भाजपा ने त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश की सभी सीटों पर किया कब्जा

पूर्वोत्तर में भी लोकसभा चुनावों के नतीजों ने तमाम पूर्वानुमान फेल कर दिए हैं। इलाके के आठ राज्यों की 25 में से भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 18 सीटें मिली हैं। वर्ष 2014 में 14 सीटें थीं। इस बार नागरिकता (संशोधन) विधेयक के मुद्दे पर इलाके में बड़े पैमाने पर होने वाली हिंसा और विरोध की वजह से भाजपा की सीटें घटने का अंदेशा था। इसके उलट उसकी सीटें बढ़ गई हैं। खासकर इलाके के सबसे बड़े राज्य असम में चुनावी नतीजों से भाजपा और उसके सहयोगी दलों-असम गण परिषद (अगप) और बोडो पीपुल्स प्रंट (बीपीएप) के बीच समीकरण भी बदलने का अंदेशा है।

असम की 14 सीटों में से भाजपा ने वर्ष 2014 में सात सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार दस सीटों पर चुनाव लड़कर नौ सीटों पर जीत दर्ज की है। उसने तीन सीटें अगप और एक सीट बीपीएफ के लिए छोड़ी थी, लेकिन उनका खाता तक नहीं खुल सका है। राज्य में चार सीटें कांग्रेस को मिली हैं और एक सीट इत्र कारोबारी बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाले ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) को।

लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन की वजह से अब अगले महीने राज्य की दो राज्यसभा सीटों पर होने वाले चुनाव में अगप की दावेदारी लगभग खत्म हो गई है। यूं तो भाजपा पहले से ही इन दोनों सीटों पर खुद लड़ने का इरादा बना रही थी। लेकिन अगप के तीनों सीटों पर जीत की स्थिति में पहले से हुए समझौते के मुताबिक एक सीट उसे देनी पड़ती।

भाजपा ने त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश की सभी सीटों पर कब्जा कर लिया है। मिजोरम में इकलौती सीट उसके सहयोगी एमएनएफ ने जीती है और नगालैंड में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ने। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि लोकसभा चुनावों से पहले नागरिकता विधेयक के विरोध को देखते हुए भाजपा की सीटें घटने का अनुमान लगाया जा रहा था।

राजनीतिक विश्लेषक धीरेन डेका कहते हैं कि नागरिकता विधेयक के विरोध के बावजूद पश्चिम बंगाल की तर्ज पर पूर्वोत्तर में भी भाजपा के पक्ष में वोटरों का जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ है। उनका कहना है कि अब अपने इस प्रदर्शन के दम पर भाजपा इलाके के सहयोगी दलों को काबू में रख सकती है। इसका असर असम में दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों पर पड़ना लाजिमी है और उस समय पार्टी के और मजबूत होकर उभरने की संभावना है।

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