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नई दिल्ली। कोरोना वायरस की दूसरी लहर से मचे कहर ने देश के हेल्थ सिस्टम की पोल खोलकर रख दी है। अमूमन हर राज्य के अस्पताल दवा और ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी से जूझ रहे हैं। कहीं आठ दिन का मेडिकल ऑक्सीजन बचा है, तो कही आठ घंटे का ही। इस बीच इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के जनरल डायरेक्टर डॉक्टर बलराम भार्गव ने कहा कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर के बीच होने वाली मौतों के प्रतिशत में कोई अंतर नहीं है।
दूसरी लहर में ऑक्सीजन की अधिक जरूरत पड़ रही है। डॉक्टर भार्गव ने कहा, हमारे पास मौजूद डेटा से पहली लहर और दूसरी लहर के बीच मौत के प्रतिशत में कोई अंतर नहीं है। यहां तक कि वर्तमान में एक्टिव केस भी 20 लाख है, लेकिन बड़ी दिक्कत मेडिकल ऑक्सीजन की है। ट्विटर समेत सोशल मीडिया पर लोग ऑक्सीजन खोजने में मदद की अपील कर रहे हैं । कोरोना के कम या हल्के लक्षणों वाले मरीज होम क्वॉरंटाइन हैं. वे अपने शरीर में ऑक्सीजन लेवल चेक करने के लिए उपाय भी तलाश रहे हैं. ऐसा ही एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर हो रहा है।
इस वीडियो को पहले ट्विटर पर शेयर किया गया और वॉट्सऐप के जरिए ये सर्कुलेट हुआ. इसमें देखा जा सकता है कि ऑक्सीजन के लेवल को बढ़ाने के लिए कैसे मरीज को पेट के बल लिटाया जा रहा है। इस दौरान उसकी छाती और फेफड़ों में ऑक्सीजन की मात्रा में बदलाव देखा गया।
For those who are having oxygen saturation level around 90
Pronal or Ventilator breathing. See the amazing results. Hats off to the person who made this video pic.twitter.com/mNcnkFepLm
— Ankit Chaudhary (@entrepreneur987) April 19, 2021
क्या ये सिर्फ वायरल दावा है या फिर कोई हैक या ये वाकई काम करता है? हमारे न्यूज चैनल ने एक्सपर्ट्स से इस बारे में बातें की. दिल्ली के ठस्ज्ञब् सेंटर फॉर क्रिटिकल केयर के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर राजेश पांडे के मुताबिक, श्पेट के बल मरीज को लिटाने से ऑक्सीजन स्तर का बढ़ना कोई हैक नहीं है. ये एक प्रयोग किया गया वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध तरीका है ।इस तरीके से मरीज को लिटाने पर ऑक्सीजन के स्तर में बदलाव होते हैं। उन्होंने बताया, श्ये एक वैज्ञानिक तरीका है. डॉक्टर पिछले 10 साल से इसे अपना रहे हैं।
उन्होंने बताया, आमतौर पर कोरोना से पहले यह उन रोगियों के लिए किया गया था, जिनमें सांस लेने में गंभीर दिक्कतें थी या फिर वो वेंटिलेटर पर थे। हम उन्हें इस हालात में 16 घंटे तक पेट के बल लिटाकर रखते हैं ।हालांकि, कोरोना महामारी से पहले ये आदर्श नहीं था.।
डॉक्टर राजेश पांडे बताते हैं, हम सांस लेने में कठिनाई वाले किसी भी और हर रोगी के लिए ऐसा नहीं करेंगे। उसके लिए हमारे पास ऑक्सीजन देने के दो तरीके हैं – या तो एक आक्रामक वेंटिलेशन तकनीक के साथ, उन्हें इंटुबैट करके, या एक गैर-इनवेसिव वेंटिलेशन तकनीक, जहां पर एक मास्क लगाया जाता है। जिन रोगियों को इंटेंसिव केयर यूनिट में रखा जाता है, वहां ये तरीका अपनाया जाता है. हालांकि, कोरोना संकट में ऑक्सीजन की कमी के कारण अब पेट के बल लिटाना एक आदर्श स्थिति बन गई है, जिससे मरीज के शरीर में ऑक्सीजन के स्तर को मेंटेन किया जा सकता है।
प्रोनिंग पोजिशन की व्याख्या करते हुए डॉक्टर पांडे बताते हैं, फेफड़े के तीन क्षेत्र हैं- सामने, मध्य और पीछे. जब कोई अपनी पीठ के बल लेटा होता है, तो पीठ को खून की सप्लाई सबसे अच्छे तरीके से होती है, इससे वायुप्रवाह बढ़ जाता है, जहां रक्त परिसंचरण सबसे अधिक होता है। इससे सांस लेने में समस्या होने वाले मरीजों को फायदा होते हुए देखा गया है।
इस मुद्रा में लेटने से फेफेड़ों तक ज्यादा ऑक्सीजन पहुंचती हैै। लेकिन इस तकनीक के अपने खतरे भी हैं. अस्पतालों में यह काफी मुश्किल होता है, क्योंकि वहां पहले से ही स्टाफ की कमी होती है और कोविड-19 मरीजों की बढ़ती संख्या ने उनकी मुश्किलों को बढ़ा दिया है।
ऐसे में डॉक्टर पांडे हल्के लक्षणों वाले कोरोना मरीजों को होम आइसोलेशन में इलाज के तौर पर इस तरीके के इस्तेमाल की सलाह देते हैं।
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