नई दिल्ली| चीन के अमेरिका को युद्ध की धमकी दिए जाने के बाद अब अन्य देश चिंतित हो गए हैं। ये सवाल भी उठने लगा है कि यदि युद्ध हुआ तो बाकी देशों का क्या होगा। कौन-से देश इनका साथ देंगे? कौन-से युद्ध से दूर रहेंगे? आर्थिक और सामाजिक तौर पर क्या-क्या समस्याएं आएंगी? वैसे तो दोनों ही देश सैन्य शक्ति के मामले में कमजोर नहीं है, दोनों की अपनी-अपनी सैन्य क्षमता है। दोनों ही इसको बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। यदि इन दोनों देशों के बीच युद्ध होता है तो निश्चित रूप से बड़े पैमाने पर नुकसान होगा। दोनों देशों के बीच युद्ध की संभावना के बाद ये सवाल भी उठ रहे हैं कि कौन-कौन से देश इनकी किस तरह से मदद करेंगे? इस मदद का क्या असर होगा।
उधर अमेरिका का कहना है कि चीन लगातार दुनियाभर में अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ा रहा है। अपनी बीआरआई परियोजना के तहत वह अलग-अलग देशों में अपने मिलिट्री बेस बना रहा है। चीन ने इसके लिए बीआरआई परियोजना में अरबों डॉलर निवेश किया है।
पेंटागन ने रिपोर्ट में कहा कि चीन परमाणु क्षमता वाली मिसाइल, एसैट हथियारों और पनडुब्बियों के विकास में निरंतर काम कर रहा है। वह पाकिस्तान समेत कई देशों में अपने सैन्य भंडार तैयार कर रहा है। विदेशी धरती पर चीनी सेना को पहुंचाना वैश्विक स्तर पर अपनी ताकत को बढ़ाने की नीति के तहत किया जा रहा है। चीन की सबमरीन नियमित तौर पर कराची में मौजूद रहती हैं।
पश्चिमी एशिया, प्रशांत क्षेत्र में दिलचस्पी
पेंटागन की रिपोर्ट में कहा गया कि पश्चिमी एशिया-प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण पूर्व एशिया में चीन की खास दिलचस्पी है। वह यहां अपने मिलिट्री बेस बनाना चाहता है। सैन्य क्षमता बढ़ाने के पीछे चीन का मुख्य उद्देश्य ताइवान, दक्षिण और पूर्व चीनी महासागरों में किसी भी तरीके के अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप को रोकना है।
पाक को अरबों के हथियार बेचे
रिपोर्ट में एक दावा ये भी किया गया है कि चीन भारत को कमतर दिखाने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करता है। चीन ने पाकिस्तान को करीब 5 अरब डॉलर से अधिक के हथियार बेचे हैं। इनमें कैगॉन्ग आर्म्ड ड्रोन से लेकर, छोटे हथियार और 8 युआन-क्लास सबमरीन व 4 टाइप-054ए मल्टी-रोल युद्ध पोत शामिल हैं।
सबमरीन में कर रहा सुधार
चीन लगातार अपनी जमीनी और परमाणु क्षमता वाले सबमरीन में सुधार कर रहा है और परमाणु क्षमता वाली हवाई बैलिस्टिक मिसाइल को विकसित करने के साथ ही परमाणु परीक्षण करने पर काम कर रहा है।
किसकी सैन्य शक्ति सबसे दमदार?
