गर्भगृह में विराजे ठाकुर के दर्शन तो आपने खूब किए लेकिन एक मंदिर ऐसा भी है जहां कांच की कला असंख्य कृष्ण एक साथ दिखाती है। आंखों के सामने महारास का दृश्य जीवंत हो उठता है। दरअसल यह मंदिर है ही कांच का। कांच की जड़ाई वाला यह वृंदावन में विरला है। आइए, आपको ज्ञान गुदड़ी के कांच मंदिर ले चलते हैं।
बुंदेलखंड रियासत विजावर के राजा सावंत सिंह की इस अनमोल विरासत को निशाना वाकई लाजवाब है। जगमोहन और गर्भगृहों में रंग बिरंगे कांच की जड़ाई है। छत पर कांच की सुंदर पच्चीकारी है। छोटे-छोटे कांचों में झांकने पर आप खुद को उनमें प्रतिबिंबित पाते हैं। गर्भगृह के चारों ओर छत पर्यंत तक छोटे कांच की ऐसी जड़ाई की गई है कि उन सबमें श्यामा श्याम के विग्रह नजर आते हैं। असंख्य श्रीविग्रहों के दर्शन कर हृदय आनंदित हो जाता है। कला की दृष्टि से उच्च स्थान रखने वाले इस मंदिर में पंडावाद हावी है। मंदिर प्रबंधन ने धर्म को पूर्ण रूप से व्यवसाय बना दिया है। देश-विदेश से आने वाले तीर्थ यात्रियों को मंदिरों के दर्शन कराने वाले पंडे भी इसका हिस्सा।
यहां ठाकुर युगल किशोर विराजमान हैं। सेवायत लाड़िली हरि गोस्वामी बुंदेलखंड के राज गुरु हरिराम व्यास की वंश परंपरा में से हैं। विजावर महाराज ने बेल्जियम से कांच मंगाकर मंदिर का निर्माण कराया।
वर्मा से खिंची चली आई भक्ति
भक्ति और भगवान के मिलन को कोई नहीं रोक पाता। मीलों की दूरी भी नगण्य हो जाती है और भक्त खिंचा चला आता है। वर्मा के राजगुरू अचिंत्य देव भी सब कुछ छोड़ अपने ठाकुर के पास आ गए और यहीं के हो गए। वर्मा वाला मंदिर उसी कृष्ण भक्त की विरासत है । गोपेश्वर मंदिर के पास स्थित इस प्राचीन स्थान को वर्मा वाली कुंज भी कहते हैं। अचिंत्यदेव ने सन् 1928 में इस मंदिर का निर्माण कराया था। वर्मी शैली में बने इस मंदिर में रासमाधव के सुंदर दर्शन हैं। गर्भगृह का द्वार पुरातन वैभव का साक्ष्य है। चंदन की लकड़ी के द्वार पर सोने की पॉलिश की गई है। मंदिर अचिंत्यदेव के वंशजों के हाथों में है। सेवायत अनंत बिहारी शर्मा की मां कलावती शर्मा ने बताया कि “अचिंत्य देव कलकत्ता के ब्रह्मण परिवार में जन्मे थे। वर्मा के राजा उन्हें वहां से अपने साथ ले गए और राज पुरोहित बनाया। संतों का मन राजाशाही में कहां रमता है। एक दिन वह वृंदावन चले आए। इस स्थान पर 11 वर्ष रहे। ठाकुर के दर्शन पाने को अन्न जल छोड दिया। यमुना जल पीकर कर रहे तब राधा कृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए। मंदिर में निंबार्क संप्रदाय से पूजा होती है।”
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