गोवर्धन। ढप-ढोलक और थाप की धुन के बीच मुख से निकलते हरि बोल के स्वर। कोई राधा तो कोई विसाखा। लिवास भी भारतीय परिधान पहने और दही की मटकी और भोग की छबरी। प्रभु की भक्ति में कदम भी रोके नहीं रूक रहे थे। ऐसा नजारा देख बस यही लग रहा था कि एक बार फिर से गोवर्धन में द्वापर युग अवतरित हो गया है। गोवर्धन पूजा के भाव में गो-संवर्धन के प्रमुख केन्द्र गिरिराज महाराज की तलहटी में जहां लाखों श्रद्धालुओं ने पहुंचकर गोवर्धन की परिक्रमा लगाई। गिरिराज जी की पूजा का उद्गम स्थल अनूठा नजर आया।
दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय गौड़ीय वेदांत समिति के तत्वावधान में गिरधारी गौड़ीय मठ से हर बार की तरह गोवर्धन पूजा शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा में कई देशों से आये विदेशी भक्त अपना गुरू भक्ति में नाम बदलकर ब्रज के रंग में रंगे नजर आये। उनकी भेषभूषा भी ऐसी हो गई कि पहिचान करना भी परे था कि ये परदेशी हैं। मन के मुख से हरिबोल और गिरिराज पूजा के भाव को उमड़ता देख हर कोई गद्गद हो गया। चरणामृत का पान करने के लिए हर कोई लालायित दिखा। गिरधारी गौड़ीय मठ से निकाली गई शोभायात्रा हरिगोकुल मंदिर से परिक्रमा मार्ग के राजा जी के मंदिर के पीछे गिरिराज जी की तलहटी में पहुंची। जहां गिरिराज जी का कई मन दूध, दही, शहद आदि के साथ अभिषेक किया। तरह-तरह के व्यंजन गिरिराज जी को अर्पित किये।
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