द स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में सैन्य खर्चों में हर साल 1।2 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर के सैन्य खर्चों में अमेरिका अकेले 43 फीसदी हिस्से के साथ सबसे आगे है। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के चार स्थायी सदस्य आते हैं। हालांकि, बाकी के सदस्य अमेरिका के आसपास भी नहीं फटकते हैं। चीन सात फीसदी के साथ दूसरे नंबर पर है। इसके बाद ब्रिटेन, फ्रांस और रूस करीब चार फीसदी के आसपास हैं। हालांकि, अमेरिका और सुरक्षा परिषद के बाकी सदस्य देशों के सैन्य खर्च में इस बड़े अंतर को समझना इतना मुश्किल नहीं है।
अमेरिका की तरह बाकी देश अंतरराष्ट्रीय मिशनों या सैन्य हस्तक्षेप में अपने सैनिकों को नहीं लगाते हैं। इसके साथ ही, अमेरिका की तरह दुनिया भर में उनके सैकड़ों सैन्य ठिकाने नहीं हैं। अन्य देशों ने खुद को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सैन्य अभियानों तक ही अब तक सीमित रखा है। द स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, सेना पर खर्च के मामले में रूस चौथे नंबर पर है। रूस से ऊपर अमेरिका,चीन और सऊदी अरब है।
पिछले साल अमेरिकी रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने कहा था कि अमेरिका को मुख्य रूप से रूस से खतरा है और टकराने के लिए तैयार रहना चाहिए। अमेरिका की मौजूदगी और उसके सैन्य ठिकाने दुनिया के कई देशों में हैं। इस मामले में रूस उसके सामने कहीं नहीं टिकता है।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इटली के एक अखबार को इंटरव्यू दिया था। इस इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ”आप दुनिया का मानचित्र उठाकर देखिए और उसमें अमेरिकी सैन्य ठिकानों को चिह्नित कीजिए। इसी से स्पष्ट हो जाएगा कि रूस और अमेरिका में क्या अंतर है।” रूस के बारे में कहा जाता है कि वो सेना पर जितनी रकम खर्च करता है उससे कम दिखाता है। इसके बावजूद दोनों देशों के सैन्य खर्च में बड़ा अंतर है। जो देश दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत है उसी की सैन्य ताकत भी बेमिसाल है। आर्थिक संपन्नता के मामले में भी अमेरिका और रूस की कोई तुलना नहीं है।
रूस के बारे में कहा जाता है कि उसके पास दुनिया के बेहद प्रभाशाली परमाणु हथियार हैं और इनमें अमेरिका को नष्ट करने की क्षमता है। हालांकि, रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि पुतिन कभी अमेरिका पर हमला करने का जोखिम नहीं उठाएंगे, क्योंकि यह आत्मघाती कदम साबित होगा। दोनों देशों की सीमाएं मिलती नहीं है इसलिए हमला होगा तो यह बेरिंग जल डमरू मध्य और अलास्का के जरिए होगा। इसका मतलब है कि दोनों देशों को एक-दूसरे से सीधे तौर पर खतरा नहीं है।
