यौं तौ निज थाम में मुकते मंदिर हैं पर अजब मनोहर अनौतौ है। यानी धर्म के धागे मै सेवा के मोती जो पिरोय राखे हैं। याकी देहरी पै आयकै कोऊ भूखौ नाय जावै। अन्न क्षेत्र मै बारह मास गरीबन कू भोजन बांटौ जावै। बीस सालन ते जे संकल्प निरंतर चल रहौ है। कहौ तो मिलाय तौ मिलाय लामैं अजब मनोहर ते ।
छीपी गली में स्थित प्राचीन अजब मनोहर मंदिर का प्रबंध राजस्थान सरकार देखती है। जयपुर शैली में निर्मित इस मंदिर में बांसुरी बजाते अजब मनोहर और राधा रानी की मनोहारी छवि है। श्यामा जू की मूरत का बायां हाथ श्याम की ओर उठा हुआ है। दोनों मूर्तियां अष्टधातु की हैं। मंदिर में निंबार्क संप्रदाय की सेवा पूजा होती है।
मंदिर से जुड़े मुरली मनोहर शरण द्वारा पिछले 20 साल से अन्नक्षेत्र चलाया जा रहा है। प्रतिदिन सुबह गरीबों को निस्वार्थ भाव से भोजन बांटा जाता है। मकर संक्रांति पर 500 जरूरतमंदों को कंबल वितरित किए जाते हैं। मुरली मनोहर शरण के अनुसार “बीकानेर के राजा गंगा सिंह की पत्नी अजब कुंवरि ने सन् 1709 में इस मंदिर का निर्माण कराया था। उनके नाम से ही ठाकुर जी अजब मनोहर कहलाए।”
मंदिर के सेवक गोपीकृष्ण जी के अनुसार “निंबार्क और बल्लभ कुल की सेवा-पूजा में बहुत अंतर है। निंबार्क संप्रदाय में हरिव्यास देवाचार्य कृत महावाणी ग्रंथ के पद गाए जाते हैं और उसी के अनुसार पूजन क्रिया होती है। यह वही देवाचार्य हैं जिन्होंने कांगड़ा देवी को शिष्य बनाया था। निंबार्क संप्रदाय में प्रौढ़ अवस्था में प्रिया प्रीतम की सेवा होती है। हमारे यहां गोपीकृष्ण चार भोग और आठ आरती की सेवा है।”
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