मंदसौर। खेती-किसानी का काम करने वाले कैलाश गुर्जर आज घर पर अपना कुछ जरूरी काम कर रहे थे. कुछ ही दूर पर कैलाश की आठ साल की बेटी खेल रही थी। तभी कैलाश की निगाह दरवाजे पर खड़ी एक दूसरी मासूम पर गई। कैलाश इस मासूम को नहीं पहचानते थे.।मैली-कुचैली सी फ्रॉक और गंदे बेरतकीब बालों को देख कर कैलाश को लग गया कि यह बच्ची पास की बस्ती से आई है। कैलाश कुछ कहते इससे पहले उनकी बेटी की निगाह उस मासूम पर पड़ गई। वो अपना खेल छोड़, उस मासूम की तरफ बढ़ चली। कैलाश के दिल और दिमाग में कोरोना का खौफ कौंधा और वो दौड़ पड़े अपनी बेटी को उठाने के लिए।
भूख लगी है, रोटी चाहिए
कुछ सेकेंड ही लगे होंगे कैलाश को कुछ फीट की वह दूरी तय करने में. फुर्ती से अपनी बेटी को उठाया और हांफते हुए पूछा, कौन हो, क्या चाहिए। दरवाजे पर खड़ी मासूम ने बेहद सपाट सा जवाब दिया- भूख लगी है, रोटी चाहिए. मासूम की बात सुनकर कैलाश को जैसे तेज झटका लगा हो. वो बोले- रुको यहीं, यहीं लाकर देता हूं. जिसके बाद, कैलाश अपनी बेटी के साथ घर के भीतर चले गए. लौटकर आए तो कैलाश की बेटी के हाथ में रोटी और बिस्कुट थे. उनकी बेटी ने घर के बाहर खड़ी मासूम को रोटी और बिस्कुट दे दिया. मासूम अब घर जाने को मुड़ी ही थी, तभी कैलाश ने पूछा- कौन-कौन है घर में. मासूम बोली, पापा-मम्मी और भाई. वो खाना नहीं लाते के सवाल पर जवाब आया, पता नहीं, घर में सब भूखे हैं.
पापा, ये लोग भूखे क्यों हैं?
कैलाश उस मासूम को एक बार फिर रुकने को कह घर चले जाते हैं. इस बार जब कैलाश घर से बाहर आए तो उनके हाथ में आटा, दाल, चावल से भरा हुआ थैला था. यह थैला उतना ही भरा हुआ था, जिनता भार वो मासूम उठा लेती. राशन का सामान देख कर मासूम का चेहरा खिल जाता है और वो अपनी बस्ती के लिए निकल पड़ती है. पीछे से यह सब देख रही कैलाश की बेटी, उससे पूछती है- पापा, लोग भूखे क्यों है. कैलाश जवाब देने के मुंह जरूर खोलते हैं, लेकिन उन्हें समय नहीं आता कि कोरोना, मौत, लॉकडाउन इस सब के बारे में अपनी आठ साल की बेटी को क्या बताएं. कुछ न सूझता देख, कैलाश बिना कोई जवाब दिए अपने ट्रैक्टर की तरफ चल दिए. उन्होंने अपने ट्रैक्टर की ट्राली को गेहूं से भरा और निकल पड़े कलेक्टर दफ्तर की तरफ।
मासूम को मिला जवाब
कलेक्टर दफ्तर की तरफ से बताए गई जगह पर कैलाश ने इस गेहूं को दान किया और घर के पास पड़ने वाली बस्ती की व्यथा बताई. यहीं पर, कुछ दूसरे किसानों से कैलाश की मुलाकात हो गई. कैलाश ने उनसे कहा- भाई, आफत के इस समय में जितना बन पड़े उन गरीबों के नाम पर दान करो, जिनके घर में अनाज का एक दाना नहीं है. मन करे एक क्विंटल दान करो, न हो तो एक किलो ही कर दो. लेकिन, भूखे पेटों के लिए कुछ दो जरूर. कैलाश गुर्जर की बात लोगों के दिल में इस कदर घर कर गई कि हर कोई दान करने के लिए आ गया. घर पहुंच कर कैलाश ने बेटी को जवाब दिया, लाडो… उनके घर का सामान खतम हो गया था, मैं दे आया हूं, अब वो भूखे नहीं रहेंगे. कैलाश को अब इस बात का संतोष था कि उनकी बेटी के एक सवाल ने इलाके के कितनों घरों के चूल्हें में फिर से आग फूंक दी है।
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