एयर फोर्स के मोर्चे पर भी अमेरिका की तुलना में रूस पीछे है, लेकिन वो अमेरिकी एयर फोर्स के ऑपरेशन पर सर्बिया, इराक, अफगानिस्तान और लीबिया में रणनीतिक रूप से भारी पड़ सकता है। हालांकि, कई विश्लेषकों का मानना है कि अब शीत युद्ध का वक्त खत्म हो गया है। अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि पुतिन का आक्रामक राष्ट्रवाद युद्ध तक नहीं जाएगा। इसी महीने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूस ने एक ऐसी परमाणु मिसाइल तैयार कर ली है जो पूरी दुनिया में कहीं भी मार कर सकती है और हर लक्ष्य को भेद सकती है। पुतिन का दावा है कि इस मिसाइल को रोक पाना असंभव होगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी अपने परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण का आदेश दे चुके हैं।
साल 1960 में अमेरिका और तत्कालीन सोवित संघ में अंतरिक्ष के क्षेत्र में आगे निकलने की खुलेआम होड़ लगी थी। दोनों देश एक-दूसरे को पीछे छोड़ने के लिए एक के बाद एक अंतरिक्ष कार्यक्रम लॉन्च कर रहे थे। उसी समय सैन्य उपग्रहों को भी लेकर प्रतिस्पर्द्धा देखने को मिली, क्योंकि अघोषित शीत युद्ध में सैटेलाइट खुफिया निगरानी करने का एक अहम हथियार था। हालांकि, खुफिया जानकारी जुटाने के लिए आज भी इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।
सैन्य सैटेलाइट्स के मामले में बहुत आगे है अमेरिका
2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के पास दुनिया की सबसे ज्यादा सैन्य उपग्रह हैं। एशिया में मिलिट्री सैटेलाइट के मामले में चीन के बाद भारत का स्थान है। अमेरिका के मिलिट्री सैटेलाइट के पहले प्रोजेक्ट का नाम वेपन सिस्टम 117एल था। इसके बाद उन्होंने कई बड़े मिलिट्री सैटेलाइट लॉन्च किए, जिसमें अंतरिक्ष युद्ध की क्षमता रखने वाला वाइडबैंड ग्लोबल SATCOM भी शामिल है।
यहां जानिए किसके पास कितने है सैन्य उपग्रह
अमेरिका- 123 सैटेलाइट
रूस- 74
चीन- 68
फ्रांस- 8
इजरायल- 8
भारत- 7
यूनाइटेड किंगडम- 7
जर्मनी- 7
इटली- 6
जापान- 4
चीन के सैन्य आधुनिकीकरण का वर्तमान दौर 1990 के दशक में आरंभ हुआ। हालांकि, 1990 के दशक में जब पीएलए सोवियत युग के ‘रिवर्स इंजीनियर्ड’ हथियारों से जबर्दस्त तरीके से सुसज्जित था, से लेकर इस दशक के आरंभ तक, सारा ध्यान पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के हथियारों एवं प्रणालियों की गुणवत्ता को बढ़ाने पर केंद्रित था। हम अब चीन द्वारा 2015 में इसके सैन्य संगठन में व्यापक सुधार आरंभ किए जाने के साथ शुरू हुए इसके नवीनतम चरण के साक्षी बन रहे है।
इसका लक्ष्य चीन को ‘नौसैनिक संघर्ष’ पर विशेष जोर के साथ उच्च तीव्रता, अल्प अवधि की सूचनागत (इन्फॉर्मेशनाइज्ड अर्थात युद्ध की वैज्ञानिक और अत्याधुनिक प्रणालियों और पद्धतियों से सुसज्जित) क्षेत्रीय युद्ध लड़ने में सक्षम बनाना है। इसका अर्थ है, पीएलए की पहले की योजना की तुलना में अब मुख्य भूभाग (मेनलैंड) से अधिक दूरी से एक जटिल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वातावरण में ‘लड़ने में सक्षम बनना’। इसके साथ साथ, चीन तीसरे पक्ष, मुख्य रूप से अमेरिका की क्षेत्रीय संकटों में चीन के खिलाफ हस्तक्षेप करने की क्षमता को कम करने की भी योजना बना रहा है, जिसका अर्थ हुआ कि एंटी-एक्सेस/एरिया डिनायल (ए2/एडी) क्षमताओं एवं साइबर तथा अंतरिक्ष आधारित संचालनों के लिए भी क्षमताओं का विकास करना।
