मोगली व एलविस की धमाचौकड़ी देखने आ रहे विदेशी

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रोन-मोगली व रोज-एलविस की उछलकूद से बुजुर्ग भालू रोमांचित

नंबर गेम

120 एकड़ में फैला कीठम का भालू संरक्षण केंद्र
2002 में चमेली भालू ने रखा था केंद्र में कदम
2009 में अंतिम नाच दिखाने वाला राजू आया था यहां

क्रॉसर

आगरा के केंद्र में 110 भालुओं का वाइल्ड लाइफ एसओएस कर रही संरक्षण, 95 फीसदी बुजुर्ग भालू हैं यहां, पांच फीसदी यंग भालू पूरे दिन करते हैं मस्ती

रोन-मोगली व रोज एलविस की यारी देश-विदेशों तक विख्यात है। इनकी उछलकूद सैलानियों के साथ-साथ केंद्र के बुजुर्ग भालुओं को रोमांचित करती हैं। केंद्र के 95 फीसदी बुजुर्ग भालू इन पांच फीसदी भालुओं की मौज मस्ती में खोये-खोये रहते हैं। साल 2002 में आई चमेली से लेकर 2009 का अंतिम राजू भी इन्हीं में घुलमिल गया है। कीठम सेंचुरी में 120 एकड़ में फैला भालुओं का ये संसार विश्व में सबसे बड़ा संरक्षण केंद्र बनकर उभरा है। यही कारण है कि बुधवार को यहीं से पहले वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे मनाने का शुभारंभ करने जा रहे हैं।
1999 में उत्तर प्रदेश वन विभाग और वाइल्ड लाइफ एसओएस ने कीठम सेंचुरी में भालू संरक्षण केंद्र की स्थापना की थी। उसके बाद से साल 2002 में यहां पहला नाचने वाला फीमेल भालू चमेली आया। उसके बाद ये संख्या साल दर साल बढ़ती चली गई। साल 2009 में अंतिम नाचने वाला भालू आया था। फिर, नेपाल बार्डर पर पकड़े जाने वाले भालू, तीन पैरों की फीमेल रोज यहां आई। ये संख्या बढ़कर 110 हो गई है। वाइल्ड लाइफ के लोगों का कहना हैं कि केंद्र में अधिकांश 12 से लेकर 18 वर्ष की आयु के भालू हैं। इसमें बुजुर्ग भालुओं की संख्या 95 फीसदी तक है। उन्होंने बताया कि इन इन भालुओं को पहले ‘डांसिंग बेयर’ प्रथा के तहत मनोरंजन के लिए पकड़ा जाता था। वाइल्डलाइफ एसओएस ने 25 वर्षों में स्लॉथ भालुओं के संरक्षण में 628 से अधिक नाच दिखाने वाले भालुओं को बचाया और उनका पुनर्वास किया है, जिससे यह 400 साल पुरानी अवैध और क्रूर परंपरा का अंत हुआ है।

 

केंद्र में हैं भालुओं के ठाठ निराले

सर्दी हो या गर्मी केंद्र में भालुओं के ठाठ निराले हैं। उन्हें डाइट चार्ट के मुताबिक मनपसंद आहार दिया जता है। एल्विश को खाने में गरम-गरम दलिया बेहद पसंद है तो अमिताभ को सेब पसंद हैं। गेल दलिया में उबला अंडा खूब चाव से खाता है और मादा भालू रोजी बड़ी चूजी है, जो सर्दी में फल खाना छोड़ देती है। सुबह और शाम दूध, शहद और अंडा डालकर गरम-गरम हलवा भालुओं को दिया जाता है। दोपहर में मौसमी फल भी भालू बड़े चाव से खाते हैं। दिनभर सभी खूब उछल कूद करते हैं, तो किसी भालू को खाने से पहले झूला झूलना पसंद है। केंद्र में सभी भालुओं को एक-एक कमरा दिया है। खुले परिसर में इनके बाड़े बने हुए हैं। अधिक गर्मी और बारिश में ये अपने-अपने कमरे में रहते हैं, जहां कूलर की ठंडी हवा इन्हें मिलती है। वहीं, सर्दी में ये बाहर गड्डा खोदकर सोते रहते हैं।

