नई दिल्ली। हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) और जननायक जनता पार्टी(जेजेपी) के बीच गठबंधन पर मुहर लग गई है। जहां मुख्यमंत्री भाजपा का होगा तो वहीं उपमुख्यमंत्री जेजेपी की तरफ से होगा। दरअसल जेजेपी ने भाजपा का साथ देने के लिए अपनी कुछ शर्तें रखी थीं, जिसमें उपमुख्यमंत्री का पद और राज्यसभा में एक सीट की मांग की थी।
अमित शाह ने मनोहरलाल खट्टर, जेपी नड्डा, अनिल जैन, बीएल संतोष के साथ काफी मंथन करने के बाद जेजेपी के दुष्यंत चौटाला की मांगों को मान लिया। जिसके बाद हरियाणा में सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया है। यहां गौर करने वाली बात ये है अमित शाह द्वारा दुष्यंत चौटाला की मांगों को मानने के पीछे तीन कारण अहम बताए जा रहे हैं।
पहला कारण- दरअसल भाजपा हरियाणा में अगर निर्दलीय विधायकों के साथ सरकार बनाती तो वो संतुलन नहीं देखने को मिलता जो जेजेपी के साथ मिलेगा। आए दिन निर्दलीय विधायकों को संभालना पड़ता, और सरकार की स्थिरता पर हमेशा खतरा बना रहता। इसलिए अमित शाह ने जेजेपी के साथ जाने को ग्रीन सिगनल दिया। जेजेपी और भाजपा को एक साथ करने में केंद्रीय राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर और दुष्यंत चौटाला की दोस्ती का खास रोल है।
दूसरा कारण- जिस तरीके से 11 महीनों में दुष्यंत चौटाला ने अपनी नई पार्टी खड़ी कर हरियाणा में जाट वोटरों में विश्वास पैदा किया है, उससे अमित शाह भी काफी प्रभावित दिखे। दुष्यंत चौटाला की जाट वोटरों में पकड़ का फायदा भाजपा को दिल्ली में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में मिल सकता है।
तीसरा कारण- हरियाणा में सत्ता से बाहर होने के बाद अन्य राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा की किरकिरी होने का खतरा था, जिसको दुरुस्त करने के लिए अमित शाह ने हरियाणा में सरकार बनाने के लिए जेजेपी को हां कहने में देर ना लगाई। इसकी एक वजह और है जो दिल्ली विधानसभा से जुड़ी हुई है। बता दें कि दिल्ली में करीब 7 लाख जाट मतदाता हैं। 10 सीटों पर जीत का गणित भी यही जाट तय करते हैं। यही नहीं, बल्कि पूर्वी दिल्ली की 3 विधानसभा सीटों पर भी जाट वोट दूसरे नंबर पर हैं। भाजपा यहां भी दुष्यंत के जाट चेहरे का फायदा लेना चाहती है।
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