उत्तराखंड। भाजपा पकौड़े तलने को रोज़गार बताती रही है, तो कांग्रेस ने इसे पढ़े-लिखे नौजवानों के लिए उपहास करार दिया है। इस ज़ुबानी जमा-खर्च से अलग उत्तराखंड के चमोली में एक नौजवान ने इसे प्रैक्टिकल कर दिखाया है. पीपलकोटी के सागर शाह को एमटेक करने से बेहतर पकौड़ा तलना लगा इसीलिए उसने एनआईटी में एडमिशन नहीं लिया और पकौड़े तल रहा है. सुनकर अजीब लग रहा होगा लेकिन यह सच है.
पहली कोशिश में गेट पास
पीपलकोटी के सागर शाह ने अपने पहले ही प्रयास में बिना किसी कोचिंग के गेट की परीक्षा पास कर ली थी. लगभग एक महीने पहले आए रिज़ल्ट में उसकी रैंक 8000 के लगभग रही. सागर ने बताया कि रैंक के हिसाब से उसे किसी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एमटेक में एडमिशन मिल जाता लेकिन, उसने एडमिशन नहीं लिया. फिलहाल वह पैसे कमाना चाहता है, इसलिए आगे की पढ़ाई उसे भारी लग रही है.
सागर के परिवार की पीपलकोटी में पकौड़े की दुकान है. वह समय-समय पर परिवारवालों की दुकान चलाने में मदद करता रहा है. पढ़ाई और काम के बीच ही उसने न सिर्फ बीटेक किया बल्कि गेट भी क्वालीफ़ाई कर गया. दुकान पर पिता के साथ ताऊ और भाई भी काम करते हैं.
…ताकि पिता-ताऊ को आराम मिले
पीपलकोटी की ये दुकान बदरीनाथ धाम के रूट पर हैं, जहां अप्रैल से नवम्बर तक मंदिर के खुलने के पीरियड में भारी भीड़ रहती है. दुकान भी खूब चलती है. लिहाजा व्यवस्था संभालने के लिए कई लोगों की ज़रूरत पड़ती है. आमदनी भी ठीक-ठाक होती है. सागर को अब लगता है कि उसे परिवार की दुकान सम्भालनी चाहिए.
सागर ने कहा कि उसके पिता और ताऊ बुजुर्ग हो गए हैं. उन्हें हर रोज़ 12-13 घण्टे काम करते देखकर उसे बहुत बुरा लगता है. लिहाज़ा उसने फैसला किया कि वह एमटेक की दो साल की पढ़ाई करने के बजाय अपनी दुकान संभाले जिससे उसके पिता को थोड़ी राहत मिल सके. सागर का यह फैसला ज्यादातर लोगों को अजीब लग सकता है क्योंकि एनआईटी में एडमिशन पाने के लिए बच्चे सालों कोशिश करते हैं. एनआईटी में एडमिशन मिलना सपना पूरा होने जैसा होता है.
शिक्षा जगत भी हैरत में
सागर के इस फैसले से तकनीकि शिक्षा जगत के लोग भी हैरत में हैं. उत्तराखण्ड टेक्निकल यूनिवर्सिटी की रजिस्ट्रार डॉक्टर अनिता रावत ने कहा कि सागर यदि एमटेक कर लेगा तो उसके कैरियर में अनेकों अवसर खुल जाएंगे. वह एमटेक करने के बाद रिसर्च कर सकता था. इसके बाद उसकी न सिर्फ टीचिंग के फ़ील्ड में नए अवसर खुल जाते बल्कि रिसर्च की दुनिया के दरवाज़े भी उसके लिए खुल जाते. डॉक्टर रावत कहती हैं कि नौकरी तो सागर को किसी बेहतरीन कम्पनी में मिल ही जाती लेकिन, रिसर्च वर्क ज्यादा बड़ा अवसर होता. उन्होंने यह भी कहा कि एमटेक करने के लिए तो पैसे की किल्लत भी नहीं होती क्योंकि छात्रों को स्कॉलरशिप मिलने लगती है.
सागर ने चमोली से ही इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, गोपेश्वर से सिविल में बीटेक किया है और उसके तुरंत बाद उसने इस साल गेट की परीक्षा दी थी, जिसे उन्होंने क्वालीफाई कर लिया था. पिता-ताऊ की मदद करना, उन्हें आराम दिलाने के सागर के इरादे को सलाम लेकिन शहरों की आपाधापी और गलाकाट प्रतियोगिता से दूर पीपलकोटी में पकौड़े तलते इस होनहार युवक को शायद यह पता ही नहीं था कि जिसे मौके को उसने आसानी से छोड़ दिया उसके लिए लोग लाखों रुपये और कीमती साल लगा देते हैं.
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