मणिपुर में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार से उप मुख्यमंत्री वाई जॉय कुमार सिंह सहित कुल 9 विधायकों के नाता तोड़ने के बाद बीरेन सिंह सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. कांग्रेस ने विश्वास मत के लिए विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाने की राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला से अपील की है. बीजेपी सरकार की किस्मत का फैसला गर्वनर के पाले में है और राजभवन अभी मामले पर चुप्पी साधे हुए है.
हाई कोर्ट ने गुरुवार को अपने फैसले में विधानसभा अध्यक्ष से कांग्रेस से बीजेपी में शामिल होने वाले 7 विधायकों पर फैसला शुक्रवार तक न देने को कहा है. इससे एक तरफ बीजेपी के हाथों से राज्यसभा सीट जीतने का समीकरण बिगड़ गया है. साथ ही बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार का गणित गड़बड़ा गया है और हाथों से सत्ता खिसकती नजर आ रही है.
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राज्यपाल के पाले में गेंद
मणिपुर में सियासी संकट के बीच एनपीपी प्रमुख थांगमिलेन किपगेन और कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने राज्यपाल से गुरुवार को मुलाकात की थी. इस दौरान एनपीपी ने कहा कि एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए हमने राज्यपाल से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध किया है और साथ ही नवगठित सेक्युलर प्रोग्रेसिव फ्रंट (एसपीएफ) को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने की सिफारिश की है.
कांग्रेस और एनपीपी नेताओं ने राज्यापल से मुलाकात के दौरान कांग्रेस, एनपीपी, तृणमूल कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों समेत एसपीएफ के सभी सदस्यों के समर्थन पत्र का भी जिक्र किया है. इसके बावजूद अभी तक राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है.
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हाई कोर्ट ने बिगाड़ा बीजेपी का सियासी गणित
वहीं, कांग्रेस के जिन सात विधायकों ने बीजेपी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार का समर्थन किया था, उन सभी पर अयोग्यता के मामले चल रहे हैं और हाल ही में हाई कोर्ट ने उन विधायकों को विधानसभा में प्रवेश करने से रोक दिया है. गुरुवार को इस मामले पर हाई कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष से किसी तरह का कोई फैसला देने से भी शुक्रवार तक के लिए रोक दिया है, जिससे बीजेपी का समीकरण पूरी तरह से बिगड़ गया है.
दरअसल तकनीकी तौर पर देखा जाए तो 60 सीटों वाली मणिपुर विधानसभा में फिलहाल सदस्यों की संख्या घटकर 49 रह गई है. इससे पहले कांग्रेस के एक और विधायक को अयोग्य घोषित किया गया था. इस तरह कांग्रेस के कुल आठ विधायकों को पहले ही अयोग्य घोषित किया जा चुका है और बुधवार को बीजेपी के जिन तीन विधायकों ने इस्तीफा दिया था उनको भी अयोग्य घोषित किया जा चुका है.
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मणिपुर में 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 28 सीटों पर जीत दर्ज कर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई थी लेकिन 21 सीटें जीतने वाली बीजेपी सहयोगी दलों के समर्थन से राज्य में पहली बार अपनी सरकार बनाने में सफल रही. 60 सीटों वाली मणिपुर विधानसभा में भाजपा गठबंधन के पास कुल 32 विधायकों का समर्थन था. लेकिन अब 9 विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया है जिनमें तृणमूल कांग्रेस का एक विधायक और एक निर्दलीय विधायक शामिल है.
फ्लोर टेस्ट हुआ तो मुरझा जाएगा कमल?
मणिपुर में अगर फ्लोर टेस्ट होता है तो 11 विधायक (हाई कोर्ट से रोके गए 7 विधायक, इस्तीफा दे चुके 3 विधायक और अयोग्य विधायक श्याम कुमार) वोटिंग प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले सकेंगे. इस स्थिति में 49 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी के नेतृत्व वाला गठबंधन सिर्फ 22 वोट ही सिक्योर कर पाएगा जबकि कांग्रेस गठबंधन के खाते में 26 वोट आ सकते हैं.
कांग्रेस का फिलहाल आंकड़ा अपने 20 विधायकों के साथ एनपीपी के चार, एक टीएमएसी और एक निर्दलीय के साथ-साथ बीजेपी के दो विधायकों की संख्या को जोड़ लेते हैं, तो 28 पहुंचता है. वहीं, बीजेपी के 18, नगा पीपुल्स फ्रंट के चार विधायक और लोजपा का एक विधायक बीरेन सिंह के साथ हैं. इस तरह बीजेपी के समर्थक विधायकों की कुल संख्या 23 पर पहुंचती है. इस तरह से मणिपुर की सत्ता का संग्राम काफी दिलचस्प हो गया है.
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