यूनिक समय ,नई दिल्ली। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के पार्थिव शरीर को शुक्रवार रात करीब दस बजे सिरसा में तेजा खेड़ा फार्म हाउस पर लाया गया। आज दोपहर बाद राजकीय सम्मान के साथ उनको अंतिम विदाई दी जाएगी। ओपी चौटाला का अंतिम संस्कार सिरसा के गांव तेजा खेड़ा में बने फार्म हाउस में होगा। दोपहर 2 बजे तक उनकी पार्थिव देह को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा।
शुक्रवार को गुरुग्राम के अस्पताल में ओपी चौटाला का 89 साल की उम्र में निधन हुआ था। वो पहले से ही दिल और शुगर समेत कई बीमारियों से ग्रस्त थे। इंडियन नेशनल लोकदल के प्रवक्ता ने बताया था कि शुक्रवार 20 दिसंबर 2024 को अचानक से उनकी तबीयत खराब हुई थी। जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया। जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। हरियाणा सरकार ने ओपी चौटाला के निधन पर 3 दिन का राजकीय शोक घोषित किया है।
पांच बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे ओम प्रकाश चौटाला ने साढ़े पांच दशक तक सक्रिय सियासत में एक लौह पुरुष नेता के रूप में अपनी छाप छोड़ी। संघर्ष के सफर को जारी रखा। एक कुशल संगठनकर्ता प्रखर वक्ता समाजसेवी एवं दमदार राजनेता के रूप में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता है।।आज बेशक चौटाला साहब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी लाजवाब कहानी हमें हमेशा ही प्रेरणा देती रहेगी।
ओम प्रकाश चौटाला के बिना हरियाणा की सियासत की कहानी अधूरी है। वो सबसे अधिक पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। 7 बार विधायक बने। पांच अलग अलग विधानसभा क्षेत्रों से विधायक चुने गए। राज्यसभा के सदस्य रहे। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। 12 अप्रैल 1998 को उन्होंने अपने पिता देवीलाल के मार्गदर्शन में इनेलो रूप पौधा लगाया, जो आज वट वृक्ष का रूप ले चुका है।
ओम प्रकाश चौटाला का जन्म 1 जनवरी 1935 को गांव चौटाला में हुआ। पिता देवीलाल की पाठशाला में रहकर उन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा। चौटाला व संगरिया में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद खेती बाड़ी करने लगे। हरियाणा गठन के बाद ओमप्रकाश चौटाला 1970 में पहली बार उप चुनाव जीतकर विधायक निर्वाचित हुए।
खास बात ये है कि ओम प्रकाश चौटाला ने एक लौह पुरुष राजनेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। कभी भी विपरीत परिस्थितियों में डावांडोल नहीं हुए। संघर्ष के सफर को जारी रखते हुए हमेशा ही कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाते थे। खास बात ये है कि चौटाला साहब की हाजिर जवाबी एवं यादशात का कोई सानी नहीं था। वो भीड़ में से अनजान से कार्यकर्ता का नाम भी पुकार लेते थे। प्रशासन पर उनकी गजब की पकड़ थी।
Leave a Reply