बेंगलुरु। महाराष्ट्र में भाजपा से हेकड़ी दिखाते हुए उद्धव ठाकरे ने शिवसैनिक को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने की जिद तो पूरी कर ली, लेकिन उसका खामियाजा कुर्सी पर मंडराता नजर आने लगा है। उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यभार संभाले अभी कुछ ही दिन हुआ है, वह अभी काम -काज समझ ही रहे हैं कि उनके सामने समस्याओं ने दस्तक देनी शुरु कर दी है। एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने के बाद उनकी सबसे बड़ी मुसीबत केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नागरिकता संसोधन बिल बन चुका हैं। इस बिल को लेकर महाराष्ट्र में हाल ही में गठित महाविकास अघाडी सरकार में विरोध शुरु हो गया हैं।
बता दें भाजपा आगामी 9 दिसंबर से 11 दिसंबर तक के लिए बीच नागरिकता संसोधन बिल पेश करने वाली है। बुधवार को केंद्रीय मंत्रीमंडल ने नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 (CAB)को अपनी मंजूरी दी थी। 9 दिसंबर को नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा में पेश हो सकता है। मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल में भी इसे मंजूरी दिलाने की कोशिश की थी और इस बार ये मोदी सरकार का दूसरा प्रयास है। यह बिल बीजेपी के चुनावी वादों में से एक रहा है। इतना ही नहीं केंद्र की मोदी सरकार की इसके पीछे एक दूरगामी सोच भी है। वहीं माना जा रहा है कि अमित शाह को इसमें तात्कालिक फायदा भी मिल रहा है,और वो सिर्फ आने वाले विधानसभा चुनाव नहीं हैं।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने के बावजूद शिवसेना ने इस बिल का सपोर्ट करने का ऐलान किया हैं। इतना ही नहीं शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत के इस बारे में दिए गए एक बयान से उद्वव सरकार मुश्किलों में घिरने लगी है। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट की नागरिकता संशोधन बिल को मंजूरी मिलने के बाद संजय राउत ने साफ तौर पर कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर शिवसेना का सपोर्ट जारी रहेगा और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि केंद्र की सत्ता किस राजनीतिक दल के पास है।
कांग्रेस उद्धव ठाकरे से सफाई मांगने वाली है
लेकिन शिवसेना का यह निर्णय कांग्रेसियों में सेक्युलर भावनाओं पर बनी सहमति के खिलाफ माना जा रहा है। यही कारण है कि कांग्रेस और एनसीपी जो सेक्युलर पार्टियां हैं वह शिवसेना को इसमें कोई भी मुरव्वत देने के ख्याल में नहीं दिख रही है। खबर है कि शिवसेना के सपोर्ट को लेकर कांग्रेस उद्धव ठाकरे से सफाई मांगने वाली है। अगर शिवसेना ने इस मामले में हेकड़ी दिखाई तो अघाडी सरकार की तीन पहियों की सरकार डगमगाने की पूरी संभावना है। जिसका सीधा फायदा भाजपा और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को हो सकता हैं। भले ही महाराष्ट्र में उद्धव सरकार को कांग्रेस और एनसीपी से इस मुद्दे पर टकराव के बाद कुर्सी को न खतरा हो लेकिन पहली बार सीएम बने उद्वव ठाकरे जो कांग्रेस और एनसीपी विरोधी विचाराधारा वाली पार्टी के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे उसमें यह बिल खलल तो डालना शुरु कर चुका हैं।
कांग्रेस शिवसेना को याद दिलाना चाहती है ये वादा
नागरिकता संशोधन विधेयक पर शिवसेना का भाजपा का साथ देना कांग्रेस के हिसाब से महाविकास अघाड़ी सरकार के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का प्रत्यक्ष उल्लंघन है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेता जल्द ही मुख्यमंत्री उद्वव ठाकरे को सरकार के गठन के समय तीनों पार्टियों के बीच बने इस कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की तय बातों की ओर ध्यान दिलवाने वाले हैं।
कांग्रेस बताना चाहती है कि साझा कार्यक्रम में साफ तौर पर तय हुआ है कि राज्य ही नहीं राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर भी आम सहमति के बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा। शिवसेना ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ गठबंधन अपनी हिंदूवादी पार्टी का चोला उतार कर सेक्लुलर भावना के साथ काम करने का वादा किया था। ऐसे में नागरिकता संसोधन बिल पर शिवसेना का सपोर्ट करने की बात करना तीनों दलों के बीच हुई सहमति के सरा सर खिलाफ है। ऐसे में कांग्रेस का सवाल उठाना लाजिमी है। खबरों के अनुसार एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी शिवसेना के इस स्टैन्ड से नाखुश है उन्होंने भी इसका विरोध किया है।
कांगेस इस बिल की घोर विरोधी
