ब्रज भ्रमण: भारत का आंगन गोदा विहार

यह मंदिर अखंड भारत का आंगन है। ऋषि-मुनियों का तपोवन, भक्तों का मधुवन व महापुरुषों का महावन है। समूचा देवलोक जहां जीवंत है, रमा और रंभा का सुंदर चितवन है। राम, कृष्ण और गौतम के गुण गाता गोदा विहार है। सर्वधर्म समन्वय की भावना ही यहां की आराधना है। निज धाम के अनोखे मंदिर गोदा विहार की मूर्तियों में भारतीय संस्कृति के दर्शन हैं। इनके बीच होना बेहद सुखद अनुभवों है।

ज्ञान गुदड़ी मार्ग में स्थित गोदा विहार में सैकड़ों मूर्तियों के दर्शन है। वृंदावन में अपनी तरह का यह एक ही देवालय है। कलात्मक वेद गर्भ द्वार पर देवकन्याएं मंगल कलश लिये खड़ी है। इससे आगे सिंह शार्दूल स्थापित है जिसमें पशु-पक्षी की मिली जुली आकृति है। पृथ्वी पर अब इस जीव के दर्शन नहीं होते। मंदिर का प्रमुख द्वार वैकुंठ द्वार कहलाता है।

 

इस पर सत्पुरियों अयोध्या ,मथुरा,मायावती,काशी,अवंतिका,कांची,हरिद्वार को प्रस्थापित किया है। ऐसा द्वार भारत में पहली बार बना है। दाईं ओर प्याऊ के रूप में विशाल गलोब है जिसमें मंदिर निर्माण के समय तक भारत के सभी महापुरूषों के चित्र अंकित हैं। आगे चलने पर नवग्रहों के दर्शन हैं। उससे कुछ कदम पर सूर्य भगवान रथ पर सवार हैं। उनके सामने गोमाता के पास बैठे वंशी बजाते गोपाल की मन भावन झांकी है। आगे चैतन्य महाप्रभु की संकीर्तन मंडली का भाव प्रवण दृश्य है।

जगमोहन में दोनों ओर नृत्य करती रंभाओं की मूर्तियां हैं। गर्भगृह में 15 फुट ऊंचे शेषनाग के सिंहासन पर लक्ष्मी नारायण की मूर्ति अभयमुद्रा में स्थापित है। जगमोहन प्रांगण में मंदिरों का समुच्चय है जिसमें दशावतार, शिव परिवार, राम दरबार, ब्रह्मलोक, कौशल्या, यशोदा, देवकी, कृती, अनुसूइया, अहिल्या, अंजना और शबरी आदि महादेवियों के दर्शन हैं। भक्त ध्रुव, प्रहलाद, भरत, विभीषण, सुदामा आदि की सुंदर मूर्तियां हैं। यहां गौतम बुद्ध, महाराजा अग्रसेन, चित्रगुप्त व वाल्मीकि की मूर्तियां भी सुशोभित हैं। हिंदू धर्म के आचार्य शंकराचार्य, माधवाचार्य,वल्लभाचार्य, निंबार्काचार्य, रामानुजाचार्य आदि के भी दर्शन है। इसके साथ रामानंद, तुलसीदास, रामदास, हरिदास, नरसी मेहता और मीराबाई और संत रैदास भी मौजूद हैं। शुकदेव, व्यास, पाराशर, अत्री ऋषि, रामदेव, श्यामदेव, तानसेन, गोगा, रहीम, रसखान, राणा प्रताप, छत्रपति में शिवाजी को भी मंदिर में मूर्त रूप दिया गया है।

मंदिर के महंत वृंदावन आचार्य जी का कहना है कि “यह दक्षिण की गोदा देवी का मंदिर है। वहां लक्ष्मी जी को गोदा कहा जाता है। रामानुज, संप्रदाय के अंतर्गत यहां नारद पांचरात्र विधि से पूजा होती है। भगवान की पांच आरती, पांच भोग की सेवा है। सन् 1982 में स्वामी बलदेवाचार्य जी ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर दक्षिण शैली में ही बना हुआ है। इसकी परिकल्पना श्रीमद् भागवत के पंचम स्कंध पर की गई है जिसमें भगवान के सभी लोकों का वर्णन है। उसी को मंदिर में सजीव रूप दिया गया है। यहां मद्रास के कारीगरों द्वारा बनाई गई 300 मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर निर्माण के बाद कारीगरों को नेशनल अवार्ड भी मिला था।”

 

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