चीन मुख्य रूप से अमेरिका की क्षेत्रीय संकटों में चीन के खिलाफ हस्तक्षेप करने की क्षमता को कम करने की भी योजना बना रहा है। इस संगठन के घरेलू-राजनीतिक तथा बाह्य सैन्य लक्ष्य हैं। इस प्रकार, एक स्तर पर इस सुधार से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया एवं सैन्य आलाकमान पर इसके चेयरमैन, सेंट्रल मिलिटरी कमीशन (सीएमसी) की भूमिका सीमित भी हुई है। सैन्य दृष्टिकोण से, उनकी इच्छा है कि वे क) संयुक्त अभ्यासों के संचालन की क्षमता बढ़ाएं, ख) वैसी स्थितियों का निर्माण करने में सक्षम हों, जिन्हें चीनी ‘सूचनागत’ स्थिति कहते हैं और ग) इस स्थिति का निर्माण वे मेनलैंड से और अधिक दूरी पर करें। ये दोनों लक्ष्य चीन को चीनी विशेषताओं के साथ ‘एक मजबूत सेना’ के चीन के स्वप्न को साकार बना सकते हैं जिससे 2049 तक चीन एक महाशक्ति का दर्जा प्राप्त कर लेगा। यह चीन को राजनयिक वर्चस्व उपलब्ध कराएगा, इसके क्षेत्रीय प्रभुत्व को बढ़ाएगा एवं दुनिया भर में इसके हितों की सुरक्षा करेगा।
चीन की सेना का मुख्य फोकस ताइवान जल मरूमध्य एवं दक्षिण चीनी सागर में नई आकस्मिक स्थितियों तथा जापान एवं कोरिया के समुद्रों को लेकर एक संभावित संघर्ष पर है। चीन की इच्छा मध्य एशिया में भू-सीमाओं से सटे क्षेत्रों में मित्र देशों का एक मध्यवर्ती क्षेत्र सृजित करने की है और उसका उद्देश्य शिनजियांग में अपने शासन को मजबूत बनाना और साथ ही अपने नियंत्रण को पहली द्वीप श्रृंखला तक विस्तारित करना है। जैसे-जैसे चीन की वैश्विक उपस्थिति उसके बढ़ते आर्थिक हितों के साथ बढ़ रही है, चीन इसके साथ साथ जिबूती एवं ग्वादर में अपने संचालन केंद्रों तथा श्रीलंका एवं मालदीव में अपने बंदरगाह विश्राम स्थल अधिकारों के साथ अपने हितों का समर्थन करने के लिए एक वैश्विक बुनियादी ढांचे का भी निर्माण कर रहा है।
हार्डवेयर
नाभिकीय: नाभिकीय क्षेत्र में चीन के आधुनिकीकरण प्रयासों का मुख्य लक्ष्य अमेरिका के खिलाफ एक भरोसेमंद द्वितीय आक्रमण क्षमता अर्जित करने का है। 2016 में, पीएलए सेकेंड आर्टिलरी फोर्स को पीएलए रॉकेट फोर्स का नया नाम दिया गया और इसे एक संपूर्ण सेवा के रूप में अपग्रेड किया गया। 1980 के दशक तक इसका वास्ता केवल परमाणु मिसाइलों से रहा, लेकिन 1990 के दशक के मध्य से इसे पारंपरिक मिसाइल भी प्राप्त हो गए। यह बल सीधे सीएमसी के नियंत्रण के तहत है और इसमें 130,000 सैनिक हैं जो पीएलए ग्रुप आर्मीज के बराबर छह मुख्य मिसाइल अड्डों से संचालन करता है।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) द्वारा 2015 में चीन के नाभिकीय शस्त्रों की संख्या 260 आंकी गई थी जो 2006 की तुलना में दोगुनी थी जिसका अर्थ है कि इसके नाभिकीय शस्त्रों की संख्या बढ़ रही है। पीएलएआरएफ ने टीईएल आधारित डौंग फेंग (डीएफ) -31 एवं डीएफ-31 ए को तैनात करना जारी रखा है, डीएफ-5 बी एंड सी मल्टीपल इंडीपेंडेंटली टार्गेटेबल रि-एंट्री वेहिकल्स (एमआईआरवी) टिप्ड मिसाइलों को तैनात किया है एवं डीएफ-41 का विकास किया है।
