हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आदेश दिया है कि अंतर्जातीय विवाह करने वाले अगर वयस्क हैं और उनके खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं है तो उन्हें परेशान न किया जाए। कोर्ट ने इस मामले में सर्वोच्च अदालत के आदेशों का पालन किए जाने की ताकीद की है।
न्यायमूर्ति अनिल कुमार व न्यायमूर्ति मनीष माथुर की खंडपीठ ने यह आदेश शिवानी सिंह व अन्य, मनीष विश्वकर्मा व अन्य, श्याम मनोहर व अन्य तथा अनूपा देवी व अन्य आदि की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिए। याचियों का कहना था कि उन्होंने स्वेच्छा से विवाह किया है।
याचियों ने अपने विवाह के प्रमाण पत्र दाखिल करते हुए अदालत को बताया कि उनके खिलाफ कोई मुकदमा भी दर्ज नहीं है। याचियों ने अपनी सुरक्षा की मांग करते हुए खुद को परेशान किए जाने व उत्पीड़नात्मक कार्रवाई का अंदेशा जताया था।
याचियों के अधिवक्ताओं ने इस सिलसिले में सर्वोच्च न्यायालय की नजीर भी पेश की। इसमें सर्वोच्च अदालत ने देश के सभी जिलों के पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि अगर वयस्क युवती व युवक स्वेच्छा से अंतर्जातीय या अंतर धार्मिक विवाह करते हैं तो ऐसे युगल को प्रताड़ित करने वाले तत्वों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करे।
ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। याचियों की तरफ से संविधान के आर्टिकल 21 के तहत सुरक्षा की मांग की गई। इस पर हाईकोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि ऐसे मामलों में विरोधी पक्ष विवाहित युगल की जीवनचर्या या स्वतंत्रता में किसी तरह का दखल न दें।
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