लॉकडाउन: गंभीर रोगियों को पेट के बल लिटाकर जिंदगियां बचा रहे हैं डॉक्टर, जानिए कैसे!

नई दिल्ली। कोविड-19 का अब तक कोई इलाज मौजूद नहीं है, लेकिन मरीजों को ठीक करने के लिए दुनियाभर के डॉक्टर अलग-अलग तरीके ढूंढ रहे हैं। बीते सप्ताह अमेरिका में एक गंभीर कोविड-19 मरीज के इलाज में कुछ ऐसा ही देखने को मिला है। सीएनएन पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में इस घटना का जिक्र किया गया है। दरअसल पिछले सप्ताह अमेरिका में डॉक्टर मंगला नरसिम्हन को एक अर्जेंट कॉल आया।

Long Island Jewish अस्पताल के आईसीयू में भर्ती एक 40 वर्षीय कोविड-19 मरीज बेहद बुरी हालत में था. डॉ. मंगला के साथी चाहते थे कि वो जल्दी से आईसीयू में पहुंचे जिससे उस मरीज का सटीक इलाज हो सके। मंगला सीनियर डॉक्टर हैं और उन्होंने अपने साथियों से कहा कि जब तक मैं वहां पहुंचती हूं उस मरीज को पेट के बल लिटा दो। मंगला ने कहा- ऐसा करके देखो, क्या मरीज को कोई आराम मिल रहा है? दिलचस्प बात ये है कि डॉ. मंगला को अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ी. उनकी तरकीब काम कर गई। लेकिन इस तरकीब में ऐसा क्या था?

दरअसल कोविड-19 के गंभीर मरीजों के इलाज के दौरान डॉक्टरों ने पाया है कि पेट के बल लिटा देने से मरीजों के फेफड़ों में ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा पहुंचती है। न्यूयॉर्क में 23 अस्पतालों की मालिक नॉर्थवेल हेल्थ कंपनी की रीजनल डायरेक्टर डॉ. मंगला नरसिम्हन का कहना है- ‘हम ये तरकीब अपनाकर जिंदगियां बचा रहे हैं, सौ प्रतिशत. यह बेहद आसान तरीका है और हमने इससे जबरदस्त फायदे देखे हैं. हम तकरीबन हर मरीज में इस तरकीब से फायदा होते देख रहे हैं।’ नॉर्थवेल हेल्थ के पूरे न्यूयॉर्क में 23 अस्पताल हैं।

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वहीं मेसाचुसेट्स जेनरल हॉस्पिटल में आईसीयू यूनिट की डायरेक्टर कैथरीन हिबर्ट कहती हैं-जब एक बार इस तरकीब को काम करता हुआ देखते हैं तब आपकी इच्छा होती है कि हर गंभीर मरीज पर इसे ट्राई करके देखा जाए। फिर आप देखते हैं कि ये तरकीब तो तुरंत काम कर रही है. लोगों की जिंदगियां बच रही हैं।’

कोविड-19 के मरीजों की मौत अक्सर की वजह से होती है. यही सिंड्रोम उन रोगियों की मौत का कारण भी बनता है जिनमें इन्फ्लुएंजा, निमोनिया बहत ज्यादा गंभीर हो जाता है। सात साल पहले फ्रांसीसी डॉक्टरों ने में एक लेख लिखा था कि ARDS की वजह से जिन मरीजों को वेंटिलेटर लगाना पड़ा हो उन्हें पेट के बल लिटाना चाहिए। इससे उनकी मौत का रिस्क कम हो जाता है।

इसके बाद अमेरिका में डॉक्टर वेंटिलेटर लगे हुए ARDS के मरीजों को पेट के बल लिटाकर जीवित बचाते रहे हैं। अब डॉक्टरों ने इस तरीके की रफ्तार बढ़ा दी है जिससे कोविड-19 के मरीजों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में बचाया जा सके. डॉक्टरों का कहना है कि इससे फायदा भी काफी ज्यादा हो रहा है।

वेंटिलेटर लगे हुए मरीज एक दिन में 16 घंटे तक पेट के बल लेटे रह सकते हैं. बाकी के समय उन्हें चित्त सुलाया जाता है. क्रिटिकल केयर एक्पर्ट्स का कहना है कि पेट के बल सोने पर ऑक्सीज ज्यादा बेहतर तरीके से फेफड़ों में पहुंचती है। जबकि जब हम चित्त सोते हैं तो शरीर के भार की वजह से फेफड़ों का कुछ हिस्सा दब जाता है। मरीजों को पेट के बल लिटाकर हम उनके फेफड़ों के वो हिस्से खोल रहे हैं जो पहले कभी खुले नहीं थे।

कुछ मुश्किलें भी हैं
गंभीर मरीजों को पेट के बल लिटाने का एक कमजोर पक्ष भी है. दरअसल पेट के बल लिटाने के लिए मरीजों को नींद की दवा भी देनी होती है. क्योंकि आम तौर पर वेंटिलेटर लगे मरीजों के लिए बिना किसी नींद की दवा के 16 घंटे लेटे रहना आसान नहीं है. नींद की दवा देने का एक और निगेटिव पक्ष है ये कि मरीजों को ज्यादा समय आईसीयू में गुजारना पड़ सकता है।

अमेरिका में कई अस्पतालों में डॉक्टर उन मरीजों को भी पेट के बल लिटा रहे हैं जो आईसीयू में नहीं हैं. नर्सों की टीम ऐसे मरीजों के पास जाकर उन्हें पेट के बल लेटने की सलाह देती है. मरीजों से कहा जा रहा है कि अगर आप एक बार में 16 घंटे नहीं लेट सकते तो इसे चार-चार घंटों में बांटा जा सकता है. साथ ही जो मरीज आईसीयू में नहीं है उसे 16 घंटे लेटने की जरूरत नहीं है. वो 8 घंटे भी लेट सकता है।

डॉ. हिबर्ट कहती हैं कि ज्यादा मरीज ऐसा करने के लिए तैयार हो जाते हैं. हालांकि 2013 में फ्रांसीसी डॉक्टरों की स्टडी में सिर्फ उन मरीजों का जिक्र था जो वेंटिलेटर पर हैं. जो मरीज गंभीर नहीं हैं उन पर इसका क्या प्रभाव होगा, इसे लेकर कोई रिसर्च नहीं हुई है. Rush University Medical Center में इस बात को लेकर स्टडी जारी है।

 

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