रसखान समाधि पर बिखरे कला और संस्कृति के रंग, उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद और जीएलए विश्वविद्यालय का संयुक्त कार्यक्रम

लोककला सांझी का महोत्सव रसखान और ताज बीवी समाधि परिसर में प्रारंभ

यूनिक समय / मथुरा/गोकुल। श्री कृष्ण के अनन्य भक्त रसखान और ताजबीबी की गोकुल स्थित समाधि परिसर में रविवार को ब्रज की पुरातन परंपरा को जीवंत करने वाले सांझी महोत्सव का शुभारंभ भाजपा जिलाध्यक्ष मधु शर्मा और जीएलए विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता ने दीप प्रज्जवलित कर किया। महोत्सव में कला और संस्कृति के अलग अलग रंग देखे गए।

बताते चलें कि उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद और जीएलए विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में सांझी महोत्सव 18 से 25 सितंबर तक चलेगा। यह आयोजन उप्र पर्यटन विभाग, राजकीय संग्रहालय, मथुरा और ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, वृंदावन के सहयोग से हो रहा है।

समूचे परिसर में कलाकार सांझी बनाने में जुटे रहे। एक ओर रंगों की सांझी बनाने में महिला और पुरुष कलाकार जुटे रहे वहीं अडींग की पूनम यादव और गोकुल की लक्ष्मी देवी व वृंदावन तथा अन्य स्थानों से पहुंचीं महिलाओं ने गोबर, फूलों से सांझी बनायी। राजकीय संग्रहालय की ओर से अलग से गैलरी सजाई गयी, जिसमें इस परंपरा को चित्रों के जरिए समझाया गया। समूचा परिसर केसरिया ध्वज व पट्टिकाओं से अटा पड़ा रहा।

रसखान समाधि परिसर में सांझी देखने वाले महिला व पुरुषों की भी कतार लगी रही। सायं काल सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में भजन गायन से परिसर भक्तिमय हो गया। जिलाध्यक्ष मधु शर्मा ने ब्रज तीर्थ विकास परिषद और जीएलए विश्वविद्यालय के प्रयासों की सराहना की। प्रति कुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता ने कहा कि आज कलाकारों द्वारा विभिन्न तरह को सांझी तैयार कर उनमें रंगों को पिरोया है वह वाकई काबिले तारीफ है।े

महोत्सव के शुभारंभ पर उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के डिप्टी सीईओ पंकज वर्मा, पर्यटन अधिकारी डीके शर्मा, राजकीय संग्रहालय के सहायक निदेशक यशवंत सिंह राठौर, ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के सचिव लक्ष्मी नारायण तिवारी, गोपाल शर्मा, परिषद के ब्रज संस्कृति विशेषज्ञ डॉ उमेश चंद्र शर्मा, आरपी सिंह यादव व गीता शोध संस्थान वृंदावन के समन्वयक चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार आदि उपस्थित थे।

सांझी के चित्र के बनाना एक साधना
यूनिक समय/गोकुल (मथुरा)। सांझी बनाने वाली अडींग निवासी पूनम यादव का कहना है कि सांझी के चित्र के बनाना भी एक साधना है। ब्रज के मंदिरों के जगमोहन में सांझी बनाने की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। अब इस कला का नवाचार हो रहा है। कलाकारों ने सांझी महोत्सव मैं बनाई जा रही रंगोली व सांझी मे अंतर भी समझाया।

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