बता दें राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की सबसे बड़ी विरोधी पार्टी कांग्रेस है और वह नागरिकता संशोधन बिल का पुरजोर विरोध कर रही है। राहुल गांधी ने इस बिल का खुला विरोध किया है और कहा है कि यह बिल देश के बेसिक आइडिया का ही उल्लंघन है। धर्म के आधार पर किसी को नागरिकता नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी और शाह सपनों की दुनिया में जी रहे हैं, जिसकी वजह से देश में दिक्कतें आ रही हैं। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी इस बिल का विरोध किया है और कहा है कि यह बिल समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है, जिसका हक आर्टिकल 14 के तहत मिला हुआ है। उन्होंने आरोप लगाया है कि ये बिल गैर प्रवासियों के खिलाफ धर्म के आधार पर इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि, बाद में उन्होंने ये कहा है कि भाजपा बिल में कुछ बदलाव करने जा रही है तो पहले कांग्रेस पार्टी बिल की पूरी स्टडी करेगी, उसके बाद ही इस बिल पर अपना स्टैंड साफ करेगी।
शिवसेना अभी भी इस बिल पर भाजपा के साथ
दरअसल, मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में शिवसेना भाजपा के साथ थी और उसने नागरिकता संशोधन बिल का समर्थन भी किया था। इस बार शिवसेना और भाजपा में महाराष्ट्र चुनाव के चलते अनबन हो गई है, लेकिन शिवसेना ने नागरिकता संशोधन बिल पर अपना स्टैंड नहीं बदला है। वह भले ही महाराष्ट्र में भाजपा की कड़ी विरोधी हो गई हो, लेकिन नागरिकता संशोधन बिल पर वह अभी भी भाजपा के साथ खड़ी दिख रही है। शिवसेना के विनायक राउत ने कहा है कि ये देश की सुरक्षा और देशभक्ति से जुड़ा मामला है, जिस पर हम हमेशा पॉजिटिव रहेंगे। संजय राउत ने कहा है कि महाराष्ट्र की बात अलग है, लेकिन जहां देश का मामला है वह हमारी कमिटमेंट हैं और हम उससे पीछे हटने वाले नहीं हैं. उन्होंने कहा कि देश का विषय अलग है और महाराष्ट्र का अलग।
इस मुद्दे ने भी बढ़ाई है उद्धव ठाकरे सरकारक की मुसीबत
नागरिकता बिल ही नहीं इससे पहले कांग्रेस नेता ने ऐसी डिमांड रखी है जो उद्धव ठाकरे सरकार के लिए बड़ा हम्प साबित हो सकती हैं। दरअसल, कांग्रेस के राज्य सभा सांसद हुसैन दलवई ने महाराष्ट्र सरकार हिंदूवादी सनातन संस्था पर तत्काल पाबंदी लगा देने की मांग की हैं। खबरों के अनुसार नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में जांचकर्ताओं ने शक की सुई सनातन संस्था पर ही उठायी और फिर केस भी दर्ज हो गया। अब हुसैन दलवई जनवरी, 2018 की हिंसा को लेकर संभाजी भिड़े सहित दो हिंदूवादी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेजने की भी मांग कर रहे हैं। उद्धव ठाकरे सरकार की मुश्किल ये है कि संभाजी भिड़े जैसे हिंदूवादी नेता को हाथ लगाए तो कैसे? पिछले दिनों मातोश्री से संभाजी को उद्धव ठाकरे ने भले लौटा दिया हो, लेकिन सीएम उद्वव ठाकरे को भी पता है कि उनके खिलाफ कोई एक्शन लेना वहां के राजनीतिक समीकरणों को और बिगाड़ सकता है।
शिवसेना एनडीए में रहते हुए भी उठाती रही है उलट कदम
दरअसल शिवसेना के लिए देखा जाये तो शिवसेना ने एक नहीं बल्कि कई बार एनडीए में रह कर भी बीजेपी के बिलकुल उलट कदम उठाती रही हैं। लेकिन शिवसेना को यह नहीं भूलना चाहिए कि एनसीपी और कांग्रेस पार्टी भाजपा नहीं है जो शिवसेना की हर उलट कदम को बर्दास्त करेगी। क्योंकि एनसीपी प्रमुख शरद पवार पहले ही कह चुके है कि महाराष्ट्र में इस गठबंधन की सरकार बनने से एनसीपी को क्या मिला ? शिवसेना को मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस को विधानसभा अध्यक्ष का पद और एनसीपी को क्या मिला। एनसीपी के खाते में आए उपमुख्यमंत्री पद की बात की जाए तो , उपमुख्यमंत्री को वो ही सारे आधिकार मिलते जो एक मंत्री के होते हैं।
सरकार बनाने के लिए उद्धव ठाकरे को करने पड़े कई समझौते
बता दें महाविकास अघाड़ी सरकार के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत उद्धव ठाकरे को कई समझौते करने पड़े। यहां तक कि हिंदूवादी शिवसेना को इस सरकार में कहीं शिव का नाम भी जोड़ने का ख्याल भी त्यागना पड़ा। लंबे समय से वीर सावरकर को भारत रत्न देने की बात हो या अल्पसंख्यक छात्रों के लिए पांच फीसदी आरक्षण देने का, कांग्रेस-एनसीपी का कार्यक्रम कबूल कर लेना कोई मामूली बात तो है नहीं, और तो और सबसे ज्यादा जोर सेक्युलर शब्द पर दिया जाना भी उद्धव ठाकरे के लिए समझौता ही रहा सवाल ये है कि क्या सत्ता के लिए बनाये गये गठबंधन का सहयोगी होना किसी दल की राजनीतिक अभिव्यक्ति पर भी पाबंदी लगा देगा?
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