मोर पंखों के बीच में राधा रास बिहारी धवल चांदनी से चमकते है। सेवा में खड़ी अष्ट सखियों की अद्भुत झांकी है। दर्शन पाकर हृदय प्रफुल्लित हो जाता है। लाड़िली लाल की लीलाओं के चित्र, मूर्तियों से जगमोहन जीवंत हो उठा है। प्राचीनता और आधुनिकता के समावेश ने अष्ट सखी मंदिर का कायाकल्प कर दिया है। गौड़ीय संप्रदाय का यह मंदिर दर्शनीय है।
मदन मोहन मंदिर के पास गली में स्थित प्राचीन अष्ट सखी मंदिर का 2008 में सौंदीकरण हुआ है। प्रथम तल पर बने मंदिर का ऐश्वर्य देखते बनता है। जगमोहन के मध्य में कॉपर से निर्मित कमल ध्यानाकर्षित करता है। कॉपर के कदंब के नीचे मुरली बजाते राधा माधव की मनोरम झांकी जगमगाती है। दीवारों पर पत्थरों से उकेरी गई लीलाओं से नजरें नहीं हटतीं। प्रिया को मनाते प्रीतम, गायों के बीच में मुरली बजाते घनश्याम की पेंटिंग अपनी ओर खींचती हैं। दाई ओर जगन्नाथ जी, राम दरबार, बालाजी, द्वारिकाधीश आदि की पेंटिंग है। चांदनी रात में नाथद्वारा से गोवर्धन आते चादर ओढे श्रीनाथ जी का सुंदर चित्र है। गर्भगृह में राधा रास बिहारी और अष्ट सखियों ललिता, विशाखा, चित्रा, इंदुलेखा, चंपकलता, रंग देवी, तुंगविद्या और सुदेवी के दर्शन हैं। इसके साथ यहां प्राचीन लड्डू गोपाल जी भी विराजमान हैं। जिनके सिर पर मुकुट बना हुआ है।
मंदिर के मैनेजर सुभाष ने बताया कि “हरियाणा के सेठ राकेश अग्रवाल ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। श्री कृष्ण की मूर्ति अष्टधातु की है। नव निर्माण में मंदिर के प्राचीन स्वरूप को बचाए रखने की कोशिश की गई है। प्राचीन मंदिर का निर्माण बंगाल के राजा राम रंजन चक्रवर्ती ने कराया था। उनकी रानी को लड्डू गोपाल ने स्वप्न में कहा कि वृंदावन में अष्ट सखी का कोई मंदिर नहीं है, तुम बनवाओ। मंदिर निर्माण के बाद लड्डू गोपाल जी को यहीं विराजमान किया गया। पहले मंदिर के पास रानी का महल था जो कई साल पहले नष्ट हो गया।”
इतिहास
हेतमपुर के राजा राम रंजन चक्रवर्ती और पत्नी पद्मा सुंदरी ने सन् 1889 में मंदिर की स्थापना की। सन् 1928 में नया मंदिर बना। उसके बाद पुनः सौंदर्यीकरण हुआ।
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