों के दाम से लेकर पानी की समस्या तक से त्रस्त है. पिछले पांच साल में मनोहरलाल खट्टर की नीतियों से हरियाणा का किसान निराश था. इसके अलावा हरियाणा की जाट बिरादरी हरियाणा में ठगा हुआ महसूस कर रही थी. इसकी एक वजह तो स्पष्ट थी कि मनोहरलाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाए जाने से हरियाणा की राजनीति में जाटों की हैसियत कम हुई. बीजेपी के कई जाट नेता जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे उनके अरमानों पर नरेन्द्र मोदी ने पानी फेर दिया और खट्टर को मुख्यमंत्री बना दिया. इसके अलावा 2016 के जाट आरक्षण आंदोलन में 40 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई. इसके बावजूद जाटों को ओबीसी का आरक्षण नहीं मिल पाया. इस बार के विधानसभा चुनावों में स्पष्ट था कि जाट मतदाता धोखा नहीं खाना चाहता था और बीजेपी को सबक सिखाने के मूड में था.
जाट मतदाता इस कदर बीजेपी से नाराज़ था कि उसने खट्टर के जाट मंत्रियों को बड़े अंतर से हराया. कैप्टन अभिमन्यु, सुभाष बराला या फिर ओमप्रकाश धनखड़ सभी को भारी हार का सामना करना पड़ा. जाट मतदाता बिल्कुल स्पष्ट था कि वो उस उम्मीदवार को वोट देगा जो बीजेपी को हराने में सक्षम है. रोहतक, झज्जर, सोनीपत, बाहदुरगढ़ में उसने कांग्रेस को वोट दिया तो हिसार और सिरसा में उसने जेजेपी को चुना.
आख़िरक्योंगएदुष्यंतबीजेपीकेसाथ
नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद जिस तरह से विपक्ष के नेताओं पर सीबीआई, इंकम टैक्स और ईडी के मुकदमें दर्ज हुए हैं, उसके बाद यह कहावत बन गई है कि अगर आपकी छत पर विपक्ष का झंडा भी लगा है तो आप पर इनमें से किसी ना किसी एजेंसी का छापा पड़ना निश्चित है. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा पर फ़िलहाल कम से कम दस मुकदमे दर्जा हैं. इस माहौल में दुष्यंत चौटाला शायद बीजेपी से पंगा ना लेना चाहते हों. लेकिन लोगों की नज़र में जो सबसे बड़ा कारण है अपने पिता अजय सिंह चौटाला को जेल से बाहर लाना. अजय सिंह चौटाला और उनके पिता ओमप्रकाश चौटाला को सुप्रीम कोर्ट से टीचर भर्ती मामले में भ्रष्टाचार के केस में दस साल की सज़ा मिली है. अजय सिंह चौटाला फ़िलहाल दिल्ली की तिहाड़ जेल में हैं.
राजनीति में कभी किसी को ख़त्म नहीं माना जाना चाहिए, हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में यह साबित हुआ है. दोनों ही राज्यों में जब लड़ाई को एकतरफ़ा माना जा रहा था तो लोगों ने एक बेहद लचर विपक्ष को भी प्राणदान दे दिया. सो मैं यह नहीं कहता कि दुष्यंत चौटाला का यह कदम उन्हे राजनीतिक तौर पर ख़त्म कर देगा. लेकिन वो जनादेश के ख़िलाफ़ गए हैं और यह उन्हे महंगा पड़ सकता है.
Leave a Reply