मथुरा। इस बार श्राद्ध पक्ष 20 सितंबर से 6 अक्टूबर तक रहेंगे। मान्यता है कि पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान करने से आकाशवासी हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद हम पर बना रहता है। श्राद्ध की पंरपरा कैसे शुरू हुई और कैसे ये आम जनमानस तक पहुंचीं, साथ ही इस दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसके संबंध में हमारे धर्म ग्रंथों में कई बातें बताई गई हैं। आज हम आपको श्राद्ध से संबंधित कुछ ऐसी ही रोचक बातें बता रहे हैं…
भाद्रपद मास की पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इन 16 दिनों में पितरों यानी पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान आदि कर्म किए जाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से आकाशवासी हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद हम पर बना रहता है। श्राद्ध की पंरपरा कैसे शुरू हुई और कैसे ये आम जनमानस तक पहुंचीं, साथ ही इस दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसके संबंध में हमारे धर्म ग्रंथों में कई बातें बताई गई हैं। आज हम आपको श्राद्ध से संबंधित कुछ ऐसी ही रोचक बातें बता रहे हैं-
ऐसे शुरू हुई श्राद्ध की परंपरा
महाभारत के अनुसार, सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमि को महातपस्वी अत्रि मुनि ने दिया था। इस प्रकार पहले निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया, उसके बाद अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे। धीरे-धीरे चारों वर्णों के लोग श्राद्ध में पितरों को अन्न देने लगे। लगातार श्राद्ध का भोजन करते-करते देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए। श्राद्ध का भोजन लगातार करने से पितरों को अजीर्ण (भोजन न पचना) रोग हो गया और इससे उन्हें कष्ट होने लगा। तब वे ब्रह्माजी के पास गए और उनसे कहा कि- श्राद्ध का अन्न खाते-खाते हमें अजीर्ण रोग हो गया है, इससे हमें कष्ट हो रहा है, आप हमारा कल्याण कीजिए। पितरों की बात सुनकर ब्रह्माजी बोले- मेरे निकट ये अग्निदेव बैठे हैं, ये ही आपका कल्याण करेंगे। अग्निदेव बोले- पितरों। अब से श्राद्ध में हम लोग साथ ही भोजन किया करेंगे। मेरे साथ रहने से आप लोगों का अजीर्ण रोग दूर हो जाएगा। यह सुनकर देवता व पितर प्रसन्न हुए। इसलिए श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि का भाग दिया जाता है।
श्राद्ध के दौरान नहीं करना चाहिए ये काम
किसी दूसरे के घर पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। नदी, पर्वत, तीर्थ आदि पर श्राद्ध कर सकते हैं।
श्राद्ध के दौरान चना, लहसुन, प्याज, काले उड़द, काला नमक, राई, सरसों आदि नहीं खाना चाहिए।
वायु पुराण के अनुसार श्राद्ध पक्ष में मांसाहार व शराब से बचना चाहिए, नहीं तो पितृ नाराज होजाते हैं।
लोहे के आसन पर बैठकर श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। रेशमी, कंबल, लकड़ी, कुशा आदि के आसन श्रेष्ठ हैं।
श्राद्ध पक्ष में बॉडी मसाज या तेल की मालिश नहीं करवानी चाहिए। इन दिनों पान भी नहीं खाना चाहिए।
श्राद्ध पक्ष के दौरान क्षौर कर्म यानी बाल कटवाना, शेविंग करवाना या नाखून काटना आदि की भी मनाही है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध पक्ष में स्त्री समागम नहीं करना चाहिए। इस विषय पर सोचना भी नहीं चाहिए।
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