माधुरी सखी का घरौंदा तिनके-तिनके बिखर गया। मालती वन की सुषमा पन्नों में रह गई। माधुरी है पर माधुर्य दूर-दूर तक नहीं। गांव की तस्वीर के खुशनुमा रंग ल गये। इसका प्रचीन नाम जाती वन है। माधुरी सखी ने राधा माधव की अर्चना के लिए मालती वन का सृजन किया था। गोवर्धन से दस किमी दूर जचौंदा के पास माधुरी सखी का गांव माधुरी है।
इसका प्राचीन नाम मालती वन है। सखी का स्मरण कराता माथुरी कुंड अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। उसकी शुचिता नष्ट हो गई। पहले चौरासी कोस के यात्री जल का आचमन लेते थे। इसके निकट मदन मोहन जी का प्राचीन मंदिर है।
ब्रज भक्ति विलास ग्रंथ में जाती वन की उत्पति महिमा लिखी गई है। इसने द्वादश सिद्ध वनों में स्थान पाया है ‘राधिका की प्रिय सखी माधुरी ने मालती वन बनाया है यह नाना प्रकार के वृक्ष लताओं से परिपूर्ण मथुरा मंडल की शोभा बढ़ा रहा है। यहां राधिका अपनी प्रिय सखी माधुरी के साथ विश्वास हो मान कर श्रीकृष्ण को कुटिल नयन से देखने लगी। माधुरी की प्रार्थना से प्रसन्न होकर कृष्ण के साथ विलास करने लगी पहले मान और पीछे विलास के कारण इस स्थान का नाम मान विलास माधुरी स्थान है माधुरी ने नित्य स्नान करने के लिए अपने नाम से कुछ का निर्माण किया है जो माधुरी कुंड के नाम से विख्यात है।
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