महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से कांग्रेस के अंदरूनी मुद्दों पर खुलकर बात की. क्विंट के खास कार्यक्रम ‘राजपथ’ में पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि कांग्रेस को युवा और वरिष्ठ नेताओं के अनुभव में समन्वय बिठाने की जरूरत है.
पेश है इस बातचीत के कुछ अंश-
मुझे ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस पार्टी में कहीं ना कहीं एक अंदरूनी विषय ऐसा है जिसके कारण वो फुल फोर्स से मैदान में उतर नहीं पा रही है और हमारा निष्कर्ष ये निकलता है कि संभवत: इसका संबंध इस उम्र और उस उम्र के नेताओं के तकरार के कारण है.
हर पार्टी नए लोगों को बढ़ावा देना चाहती है. पार्टी को रीजेनरेट करना चाहती है. यंग ब्लड को साथ में लाना चाहती है. उनमें एनर्जी होती है, उत्साह होता है, वो काफी मजबूती से काम करते हैं. वो जरूरी होता है. साथ ही में जो बुजुर्ग नेता लोग हैं, उनका जो अनुभव है, उनकी जो नेटवर्किंग स्किल्स हैं, वो भी जरूरी है.
अनुभवी नेताओं से सीख लेने की जरूरत है?
पार्टी को बुजुर्ग नेताओं, अनुभवी नेताओं और युवा ऊर्जावान नेताओं के स्किल्स का अच्छी तरह से समन्वय करना बहुत आवश्यक है. अब अगर कहें कि या तो हम ये लेंगे या वो लेंगे तो ये गलत होगा. अगर आप सिर्फ बुजुर्ग नेताओं से ही काम कराओगे कि यही लोग सब जानते हैं, इन्हीं को अनुभव है तो ये गलत होगा. इंदिरा जी के समय से, नरसिम्हा जी के समय से, राजीव जी के समय से युवाओं को हमेशा लाया गया. उनको मौका दिया गया. उनको राज्य मंत्री बना दिया गया उनको पार्टी की जिम्मेदारियां दी गई और उनमें से कई नेता आगे बढ़े. कई फेल हो गए, कई नेता अच्छे तरीके से आगे बढ़े. संजय गांधी जी के समय से देखें तो कमलनाथ, गुलाम नबी जैसे नेता हैं. वो उस समय से चल रहे हैं.
राजस्थान, मध्य प्रदेश और अब महाराष्ट्र इसने बार-बार साबित कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी के पास एक स्क्रिप्ट, एक नैरेटिव और एक स्ट्रैटजी हो सकती है लेकिन कहीं ना कहीं इस पार्टी में लीडरशिप के लेवल पर सुस्ती है.
बहुत जल्दी फैसले क्षेत्रीय पार्टी ले सकती है, राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते वो नहीं हो पाता है. हमें सोचना पड़ता है कि अगर ये निर्णय लेंगे तो पूरे देश में क्या परिणाम होगा. उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र के गठबंधन की बात कीजिए. विरोध था, क्यों विरोध था? पहले हमने कभी शिवसेना जैसी पार्टी से हाथ नहीं मिलाया. अगर हम ये फैसला लेते हैं तो शायद महाराष्ट्र के लिए ठीक रहेगा, बीजेपी को हम रोक पाएंगे लेकिन उसका राज्य पर क्या फर्क पड़ेगा और राज्यों पर फर्क पड़ने की बात में माइनॉरिटी की चिंता थी कि माइनॉरिटी क्या सोचेगी. लेकिन हमने माइनॉरिटी लीडर से बात की उनका यही कहना था कि आपके पास बीजेपी को रोकने का मौका था आपने क्यों नहीं रोका? ये अगर कोई सवाल पूछे तो उसका जवाब हमारे पास कोई था नहीं.
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