नई दिल्ली। रावण के मर्दन के बाद भगवान श्रीराम जब वापस सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे तो उसके कुछ ही समय बाद उन्हें रावण के पराक्रमी भाई सहस्रानन से युद्ध करना पड़ा. उस युद्ध में सहस्रानन ने राम समेत उनकी सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया था।
इस प्रसंग का वर्णन अदभुत रामायण में है. ये संस्कृत भाषा में रचित 27 सर्गों का काव्य विशेष है. इस ग्रन्थ के प्रणेता ‘वाल्मीकि’ थे. लेकिन ग्रन्थ की भाषा और रचना से ऐसा प्रतीत होता है कि बाद में ‘अद्भुत रामायण’ की रचना की गई।
क्यों मुस्कुराने लगी थीं सीता
दरअसल राज्याभिषेक होने के उपरांत जब मुनिगण राम के शौर्य की प्रशंसा कर रहे थे तो सीता जी मुस्कुरा उठीं. इस मुस्कुराहट में रहस्य था. जब राम ने सीता जी से हँसने का कारण पूछने पर उन्होंने जो जवाब दिया, उससे श्रीराम को एक और युद्ध की तैयारी करनी पड़ी.
तब सीता ने सहस्रानन का जिक्र किया
सीता ने राम के पूछने पर बताया कि आपने केवल ‘दशानन’ (रावण) का वध किया है, लेकिन उसी का भाई सहस्रानन अभी जीवित है. उसकी हार के बाद ही आपकी जीत और शौर्य गाथा का औचित्य सिद्ध हो सकेगा. ये सुनने के बाद श्रीराम ने अपनी चतुरंग सेना सजाई. उनकी इस सेना में विभीषण, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान आदि सभी थे.
राम की बड़ी सेना सहस्रानन से लड़ने पहुंची
उस सेना के साथ उन्होंने समुद्र पार करके सहस्रस्कंध पर चढ़ाई की, जहां सहस्रानन का शासन था. सीता भी इस सेना के साथ थीं. युद्ध स्थल में सहस्रानन ने मात्र एक बाण से ही श्रीराम की समस्त सेना एवं वीरों को अयोध्या में फेंक दिया.
सीता ने काली का रूप धरकर उसे मारा
अद्भुत रामायण कहती है कि रणभूमि में केवल श्रीराम और सीता रह गए. राम अचेत थे. तब सीता जी ने ‘असिता’ अर्थात् काली का रूप धारण किया. और तब सहस्रमुख का वध किया.
कई काव्यग्रंथों ने भी इसकी चर्चा की
हिन्दी में भी इस कथानक को लेकर कई काव्य ग्रंथों की रचना हुई है, जिनका नाम या तो ‘अद्भुत रामायण’ है या ‘जानकीविजय’. 1773 ई. में पण्डित शिवप्रसाद ने, 1786 ई. में राम जी भट्ट ने, 18वीं शताब्दी में बेनीराम ने, 1800 ई. में भवानीलाल ने तथा 1834 ई. में नवलसिंह ने अलग-अलग ‘अद्भुत रामायण’ की रचना की. 1756 ई. में प्रसिद्ध कवि और 1834 ई. में बलदेवदास ने ‘जानकीविजय’ नाम से इस कथानक को अपनी-अपनी रचना का आधार बनाया।
Leave a Reply