आमें सामें बैठि दोऊ, दोहत करत ठठोर। दूध धार मुख पर पड़त, दृग भये चंद्र चकोर।।
“किशोर किशोरी के प्यार और दूध की फुहार मै भीजे ‘दोहिनी’ की माटी कू सूखौ देख हृदय द्रवित है जाय। गायन की खिरक खाली पड़ौ है। सब खौ सूखौ है। कुंड पानी की धार कू तरसौ है। जितै रोज चहल पहल रहौ करती, उतै झांकवे वारौ कोऊ नाय। बरसाने कौ सबते नीरस स्थान बनकै रह गयौ। राज्य, निजी संस्था सबके बजट खर्च भये पर दोहिनी के दिन नाय बहुरे। चलौ, चलकै खुद ही देख लेओ।
बरसाना-चिकसौली मार्ग में दोहिनी कुंड नामक प्राचीन स्थान है। लाखों रुपये खर्च कर संवारने के बाद इसे उजाड़ने के लिए छोड़ दिया गया। सुरम्य सूरत पर -धीरे झाईं पड़ने लगी और दोहिनी कुंड मुरझा गया। प्लेटफॉर्म खाली है और आसपास गंदगी का ढेर। कीकरों ने चुभन और बढ़ा दी है। कुंड के घाटों की सीढ़ियां जर्जर हो चुकी हैं। स्थानीय लोगों ने भी इसे अस्वच्छ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। दोहिनी कुंड पर लगे फाउंडेशन के शिलापट में इसका माहात्म्य व जीर्णोद्धार का वर्णन या गया है। रमेश बाबा की प्रेरणा से कमल मोरारका, अध्यक्ष गैनन डंकरली समूह, मुंबई के आर्थिक सहयोग से सन् 2003-07 में दोहिनी कुंड का जीर्णोद्धार व घाटों का निर्माण कराया गया। सन् 2009-11 में भारत सरकार व उप्र सरकार के पर्यटन विभाग के आर्थिक सहयोग इसके परिसर का सौंदर्यीकरण हुआ।
लीला
यह वृषभानु जी की गायों की खिरक (रहने का स्थान) है। एक बाट किशोरी जी यहां गोदोहन देख रही थीं। उनकी भी गाय दुहने की इच्छा हुई। वह मटकी लेकर गैया का दूध काढने लगीं। उसी समय कन्हाई भी आ पहुंचे और बोले सखी तोपै दूध काढ़वौ ऊ नाय आवै, ला मैं बताऊं। ये कहकर पास में बैठ गए। कान्हा ने कहा, दो थन तुम दुहौ और दो मैं | तभी गोपाल को ठिठोली सूझी और दूध की धार से राधा का मुख भिगो दिया। ब्रज भक्ति विलास में लिखा है कि यहां वृषभानु जी समस्त गोपों के साथ गोदोहन करते थे| इस स्थान पर गोपियों की कामना पूर्ण हुई है। यह वृषभानु द्वारा निर्मित तीर्थ है।
विहार कुंड भी बदहाल
दोहिनी कुंड से कुछ दूर स्थित विहार कुंड भी बदहाली में है| झाड़ियों के बीच छिपे इस कुंड का पुरातन स्वरूप नष्ट हो चुका है। इसे माहेश्वरी कुंड भी कहते हैं | इसे पार्वती जी का सरोवर कहा गया है। सभी महाशक्तियां उमा, रमा, सरस्वती आदि बरसाना आती हैं।
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