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ट्रंप के एक फैसले ने उन कुर्दों के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिया है जिन्होंने हर कदम पर अमेरिकी फौज की मदद की।
नई दिल्ली। उत्तरी सीरिया से अमेरिकी सेनाओं को हटाने के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले से हर कोई हैरान है। इसकी गूंज अब अमेरिकी संसद तक में सुनाई दे रही है। पूर्व अमेरिकी सिनेटर जॉन मैकेन की बेटी मेघन मैकेन ने इस फैसले के लिए राष्ट्रपति ट्रंप की कड़ी आलोचना भी की है। इसकी वजह बेहद साफ है। दरअसल, उत्तरी सीरिया कभी आंतकी संगठन आईएस का गढ़ हुआ करता था। यहां पर आईएस का सफाया करने में जिन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर अमेरिका का साथ दिया वो थी कुर्द सेना। कुर्द सेना में काफी संख्या में 18-25 की बीच की सैकड़ों महिलाओं ने आईएस के खात्मे के लिए बंदूकें हाथों में उठाई। इसका नतीजा आईएस का वहां से खात्मा और उनकी जीत थी। लेकिन अब यही जीत उनके लिए कहीं न कहीं समस्या बनती दिखाई दे रही है।
कुर्दिशों की चिंता
अमेरिका ने बाकायदा बयान जारी कर उत्तरी सीरिया में किसी भी तरह के मिलिट्री स्ट्राइक ऑपरेशंस में हिस्सा न लेने और न ही किसी अभियान का समर्थन करने की बात कहकर कुर्दिशों की चिंता को बढ़ा दिया है। मेघन का भी कहना है कि पहले अमेरिका ने कुर्दिशों को लड़ाई के लिए हथियार और ट्रेनिंग दी अब वह उन्हें अकेला छोड़कर भाग रहे हैं। मेघन ने ये कहते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है कि अमेरिका को कुर्द के भविष्य की कोई चिंता नहीं है। दरअसल, अमेरिका के हटने के बाद कुर्दिशों को सबसे बड़ा खतरा तुर्की से है जो उन्हें अपने लिए खतरा मानता है।
तुर्की के अभियान की धमकी
अमेरिका के उत्तरी सीरिया से हटने के फैसले के बाद तुर्की ने भी सीमा पर सैन्य अभियान शुरू करने की धमकी दी है। अमेरिका के फैसले को न सिर्फ मेघन बल्कि रिपब्लिकन और डेमोक्रैट भी गलत बता रहे हैं। उनका कहना है कि इससे पूरी दुनिया में गलत संदेश जाएगा। साथ ही अमेरिका के वहां से कुर्दों को अकेला छोड़ देने पर उनका नरसंहार शुरू हो जाएगा। इस बात की आशंका जताने की एक बड़ी वजह ये भी है क्योंकि व्हाइट हाउस से जारी बयान में सेना को वहां से हटाने की तो बात कही गई है, लेकिन कुर्दों के बारे में या उनके भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। गौरतलब है कि उत्तरी सीरिया में करीब एक हजार अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। अमेरिका के हटने के बाद यहां पर कुर्द और तुर्की सेना के बीच भीषण जंग का होना तय है। जहां तक राष्ट्रपति के इस फैसले की बात है तो आपको बता दें कि उन्होंने यह फैसला तुर्की राष्ट्रपति रैसप तैयप इर्दोगन से बातचीत के बाद ही लिया है।
ट्रंप के अंदर जल्दबाजी
जानकार मानते हैं कि पहले अफगानिस्तान और अब सीरिया से अपनी सेनाओं की वापसी के लिए ट्रंप के अंदर जो जल्दबाजी दिखाई दे रही है, उसकी वजह अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव हैं। आपको बता दें कि ट्रंप के चुनावी मुद्दों में विभिन्न मोर्चों पर लड़ रही अमेरिकी सेनाओं की घर वापसी भी बड़ा मुद्दा है। यही वजह है कि ट्रंप अफगानिस्तान से भी अब अपनी सेनाओं को बाहर निकालना चाहते हैं। ट्रंप की बात करें तो उन्होंने पद संभालने के कुछ ही समय बाद यह साफ कर दिया था कि वह दुनिया के लिए चौकीदार की भूमिका नहीं निभाएगा। वह भी तब जबकि उसमें अमेरिका का कोई फायदा न हो। ट्रंप के ताजा फैसले इसकी ही एक कड़ी भी दिखाई देते हैं।
फैल सकती है अराजकता
जानकारों की राय में यदि अमेरिका इन दोनों ही देशों से अपनी सेनाओं की वापसी करता है तो यहां पर अराजकता फैल सकती है। इसके अलावा इसका फायदा दोबारा आतंकी अपनी जड़ों को मजबूत करने में ले सकते हैं। ट्रंप के इस फैसले से उनके सहयोगी भी खुश नहीं हैं। ट्रंप की जहां तक बात है तो उनके पास उनके कार्यकाल का अब समय कम ही बचा है। वहीं सेना वापसी का मुद्दा उनके लिए जीत के द्वार खोल सकता है। यह इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि उनके ऊपर महाभियोग की शुरुआत करने को मंजूरी मिल चुकी है। सिनेटर केविन मैकार्थी का कहना है कि वह चाहते हैं कि वो कुर्द लोग जिनके साथ अमेरिकी फौज खड़ी थी उनके लिए हम अपनी जुबान पर कायम रहें, जिससे भविष्य में हम गलत नजरों से न देखे जाएं।
दिसंबर में हुई थी शुरुआत
आपको बता दें कि सीरिया को लेकर किए गए जिस फैसले पर आज ट्रंप की आलोचना हो रही है उसकी शुरुआत बीते साल दिसंबर में हुई थी। तभी उन्होंने सीरिया से सेना वापसी की घोषणा की थी, जिसके बाद उनकी कड़ी आलोचना भी हुई थी। इसका असर रक्षा मंत्री जिम मैटिस के इस्तीफे और जॉन बॉल्टन को बाहर का रास्ता दिखाए जाने पर भी दिखाई दिया था। सीरिया के इस इलाके की ही यदि बात करें तो यहां पर तुर्की, कुर्द और सीरियाई सेना आपसी जंग लड़ रही हैं। यह इलाका कुर्दिस्तान में आता है जिसके लिए कुर्द काफी समय से प्रयासरत हैं। यह यहां पर आईएस को अपने यहां से खदेड़ने के नाम पर ही जंग लड़ रहे थे।
कुर्द फैसले से निराश
तुर्की ने जहां इस इलाके में सैन्य अभियान छेड़ने की बात कही है तो वहीं सीरिया ने भी उन्हें कड़ा जवाब देने का मन बना लिया है। ऐसे में मोर्चे पर डटी कुर्दिश सेना के बीच बीच में इन दोनों के बीच पिसने के अलावा फिलहाल द दूसरा कोई विकल्प दिखाई नहीं दे रहा है। फिलहाल कुर्द सेना ट्रंप के फैसले के बाद इस बात का आंकलन करने में जुट गई है कि इसका असर कितना व्यापक होगा और उनका भविष्य क्या होगा। जहां तक तुर्की की बात है तो वह पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स को कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी का ही एक विस्तार मानता है जो तुर्की में आतंकी गतिविधियों में लिप्त है। ट्रंप के फैसले से कुर्द लड़ाके भी काफी निराश हैं। माना जा रहा है कि यह फैसला दम तोड़ते आईएस को फिर जीवनदान देने में सहायक साबित होगा।
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