भालुओं की हेल्थ का रिकार्ड होता है मेनटेन

वाइल्ड लाइफ एसओएस के चिकित्सक बताते हैं कि सर्दी में युवा भालू खूब उछल कूद करते हैं। सर्दी से बचाने के लिए इनके कमरों में पराली डालते हैं, जिससे उन्हें गर्मी मिलती है। उनके कमरों में हीटर व हेलोजन लाइट लगाई जाती हैं। इसके साथ ही हर कमरे के सामने पराली के बेड बनाए जाते हैं। जहां वे खूब खेलते हैं। उन्होंने बताया कि भालू को उनकी उम्र के हिसाब से दिनभर में तीन से पांच किलोग्राम दलिया खिलाया जाता है। सबसे पहले भालुओं को सुबह खाने में जौ, बाजरा, रागी, चना और मक्का का मीठा दलिया दिया जाता है। भालुओं की पसंद के मुताबिक, दलिया में शहद, दूध, उबला अंडा और खजूर डाला जाता है।

नेपाल, श्रीलंका में भी पाई जाती है प्रजाति

एसओएस के मुताबिक स्लॉथ भालू मुख्य रूप से भारत में पाई जाने वाली एक अनोखी भालू की प्रजाति है। इस प्रजाति के कुछ भालू नेपाल में और एक उप-प्रजाति श्रीलंका में पाई जाती है, जिस कारण भारत इस प्रजाति के भालुओं का मुख्य गढ़ बन गया है। वाइल्ड लाइफ ने आईयूसीएन को प्रस्ताव दिया कि भारतीय उपमहाद्वीप के लिए अद्वितीय भालू प्रजातियों के संरक्षण पर ध्यान आकर्षित करने के लिए 12 अक्टूबर को ‘वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे’ घोषित किया जाए। स्लॉथ बेयर आईयूसीएन रेड लिस्ट में ‘वल्नरेबल’ के रूप में सूचीबद्ध है। आईयूसीएन- एसएससी स्लॉथ बेयर एक्सपर्ट टीम ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 12 अक्टूबर को दुनिया भर में ‘वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे’ मनाए जाने की घोषणा की है।

इन्हें इन खूबियों से पहचाना जाता सकता है

स्लॉथ भालू दुनिया भर में पाई जाने वाली आठ भालू की प्रजातियों में से एक है। उन्हें लंबे, झबरा गहरे भूरे या काले बाल, छाती पर सफेद ‘वि’ की आकृति और चार इंच लंबे नाखून से पहचाना जा सकता है, जिनका उपयोग वह टीले से दीमक और चींटियों को बाहर निकालने के लिए करते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में वे तटीय क्षेत्र, पश्चिमी घाट और हिमालय बेस तक फैले हुए हैं। आज, भारत पूरे विश्व की 90 प्रतिशत स्लॉथ भालुओं की आबादी का घर है। कई रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन दशकों में मुख्य रूप से घटते जंगल, अवैध शिकार और मानव-भालू संघर्ष में वृद्धि के कारण उनकी आबादी में 40 से 50 फीसदी गिर गई है।

15 से 20 वर्ष की आयु होती है भालू की

वाइल्ड लाइफ के मुताबिक जंगलों में रहने वाले भालुओं की उम्र महज 15 से 20 वर्ष होती है। लेकिन, केंद्र में रहने वाले भालुओं का जीवन उनके रखरखाव के ऊपर निर्भर करता है। उनका मानना हैं कि कलंदर के पास रहने वाले भालू केवल पांच से आठ वर्ष तक ही जीवित रह पाते हैं। उन्होंने बताया कि कीठम भालू संरक्षण केंद्र में प्रिया नामक भालू ने 33 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली थी।

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