अनूठे दर्शनों का साक्षी बनने को हर कोई दिखा आतुर
— वृंदावन की गलियों में पैर रखने की नहीं मिल रही थी जगह
मथुरा। धर्मनगरी वृंदावन की गलियों में आस्था व भक्ति का सैलाब उमड़ पड़ा। भक्ति की लहरें हिलोरे हर तरफ दिखाई दे रहीं थी। अपने आराध्य ठाकुर बांके बिहारी जी के दर्शन स्वर्ण- रजत हिंडोले में दर्शन करने को हर आंख आतुर नजर आ रही है। शनिवार को सुबह हरियाली तीज के अवसर पर बिहारी जी के मंदिर में जब भगवान के अदभुत दर्शन हुए हुए अलौकिक दृश्य नजर आया।
अद्भुत, आकर्षक स्वर्ण- रजत हिंडोला, दूधिया रोशनी के बीच स्वर्ण- रजत हिंडोले में विराजमान ठा. बांकेबिहारी जी महाराज के अलभ्य दर्शन, सजल मेघ कांति लिए चमकते नुकीले नयन। हृदय को चीर देने वाले इन नयनों में गहराई और चमक ऐसी कि सागर भी समा जाए और आकाश भी। जो सामने आया, इनका हो गया, इनमें डूब गया। हरे रंग की चांदी के बूटों से जड़ित पोशाक धारण कर विलक्षण श्रृंगार, कसी हुई हरियाली पाग मोतियों से जड़ी, ऊपर टिपारा, सिरपेच, तुर्रा और कलंगी, सब कुछ अद्भुत। हीरे और जवाहारात की चमक, मानो स्वयं कांति ने खुद को न्यौछावर करने की ठानी हो। कानों में कुंडल और मुरली की मुद्रा चित्त को आंदोलित कर रही थी। वक्षस्थल पर झूलते हुए पुष्पाहार, पीछे इकलाई में सिमटी हुई प्रियाजी। दोनों की अद्भुत जोड़ी को अपलक देखते निकट बैठे स्वामी हरिदास जी महाराज। हाथ में तानपूरे की लय ही संगीत दिखायी दी। भक्तों ने भी प्रेम और आस्था के इस समंदर में ठाकुरजी को झोंटे देकर जमकर झुलाया। हरियाली तीज की भोर से ही श्रद्धालुओं के कदम बांकेबिहारी मंदिर की ओर बढ़ रहे थे। कभी हल्की बौछार तो कभी हल्की धूम, भक्तों को राहत देने वाला मौसम और आराध्य की एक झलक पाने की लालसा भक्तों को मंदिर की ओर ले जा रही थी। पिछले सालों की अपेक्षा इस बार भीड़ भले ही कम थी। बावजूद इसके मंदिर के अंदर और बाजार का इलाका पूरी तरह भक्तों की संख्या से गुलजार था। बांकेबिहारी के जायकारे और सावन की मल्हार सुबह से ही तीर्थनगरी के वातावरण में गूंज रही थीं।
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