चीन ने जनवरी 2014 से हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल के कुल चार परीक्षण किए हैं। इसका लक्ष्य चीन को अमेरिकी मिसाइल प्रतिरक्षाओं से बचाव उपलब्ध कराना है। ‘साइंस ऑफ मिलिटरी स्ट्रैटजी’ 2015 से संकेत मिलता है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट फोर्सेज (पीएलएआरएफ) में पारंपरिक एवं नाभिकीय संयोजन की रणनीति सोच-समझ कर बनाई गई है। चीन ने मध्यम दूरी के कई प्रकार के पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों (आईआरबीएम) एवं लैंड अटैक क्रूज मिसाइल्स (एलएसीएम) की भी तैनाती कर रखी है। डीएफ-26 या ‘गुआम किलर’ एक पारंपरिक और नाभिकीय दोनों प्रकार के हमलों में ही सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल है, जबकि डीएफ-21डी एक जहाज-रोधी बैलिस्टिक मिसाइल है। चीन ने चार या पांच जिन (094) क्लास एसएसबीएन पनडुब्बियां तैनात की हैं एवं भरोसेमंद द्वितीय मारक क्षमता प्राप्त करने के लिए उन पर जेएल-2 मिसाइल तैनात किया जाना तय है। भविष्य में, चीन का लक्ष्य एक अत्याधुनिक (096) एसएसबीएन एवं एक क्रूज मिसाइल लॉन्च करने की क्षमता वाली पनडुब्बी तैनात करने की है।
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) एक तटीय या समुद्री किनारे की रक्षा से उत्पन्न हुई है जिसका फोकस 1950 एवं 1960 के दशकों में समुद्र मार्ग से होने वाली घुसपैठ को रोकना तथा भूमि मार्ग से होने वाली लड़ाइयों में सहायता पहुंचाने पर था। 1980 के दशक में, चीन ने येलो सागर, पूर्वी चीन सागर एवं दक्षिणी चीन सागर के अपने महत्वपूर्ण सामुद्रिक क्षेत्र की रक्षा पर संचार रेखा (लाइंस ऑफ कम्युनिकेशन या एलओसी) प्रतिरक्षा, ताईवान की आकस्मिकता की संभावना तथा हमले से बचाव एवं सामुद्रिक अधिकारों और हितों की रक्षा करने के लिहाज से विचार करना आरंभ कर दिया।
चीन के नौसेना के आधुनिकीकरण के लक्ष्यों को इसके विभिन्न, बढ़ते हुए, आधुनिक नौसेना अभ्यासों से समझा जा सकता है। इनमें द्वितीय द्वीप श्रृंखला से आगे की कार्रवाई और दक्षिण चीन सागर पर केंद्रित द्वीप पर फिर से कब्जा शामिल है। लुहु (052), लुहाई (051 बी), सॉव्रेमेनी, लुयांग (052), एवं लुझोउ (051 सी), क्लास डेस्ट्रॉयर्स, जियांगवेई (053) एवं जियांगकाई (054), क्लास फ्रिगेट्स, द सोंग, युवान एवं किलो क्लास पनडुब्बियां, द जिन एवं शांग नाभिकीय हमला सब्स, लियाओंनिंग एवं 100 चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान जिनमें वायु से जहाज मिसाइल बौंबर के साथ शामिल है-जे-10, जे-11, एसयू 30, एवं 30 एच-6 के अधिग्रहण के साथ पीएलएएन की ताकत में बेशुमार इजाफा हो गया है। चीन ने 2016 में 18 पानी के जहाजों को सक्रिया किया और जनवरी 2017 में इसने एक इलेक्ट्रॉनिक टोही पोत को तैनात किया।
पीएलएएएफ के आधुनिकीकरण को सैन्य मामलों में क्रांति (आरएमए) मुद्दों तथा ताइवान के साथ शक्ति के संतुलन एवं सागर में पीएलए की बड़ी उपस्थिति के द्वारा भी प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है। द्वितीय खाड़ी युद्ध ने समेकित खुफिया, अनुवीक्षण एवं टोही नेटवर्क का उपयोग करते हुए लंबी दूरी के सटीक हमले के महत्व को प्रदर्शित किया।
