
नई दिल्ली। लद्दाख के इंजीनियर, शिक्षाविद और इनोवेटर सोनम वांगचुक ने ट्विटर पर ऐलान किया कि उनकी टीम ने एक ऐसा सोलर हीट वाला टेंट तैयार किया है, जो लद्दाख के बेहद ठंडे मौसम और हाई अल्टिट्यूड इलाकों में तैनात आर्मी जवानों के लिए कारगर साबित होगा। सोनम ने यह भी ट्वीट में बताया कि जब जाड़े की रात में बाहर तापमान -14 डिग्री सेल्सियस होगा, तो टेंट के भीतर 15 डिग्री मेंटेन रहेगा। यही नहीं, सोनम के मुताबिक इस टेंट के लिए केरोसिन नहीं चाहिए और यह पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल है।
यह इस किस्म का दूसरा टेंट है, जो पहले का और विकसित रूप है, जिसे सोनम ने करीब 10 साल पहले विकसित किया था. ठंडे इलाकों के चरवाहों के लिए सोनम ने बरसों पहले सोलर हीट वाला एक प्रोटोटाइप तैयार किया था. सोनम ने कहा हालांकि सरकार ने इसकी जगह कॉटन टेंट ही बांटना जारी रखा, जिसे वो गलत फैसला ठहराते रहे. अब सोनम के नए टेंट के बारे में जानिए, जिसे खास तौर से आर्मी के लिए विकसित किया गया है.
क्यों पड़ी इस इनोवेशन की ज़रूरत?
पिछले साल से चूंकि चीन के साथ सीमा पर तनाव बढ़ा तो भारत ने लद्दाख के बॉर्डर पर भारी संख्या में जवानों और सुरक्षा बलों की तैनाती की। हुआ यह कि सर्दियों के मौसम में यहां खुद को गर्म रखने के लिए सैनिकों को केरोसिन जलाना पड़ता है, जिससे पहले तो राज्य पर खर्च बढ़ता है, दूसरे पर्यावरण को नुकसान होता है, तीसरे सैनिकों की सेहत को खतरा और चौथे आग लगने की दुर्घटनाओं की आशंका। इन सभी फैक्टरों के चलते सोनम ने बेहतर आइडिया पर काम कियां
टेंट की तकनीक क्या है?
इस सोलर हीटेड टेंट की खास बात यही है कि यह पोर्टेबल है और इसे आप किसी भी जगह पर खोलकर तान सकते हैं। द बेटर इंडिया पोर्टल को दिए एक इंटरव्यू में दुनिया भर में मशहूर लद्दाखी इनोवेटर सोनम ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि टेंट को बनाने में उन्होंने किस मटेरियल का इस्तेमाल किया क्योंकि इसके लिए उन्होंने पेटेंट का दावा किया हुआ है. लेकिन यह ज़रूर कहा कि जिस तरह से सोलर मकान बनते हैं, उन्हीं वैज्ञानिक सिद्धांतों पर यह टेंट आधारित है।
कैसे काम करता है टेंट?
सोनम ने इस इंटरव्यू में बताया कि धूप से गर्मी को स्टोर करने के लिए टेंट में बहुत ही सामान्य डिज़ाइन है। पानी के ज़रिये धूप की गर्मी को स्टोर कर लिया जाता है, जो रात के ठंडे तापमान में काम आती है।
कितना भारी है यह टेंट?
इस टेंट को पूरी तरह डिसमेंटल किया जा सकता है और एक एक पुर्ज़ा वापस जोड़कर इसे किसी भी जगह फिर लगाया जा सकता है. कुल मिलाकर इस टेंट का वज़न आकार के मुताबिक 30 किलोग्राम के भीतर है. यानी इसे लोकल पोर्टर या जवान अपनी पीठ या कंधे पर कैरी कर सकते हैं।
कितने जवानों के लिए है एक टेंट?
इस टेंट को कस्टमाइज़ किया जा सकता है यानी ज़रूरत के मुताबिक इसे 10 या 5 जवानों के हिसाब से बनाया जा सकता है या फिर किसी एक अफसर के लिए. अगर 10 जवानों के लिए टेंट बनाना हो तो इसके 40 पीस की ज़रूरत होगी.
कितनी है कीमत?
इस सोलर हीटेड टेंट प्रोटोटाइप की कीमत 5 लाख रुपए बताई गई है. वहीं सोनम ने यह भी कहा कि इसके और बेहतर वर्जन की कीमत 9 से 10 लाख रुपये तक भी हो सकती है. सोनम का दावा है कि उनके टेंट तकरीबन आधी कीमत में करीब दोगुना स्पेस के साथ ही आसान ढुलाई की सुविधा देते हैं.
क्या यह सिर्फ सेना के लिए है?
नहीं, सोनम का मकसद इन टेंटों को पर्यटन के उद्देश्य को भी पूरा करना है. लद्दाख के ठंडे इलाकों में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए क्विक और मूवेबल जगह के लिए इन टेंटों का इस्तेमाल संभव है. इसके अलावा, इन इलाकों में बॉर्डर रोड जैसे निर्माण कार्यों में लगे मज़दूरों के लिए भी टेंटों की उपयोगिता है।
क्या आर्मी की दिलचस्पी है?
कहा गया है कि सोनम फिलहाल भारतीय आर्मी के साथ इन टेंटों को लेकर बातचीत कर रहे हैं. आर्मी इन टेंटों को पैंगोंग झील के रास्ते में चांग ला पास पर टेस्ट कर सकती है. तेज़ हवाओं और कठिन मौसम के इलाके में टेस्ट के बाद आर्मी मंज़ूरी देती है तब इसके उत्पादन के बारे में फैसला होगा.
कहां बना यह टेंट?
सोनम ने हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स की शुरूआत की. उच्च शिक्षा से जुड़े इसी इंस्टीट्यूट में सोनम की टीम ने यह कारगर टेंट बनाया है. यह भी बताया गया है कि इस पहल में सोनम और उनकी टीम को चार हफ्तों का समय लगा.
कौन हैं वांगचुक?
आपने थ्री इडियट्स फिल्म देखी है, तो उसमें आमिर खान की भूमिका सोनम वांगचुक के किरदार से ही प्रेरित थी। इस किरदार का नाम रैंचो उर्फ फुंशुक वांगड़ू था। सोनम अपने आइस स्तूप के लिए मशहूर रहे हैं। लद्दाख के लिए सबसे बेहतरीन पहल माने जाने वाले इस आविष्कार को स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट्स ऑफ लद्दाख का केंद्र बिंदु कहा जाता है।
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