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नमो नमो दंपत्ति धीर समीर
श्रमित होत तहां विरमि रहत है गौर श्याम राजत शरीर
महारम्य आवनी द्रुम छांहीं लता रही झुकि जमुना नीर
वृंदावन हित रूपी पंछी नदित तहां केकी पिककीर
धीर समीरे यमुना तीरे वसति वने वनमाली, गोपीपीन पयोधरमर्दन चंचलकर युगशाली… गीत गोविंद के इस पद की कल्पना लेकर धीर समीर में जाओगे तो मायूसी ही मिलेगी । समय की गति में धीर का समीर ठहर गया। वो मंद-मंद शीतल पवन यहां का रास्ता ही भूल गई जिसके लिए धीर समीर प्रसिद्ध था । द्वापर की वो नैसर्गिक सुषमा अब कहां। कुंज की वनश्री छोटे से टीन शेड में सिमट कर रह गई है। कल कल करती कालिंदी के कूल का मनोरम दृश्य भी ओझल हो गया। सूरम्य, सुवासित धीर समीर की स्मृतियां ही रह गईँ। वंशीवट के पास राधा श्याम राय मंदिर, धीर समीर प्रिया प्रीतम के नित्य निकुंज केलि विलास का स्थान है। युगल सरकार की लीलाओं का दर्शन कर समीर भी धीर स्थिर हो जाता था इसलिए इसका नाम धीर समीर पड़ा । रसिक जयदेव ने अपनी रचना गीत गोविंद के पद में जिस कुंज का उल्लेख किया है, वह स्थान यही है। धीर समीर में असीम शांति का वास है। मंदिर प्रांगण में एक ओर टीन शेड में द्रुम लताएं हैं। इनमें वृंदा, गुलाब आदि के पौधे हैं। मंदिर में राधा श्याम राय के दर्शन हैं। प्राचीन मंदिर के सामने गौरीदास जी की भजन स्थली व समाधि है। चैतन्य महाप्रभु के प्रधान परिकरों में से एक गौरीदास जी ने धीर समीर कुंज व राधा श्याम राय मंदिर की स्थापना कर सेवा पूजा आरंभ की। यमुना में स्नान करते समय उन्हें श्रीकृष्ण का विग्रह प्राप्त हुआ था जो मंदिर में विराजमान है। सन् 1924 में आई बाढ़ में धीर समीर घाट का काफी हिस्सा बह गया।
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