वर्तमान में, पीएलएएएफ अपने स्वदेशी चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान पर जे-10बी फॉलो का विकास कर रही है एवं अपने उन्नत राडार के साथ 24 एसयू-35 का अधिग्रहण कर रही है। इस दशक के अंत तक, हम जे-20 एंटरिंग सर्विस जैसी चीन की पहली पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को देख सकतेे हैं। 2015 में, इसने लड़ाकू विमानों के पांचवें एवं छठे प्रोटोटाइप का परीक्षण किया। इसके अतिरिक्त, चीन एच-6के बमवर्षक की अपग्रेडिंग के द्वारा अपने बमवर्षक बेड़े का आधुनिकीकरण कर रहा है जिससे कि प्रत्येक बेड़ा छह एलएसीएम का भार वहन कर सके।
दो वर्षों के बाद इसके विवरण अधिक स्पष्ट हो गए हैं। सितंबर 2015 में, शी ने इसमें 300,000 लोगों को कम करने की घोषणा की जिससे कि संख्या बल को 20 लाख तक लाया जा सके। इसके बाद के महीनों में शी ने पीएलए में बड़े परिवर्तनों की घोषणा की जिससे कि पीएलए को संगठित किया जा सके तथा इसका सुचारू रूप से नेतृत्व किया जा सके। नवंबर 2015 में, वर्तमान मिलिटरी एरिया कमांड्स (एमएसी) को नए लड़ाई क्षेत्र कमानों में पुनर्गठित किया जाएगा जिसका निरीक्षण सीएमसी द्वारा किया जाएगा। एक नई तीन स्तरीय प्रणाली सृजित की जाएगी और कमान की एक अलग प्रशासनिक श्रृंखला चारों सेनाओं के मुख्यालय को इकाइयों से जोड़ देगी। इन सभी के अगले पांच वर्षों में कार्यान्वित हो जाने की उम्मीद है।
जनवरी 2016 में, चारों जनरल डिपार्टमेंट्स जिन्होंने अब तक पीएलए का नेतृत्व किया था-जनरल स्टाफ, जनरल पॉलिटिकल डिपार्टमेंट, जनरल लॉजिस्टिक्स डिपार्टमेंट एवं जनरल आर्मामेंट डिपार्टमेंट की जगह 15 कार्यात्मक इकाइयों ने ले ली है। ताकतवर जनरल स्टाफ डिपार्टमेंट की जगह एक ज्वाइंट स्टाफ डिपार्टमेंट ने ले ली है, लेकिन इसने संभवतः प्रशिक्षण एवं शिक्षा, संगठन, सामरिक योजना निर्माण एवं संभवतः साइबर युद्ध तथा ईडब्ल्यू इकाइयों से नियंत्रण खो दिया है।
इस प्रकार से शी ने उच्चतर कमान संरचना को मजबूत बना दिया है और सीएमसी के अधिकार क्षेत्र में वृद्धि कर दी है। नई प्रणाली को “सीएमसी चेयरमैन रिस्पॉन्सिबिलिटी सिस्टम” नाम दिया गया है। इस प्रणाली ने सीएमसी के तहत अधिकार की दो सुस्पष्ट रेखाओं का विकास किया है-विभिन्न सेनाएं अपने संबंधित बलों का प्रबंधन करती हैं जबकि थिएटर कमान युद्ध लड़ता है। दोनों सीएमसी को और उस लिहाज से कम्युनिस्ट पार्टी को रिपोर्ट करती हैं। बहरहाल, 2015 में आरंभ हुए संगठनात्मक सुधारों के 2020 में पूरी तरह कार्यशील हो जाने की योजना है जिसे 2021 में सीपीसी की स्थापना की पहली सहस्त्राब्दी वर्षगांठ के अवसर पर एक उपलब्धि के तौर पर पेश किया जाएगा।
चीन तेजी से अपने सैन्य बल में सुधार ला रहा है और इसकी मारक क्षमता में उसकी तुलना में काफी तेजी से बढोत्तरी हो रही है जिसका अनुमान कुछ वर्ष पहले तक लगाया जा रहा था। बहरहाल, एक साखपूर्ण वैश्विक सैन्य बल के रूप में चीन के उदय के लिए इन परिवर्तनों के निहितार्थ क्या होंगे, इस मोड़ पर यह अभी भी अस्पष्ट और अनिश्चित बना हुआ है।
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