बीकानेर में दो भाइयों की जंग में दिलचस्प हुआ का चुनाव

नई दिल्ली। राजस्थान की बीकानेर लोकसभा सीट इन दिनों चर्चा विषय बनी हुई है। यहां दो सगे मौसेरे भाइयों के बीच चुनावी जंग है, एक भाई जहां पीएम नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में मंत्री है। वहीं दूसरे भाई ने उन्हें चुनौती देने के लिए आईपीएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखा है।

राजस्थान के भुजिया और मिठाइयों के लिए विश्व भर में अपनी अलग पहचान बनाने वाले बीकानेर से लोकसभा चुनाव की दिलचस्प राजनीतिक लड़ाई यह अर्जुन मेघवाल सांसद पद पर चुने जाने के बाद पहली बार लोकसभा में पहुंचने और केंद्रीय मंत्री बनने के बाद साइकिल पर संसद की यात्रा करने जैसे नजारों के कारण हमेशा ही मीडिया की सुर्खियों में रहे है।

बीजेपी ने इन पर भरोसा जता कर तीसरी बारी ने बीकानेर से प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा है। इस सीट पर बीजेपी 2004 से जीत लगातार जीत रही है। 2009 में सीट एससी के लिए आरक्षित हुई, अर्जुनराम मेघवाल यहां से चुनाव जीते। मेघवाल 2014 का चुनाव भी जीते और केंद्र सरकार में मंत्री भी बने। मेघवाल को भाजपा ने इस चुनाव में तीसरी बार चुनाव मैदान में उतारा है।

हालांकि 5 साल के कामकाज को लेकर खुद अर्जुन राम मेघवाल ज्यादा बात नहीं करते, लेकिन उन्हें लगता है कि जहां 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी के नाम ने उनकी चुनावी नैया पार लगाई थी वहीं इस बार मोदी सरकार के 5 साल के कामकाज के चलते वे चुनाव मैदान में जीत दर्ज करने का अनुमान है।

राजस्थान की बीकानेर सीट चर्चित है, लेकिन कांग्रेस ने पूर्व आईपीएस अधिकारी मदनगोपाल मेघवाल को प्रत्याशी बनाया है। यहां भाजपा के अर्जुन राम मेघवाल तीसरी बार भाग्य आजमाएंगे। समर में उतरे दोनों प्रत्याशियों में कई समानताएं हैं, दोनों भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर राजनीति में आए हैं।

दोनों मेघवाल समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं और दोनों मौसेरे भाई हैं, केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम 2009 में नौकरी छोड़कर में आए और बीकानेर सीट से जीते। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के शंकर पन्नू को 3 लाख से ज्यादा वोटों से हराया।
मोदी सरकार में मेघवाल का कद लगातार बढ़ा, वह लोकसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक रहे और फिलहाल जल संसाधन के साथ साथ केंद्रीय राज्य मंत्री हैं। कभी भाजपा में कद्दावर नेता रहे देवी सिंह भाटी उनका खुलकर विरोध कर रहे हैं, उन्हें टिकट देने के विरोध में पार्टी छोड़ चुके हैं।

क्या कहता है बीकानेर का राजनीतिक इतिहास
आजादी के बाद बीकानेर में अब तक 16 लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें 6 बार कांग्रेस, 4 बार बीजेपी, 1 बार भारतीय लोकदल, 1 बार सीपीएम और 4 बार निर्दलीय का कब्जा रहा. 1957 से 1971 तक इस सीट पर महाराजा करनी सिंह 4 बार निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सांसद रहें।

साल 2014 के आम चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक बीकानेर संसदीय सीट पर मतदाताओं की संख्या 15,91,068 है, जिसमें 8,47,064 पुरुष और 7,44,004 महिला मतदाता हैं। बीकानेर में हिंदू आबादी 78 फीसदी और मुस्लिम आबादी 15 फीसदी है।

2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी का 22.91 फीसदी अनुसूचित जाति और .37 फीसदी अनुसूचित जनजाति हैं और कांग्रेस प्रत्याशी मदन गोपाल ग्रामीण जनता के बीच जाकर राहुल गांधी की योजनाओं के बारे में पता कर इन सभी को लुभाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

बीकानेर में चुनावी मुद्दा
सिंचाई व पीने का नहरी पानी, सीमावर्ती क्षेत्र में सड़क-शिक्षा व चिकित्सा, अवैध खनन और बीकानेर शहर में शहर के बीच में से जा रही रेल लाइन के ऊपर और बीज बनाने का मुद्दा प्रमुख है। अर्जुन मेघवाल का कहना है कि उन्होंने इन सभी के लिए बहुत ज्यादा काम की और पिछले 5 साल में कितनी योजनाएं बीकानेर को मिली शायद आजादी के बाद इतनी उसने कभी भी यहां के लोगों को नसीब नहीं हुई।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*