
दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ने से तेंदुओं में शुरू हुआ आपसी संघर्ष, कोर जोन में बाघों की मौजूदगी से बाहरी क्षेत्र में टेरिटरी के लिए तेंदुओं के बीच संघर्ष कतर्नियाघाट में 21 सितम्बर को आपस में लड़कर जा चुकी तेंदुए की जान
इंसानों में लड़ाई के प्रमुख कारणों में शामिल जमीन अब जंगली जानवरों के लिए भी लड़ाई का कारण बन रही है। जमीन की खातिर तेंदुओं में वर्चस्व की जंग हो रही है। इसमें तेंदुआ जान गंवा रहे हैं। जंगल के कोर जोन में बाघों की मौजूदगी होने से टेरिटरी के लिए तेंदुओं के बीच संघर्ष हो रहा है। वन विभाग के अधिकारियों में ही यह चिन्ता का विषय बन रहा है।
अगर अब तक हुई तेंदुओं की मौत को देखें तो कर्तनिया घाट में 21 सितम्बर को आपस में लड़कर एक तेंदुए की जान चली गई। बताते हैं कि कई तेंदुओं के बीच वर्चस्व को लेकर लड़ाई हो गई इसमें एक तेंदुए की मौत हो गई। इस घटना में कुछ तेंदुए आपसी संघर्ष में जख्मी भी हुए हैं। तेंदुओं के बीच आपसी संघर्ष की कहानी पुरानी है। इससे पहले की अगर बात की जाए तो धौरहरा रेंज में भी आपसी लड़ाई में दो तेंदुआ मरे पाए गए गए थे। जानकार कहते हैं कि बाघों के डर से जंगल के अन्दर तेंदुआ नहीं रुक रहे हैं। जंगल के किनारे बाहरी हिस्से में तेंदुआ रहते हैं। इस बाहरी इलाके में अपने क्षेत्र के लिए तेंदुआ आपस में संघर्ष करते हैं। अगर देखा जाए तो दुधवा टाइगर रिजर्व में 70 से ज्यादा तेंदुआ हैं वहीं सबसे ज्यादा कतर्निया घाट और बफर जोन में हैं। जंगली जानवरों के बारे में जानकार बताते हैं कि बाघ की तरह ही तेंदुआ भी अपने क्षेत्र के लिए संघर्ष करते रहते हैं। तेंदुओं के बीच होने वाला आपसी संघर्ष वन विभाग के अधिकारियों के लिए भी चिन्ता का विषय है। दुधवा टाइगर रिजर्व के एफडी संजय पाठक का कहना है कि कई बार बाघों की मौजूदगी वाले क्षेत्र में तेंदुए जंगल के बाहरी हिस्से में आ जाते हैं। वहां स्वभाव के अनुसार, कई बार उनमें संघर्ष भी होता है। कतर्निया में तेंदुए की मौत आपसी संघर्ष के दौरान हुई थी। पर यह क्षेत्र के लिए संघर्ष नहीं था। अन्य तेंदुओं की स्थिति जानने के लिए कांबिंग भी कराई गई।
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