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महेश वाष्र्णेय
यूनिक समय, मथुरा। उम्र करीबन दस साल। सिर पर बीनी हुई लकड़ियों के ग़ट्टर का बोझ। यदि वह इन लकड़ियों को नहीं लेकर पहुंचेगी तो घर में चूल्हा नहीं जलेगा। इस मासूम लड़की के शब्द सुनकर हर कोई अवाक रह जाएगा। मासूम दिखाई दे रही इस बेटी के सिर पर लकड़ियों के बोझ को देखकर लगता है कि सरकारी योजनाएं सिर्फ उनको मिलती है, जिनके पास सब कुछ होता है।
पढ़ने लिखने की उम्र में घर का चूल्हा जलाने की जिम्मेदारी निभाने वाली मजदूर की बेटी का नाम ऐसा था, कि सुनकर हर कोई अचभ्भित रह जाएगा। लेकिन उसका नाम काल्पनिक रख दिया (योजना), लेकिन योजना के नाम पर उसके और उसके परिवार के पास कुछ नहीं था। घर में इन लकड़ियों से जब चूल्हा जलेगा तो धुआं निकलेगा और आंखों से आंसू भी निकलेंगे, लेकिन याद आएगी उज्ज्वला योजना के अंतर्गत बांटे गए गैस सिलेंडरों की। सरकार ने खूब ढिढोंरा पीटा।
अब इस बेटी की वेबसी ने सरकार की योजनाओं की पोल खोल कर रख थी। लकड़ियों को एकत्रित कर सिर पर लेकर जा रही बेटी के कदम डगमगा भी रहे थे, लेकिन उसकी हिम्मत को दाद देनी पड़ेगी कि वह अपने भाई और माता-पिता की भूख मिटाने के लिए जंगल से लकड़ी लेकर घर लेकर जा रही थी। घर में यह लकड़ी पहुंचेगी तो चूल्हा जलेगा और फिर तैयार होगी रोटी और सब्जी। इस तरह से कितनी और बेटियां होंगी। सरकार और समाज की आंख खोल देनी वाली इस तस्वीर से सबक लेने की जरुरत है।
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