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नित्य धाम की शिरोमणि है भक्ति। अपने भक्तों पर राधा माधव की कृपा सदा बरसती है। वे भाव को सींचकर अपने कर कमलों से पुष्पित पल्लवित करते हैं। ठाकुर की कृपा देखो, भक्त को खुद अपना विग्रह प्रदान कर कृतार्थ कर देते हैं। राधा विनोद ठाकुर की इसी कृपा का फल हैं। कृष्ण विरह में व्याकुल लोकनाथ गोस्वामी के हाथों में एक गोप बालक मूर्ति देकर बोला, बाबा! आज से इसी की सेवा करना । राधा विनोद की विनोदिनी झांकी को आप भी निरख लो।
राधारमण से थोड़ी दूर स्थित प्राचीन राधा विनोद-गोकुलानंद मंदिर सप्त देवालय की श्रृंखला को पूर्ण करता है। गौड़ीय वैष्णव लोकनाथ गोस्वामी, उनके एकमात्र दीक्षा शिष्य नरोत्तम ठाकुर व विश्वनाथ चक्रवर्ती के राधा गोकुलानंद व नरोत्तम ठाकुर के श्रीमन्महाप्रभु विराजित हैं । प्रांगण में तीनों आचार्यों की समाधियां हैं।
तालखेड़ा गांव, यशोहर जिला के रहने वाले लोकनाथ गोस्वामी बचपन से चैतन्य महाप्रभु के प्रति आस्था थी। संवत 1566 में घर-बार छोड़कर उनके दर्शन हित नवद्वीप पहुंचे। महाप्रभु ने वृंदावन जाने का आदेश दिया और कहा कि ब्रज कभी मत छोड़ना। लोकनाथ ब्रज में भ्रमण करते रहे। छत्रवन के निकट उमराव गांव में किशोरी कुंड पर कृष्ण विरह में व्याकुल होकर रो रहे थे। सोच रहे थे कि मेरे पास कोई विग्रह भी नहीं है जिसकी सेवा कर सकूं। तभी एक गोप बालक उन्हें राधा विनोद का विग्रह देकर अदृश्य हो गया। इन्होंने पुष्पों की शैय्या बिछाकर ठाकुर जी को शयन कराया। न मंदिर था न कुटिया । लोकनाथ जी ने कपड़े का झोला बनाया और उसमें ठाकुर को रख गले में लटकाए घूमने लगे। कुछ दिन बाद रूप-सनातन गोस्वामी के आग्रह पर वृंदावन आए और ब्रजवासियों की प्रार्थना पर कुटिया स्वीकार की । बाद में मंदिर का निर्माण हुआ। औरंगजेब के काल में लोकनाथ गोस्वामी के सेवित राधा विनोद के विग्रह को जयपुर भेज दिया गया। मंदिर में उनके प्रतिभू स्वरूप हैं।
राधा कुंड से प्रकट गोकुलानंद
श्रीपाद विश्वनाथ चक्रवर्ती ने पच्चीस से अधिक अनुपम मल ग्रंथ व अद्भभुत टीकाओं की रचना की है। एक बार राधाकुड पर भक्ति शास्त्रों की रचना व भागवतीय लीलाओं का आस्वादन कर रहे थे। उस समय कष्ण की बाल लीलाओं ने इनके चित्त को ऐसा मुग्ध किया कि उठते-बैठते , सोते-जागते गोकुलानंद नाम पकारते। प्रातः काल राधाकुंड स्नान के समय इन्हें गाकुलानंद का विग्रह प्राप्त हुआ। विश्वनाथ जी के लीला में प्रविष्ट होने पर गोकुलानंद का विग्रह इसी मंदिर में प्रतिष्ठित व सेवित सहा।
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