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सलहकुल ने वृंदावन में धर्म और स्थापत्य के जो कीर्ति स्तंभ स्थापित किए, कट्टरपंथी ताकतों ने उन्हें खंडित कर दिया। गोपीनाथ घेरा में खड़े गोपीनाथ मंदिर ने वो दोनों दौर देखे है। अकबर के काल में स्थापित किए गए उत्कृष्ट शिल्प के इस देवालय ने विध्वंस के प्रहार झेले हैं जिसके चिन्ह साफ नजर आते हैं । भग्न इमारत बता रही है कि इसका भूत कितना समृद्ध रहा होगा । पुरातन के समीप नूतन मंदिर है जिसमें अधरों पर वंशी लिए गोपीनाथ जी माता जाह्वा और राधा रानी के उत्सव विग्रह विराजमान हैं। प्राचीन मंदिर में वंशीधारी चैतन्य महाप्रभु और जगन्नाथ जी के दर्शन है। गौड़ीय संप्रदाय के इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां राधा रानी गोपीनाथ के दाहिनी ओर विराजमान हैं। वाम भाग में जाह्वा देवी प्रतिष्ठित हैं। गर्भगृह में नित्यानंद महाप्रभु का विशेष विग्रह है। मंदिर के सेवायत गोपीनाथ लालदेव गोस्वामी ने बताया कि “द्वापर में यह स्थान वंशीवट टीला था। भगवान कृष्ण के भजन में लीन रहने वाले मधु गोस्वामी को वंशीवट के पास गोपीनाथ जी की मूर्ति प्राप्त हुई थी। जाह्वा देवी को रेवती माता का अवतार कहा जाता है। राधा रानी ने उन्हें अपना अपना स्थान दिया है। भगवान कृष्ण गोचारण और निशांत लीला के समय यहां वंशी वादन करते थे। मंदिर में जगन्नाथ जी का वार्षिकोत्सव मनाया जाता है जिसमें उनकी रथयात्रा निकाली जाती है। पीछे मधु गोस्वामी की समाधि है।”
इतिहास
रायसेन नामक एक राजपूत सरदार ने मुगल सम्राट अकबर की अनुमति से इस मंदिर का निर्माण कराया था। वह कछवाहा राजपूतों की शेखावत शाखा के प्रवर्तक का पौत्र था। उसने अकबर और उसके सेनापति मान सिंह को अपनी वीरता से प्रसन्न कर मुगल साम्राज्य में ऊंचा पद प्राप्त किया था। ग्राउस ने लिखा है कि यह मंदिर सन् 1589 में बना था। इस प्रकार गोविंद देव के साथ बनकर पूरा हुआ होगा। औरंगजेब के काल में इस मंदिर को भी ध्वस्त किया गया। उसी दौरान मंदिर के श्री विग्रह कामां और फिर जयपुर भेज दिए गए। चैतन्य संप्रदाय की मान्यतानुसार यह मूर्ति गौड़ीय भक्त परमानंद भट्टाचार्य को वंशीवट पास यमुना तट पर प्राप्त हुई थी जिसे उन्होंने अपने शिष्य मधु गोस्वामी को सौंप दिया था। सन् 1821 में नंद कुमार बसु द्वारा निर्मित नये मंदिर में गोपीनाथ के प्रतिभू स्वरूप स्थापित किए गए।
श्रीकृष्ण से हूबहू मिलता गोपीनाथ का वक्ष स्थल
वज्रनाभ ने शांडिल्य मुनि के कथनानुसार विश्वकर्मा से कहकर लगभग पौन वर्ष के अंतराल में अनेक देवी-देवताओं के विग्रह निर्मित कराये । गोविंद देव, मदन मोहन और गोपीनाथ उन्हीं में से एक हैं। मदनमोहन के श्री चरण, गोपीनाथ का वक्ष स्थल और गोविंद देव का मुखारबिंद भगवान कृष्ण से हूबहू मिलता है। पूर्व में वर्णित वृंदावनधामानुरागावली की काव्यमय कथा भी इन तीनों विग्रहों के बारे में यही कहती है।
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