नई दिल्ली- यूपी में भाजपा की सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) ने कुर्मियों की पार्टी वाली अपनी छवि बदलने की कोशिश की है। मिर्जापुर की सांसद अनुप्रिया पटेल की पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान एक ओबीसी नेता के हाथों से लेकर एक दलित नेता के हाथों में सौंप दी है। इसे 2022 के यूपी चुनाव के पार्टी की बड़ी रणनीति माना जा रहा है, जिसमें वह बसपा के लिए तो चुनौत खड़ी कर ही सकती है, सहयोगी भाजपा के साथ भी तोलमोल के दौरान अपनी स्थिति मजबूत कर सकती है। अनुप्रिया पटेल के इस फैसले के पीछे यूपी में पासी जातियों के करीब 16 फीसदी दलित वोट बैंक को कारण माना जा रहा है और यूपी की राजनीति में इसे कुर्मी-पासी समीकरण के एक नए प्रयोग के तौर पर देखा जा रहा है।
यूपी में अपना दल का बड़ा दांव
अपना दल की सांसद और पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ा दलित कार्ड खेला है। उन्होंने पार्टी के एक दलित विधायक जमुना प्रसाद सरोज को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। सरोज इस समय प्रयागराज जिले की सोरांव (सुरक्षित) विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और प्रदेश के प्रभावी दलित नेता माने जाते रहे हैं। यहां गौर करने वाली बात है कि जमुना प्रसाद पासी समाज से आते हैं, जिनकी संख्या राज्य में दलितों में जाटवों के बाद सबसे अधिक बताई जाती है। उत्तर प्रदेश में दो साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, उससे पहले कुर्मियों (या पटेलों) के प्रभाव वाली पार्टी में यह बहुत बड़ा बदलाव माना जा रहा है और इसे कुर्मी-पासी समीकरण के मजबूत सोशल इंजीनियरिंग के तौर पर लिया जा रहा है।
ओबीसी की जगह दलित को कमान
अनुप्रिया पटेल की पार्टी के अपना दल (सोनेलाल) के नए प्रदेश अध्यक्ष जमुना प्रसाद सरोज जिस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, वह फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में है, जहां से प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केश प्रसाद मौर्य सांसद रह चुके हैं। लेकिन, 2018 के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के नागेंद्र प्रताप ने ये सीट भाजपा से छीन ली थी। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ये सीट वापस जीत ली थी और पार्टी की केशरी देवी पटेल को कामयाबी मिली थी। सरोज को राजेंद्र प्रसाद पाल की जगह अपना दल का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है, जिन्हें पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त कर दिया है। पाल ओबीसी से आते हैं।
दलित को प्रदेश की कमान देने के मायने
अभी तक अपना दल (सोनेलाल) कुर्मियों (पिछड़े) के दबदबे वाली पार्टी मानी जाती रही है। लेकिन, इस प्रयास से पटेल ने दलित समुदाय में पार्टी की पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है। वो यूपी में कुर्मी-पासी का मजबूत समीकरण बिठाने की कोशिश कर रही हैं, इससे उन्हें सीटों के लिए भाजपा पर भी दबाव बनाने में मदद मिल सकती है। इसके जरिए पार्टी यूपी के दलितों में से 16 फीसदी पासी वोट बैंक को अपनी ओर खींचने के प्रयास में जुटी है। राज्य में दलितों में सबसे ज्यादा आबादी जाटवों की है, जिनकी दलितों में 57 फीसदी भागीदारी मानी जाती है और उनपर अबतक निर्विवाद रूप से मायावती का प्रभाव रहा है। ऐसे में अगर पासी वोट बैंक को अपने खेमे में करने में अपना दल सफल रही तो यूपी का चुनावी हिसाब-किताब इधर से उधर भी हो सकता है।
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