IIM बेंगलुरु के एक प्रोफेसर ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर बताई हकीकत, IIM जैसी संस्थाओं में भी हो रहा जातिगत भेदभाव?

IIM बेंगलुरु के एक प्रोफेसर ने संस्था में जाति आधारित भेदभाव होने के आरोप लगाए हैं। उन्होंने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में इन बातों का जिक्र किया था। उन्होंने छात्रों के साथ भी ऐसा होने की बात की है। हमारे देश में आज भी जाति के नाम पर भेदभाव होने की घटनाएं आय दिन सामने आती रहती हैं। बड़े बड़े शैक्षणिक संस्थान भी इससे अछूते नहीं हैं। हाल ही में IIM बेंगलुरु के एक प्रोफेसर गोपाल दास ने संस्था में जाति आधारित भेदभाव होने के आरोप लगाए हैं।

गोपाल ने आईआईएम बेंगलुरु के डायरेक्टर टी कृष्णन और अन्य सहकर्मियों पर उनके साथ जातिगत भेदभाव करने के गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा है कि अनुसूचित जाति से आने के कारण उन्हें सही समय पर उचित प्रमोशन नहीं दिया गया। इसके साथ ही उन्हें समय समय पर काफी परेशान भी किया जाता रहा है। मार्केटिंग पढ़ाने वाले दास ने ये सभी आरोप राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे एक पत्र में लगाए हैं। राष्ट्रपति 3 जनवरी को यहां एक दौरे पर आई थीं,

उसी वक्त दास ने उन्हें यह पत्र सौंपा था। उनकी शिकायत के बाद राष्ट्रपति कार्यालय ने कर्नाटक सरकार को जांच करने के निर्देश दिए हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए नागरिक अधिकार प्रवर्तन निदेशालय (DCRE) ने जांच शुरू कर दी है। दास वर्ष 2018 में IIM बेंगलुरु का हिस्सा बने थे। उनका दावा है कि तभी से ही उनके साथ गंदा व्यवहार होता आ रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार उन्होंने संस्था पर आरोप लगाए हैं कि उन्हें शैक्षणिक गतिविधियों, पीएचडी कार्यक्रमों और कई संसाधनों से भी वंचित रखा गया।

इसके साथ ही कई बार उन्हें अपनी जाति के कारण अपमानित भी किया गया है। हाल ही में कर्नाटक समाज कल्याण विभाग को लिखे अपने पत्र में दास ने एससी/एसटी वर्ग से आने वाले छात्रों के साथ भी जातिगत भेदभाव होने के आरोप लगाए हैं। उन्होंने संस्था के डायरेक्टर कृष्णन और डीन दिनेश कुमार को शुरुआत से ही अल्पसंख्यकों के प्रति गंदा नजरिया रखने वाला बताया है। साथ ही उन्होंने कहा है कि संस्था में एक एससी / एसटी समर्पित सेल भी उपलब्ध नहीं है।

ऐसे में उनकी परेशानियां सुनने वाला कोई भी नहीं है। IIM बेंगलुरु ने इन आरोपों को सरासर झूठ बताया है। उन्होंने कहा है कि संस्था में ऐसी गतिविधियों के लिए “जीरो टॉलरेंस पॉलिसी” लागू है। संस्था में ऐसा कुछ भी होने पर तुरंत उसपर कार्यवाही की जाती है और किसी भी तरह कि ढील नहीं दी जाती है। संस्था ने इसपर और टिप्पणी करने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि “हमनें संबंधित अधिकारियों ने बात कर ली है, बाकी हम इसपर कोई और टिप्पणी नहीं करना चाहते।”

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